बाग़वानी क्षेत्र पर पहले तो हमारे किसानों का कम ध्यान रहता था परंतु अब इस ओर देश के किसानों का ध्यान गया है और हाल ही के समय में इसकी पैदावार में काफ़ी इज़ाफ़ा होते देखा जा रहा है। कृषि वर्ष 2019-20, जो जुलाई-जून की अवधि के दौरान रहता है, में यदि अनाजों के पैदावार की बात करें तो लगभग 30 करोड़ टन की उपज का अनुमान लगाया गया है, वहीं बाग़वानी के क्षेत्र में 32 करोड़ टन की उपज होने का अनुमान है।
कोरोना वायरस महामारी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप कुछ बदलने की राह पर जाता दिखाई दे रहा है। अभी तक भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान काफ़ी कम रहता आया है एवं सेवा क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक रहता है। परंतु बदली हुई परिस्थितियों में कृषि का योगदान कुछ बढ़ता नज़र आ रहा है एवं सेवा क्षेत्र का योगदान कम हो सकता है, क्योंकि पर्यटन एवं होटल उद्योग कोरोना वायरस महामारी में सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं और ये दोनों उद्योग सेवा क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
भारत में कुल आबादी का लगभग 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा ग्रामीण इलाक़ों में रहता है एवं अपने रोज़गार के लिए मुख्यतः कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर हैं। इस प्रकार भारत में कृषि का क्षेत्र एक सिल्वर लाइनिंग के तौर पर देखा जा रहा है। भारत में आम तौर पर हम लोग कृषि क्षेत्र में चावल, दाल, गेहूँ, तेल-वनस्पति, आदि कुछ चीज़ों के उत्पादन पर ही अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। परंतु, देश में एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो कृषि क्षेत्र के अंतर्गत आता है और जो बड़ी तेज़ी से विकसित हो रहा है। वह क्षेत्र है बाग़वानी (हॉर्टिकल्चर) का।
बाग़वानी क्षेत्र पर पहले तो हमारे किसानों का कम ध्यान रहता था परंतु अब इस ओर देश के किसानों का ध्यान गया है और हाल ही के समय में इसकी पैदावार में काफ़ी इज़ाफ़ा होते देखा जा रहा है। कृषि वर्ष 2019-20, जो जुलाई-जून की अवधि के दौरान रहता है, में यदि अनाजों के पैदावार की बात करें तो लगभग 30 करोड़ टन की उपज का अनुमान लगाया गया है, वहीं बाग़वानी के क्षेत्र में 32 करोड़ टन की उपज होने का अनुमान है।
अभी हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र से सम्बंधित तीन अति महत्वपूर्ण निर्णय (अगले पैराग्राफों में वर्णित) लिए गए हैं, जिसके परिणाम भी परिलक्षित होने लगे हैं। जून 2020 को समाप्त तिमाही में, जब कोरोना वायरस महामारी के चलते पूरे देश में आर्थिक गतिविधियाँ लगभग बंद थीं, ऐसे में कृषि क्षेत्र से निर्यात 23.24 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 25,552.7 करोड़ रुपए पर पहुँच गए हैं। भारत को आत्मनिर्भर बनाने में कृषि क्षेत्र का आत्मनिर्भर होना भी बहुत ज़रूरी है। दूसरे, कृषि क्षेत्र से निर्यात में वृद्धि का सीधा लाभ किसानों की आय में वृद्धि के रूप में होता है।
कृषि क्षेत्र में आज समस्या उत्पादन की नहीं बल्कि विपणन की अधिक है। देश में अभी तक प्रचलित नियमों के अनुसार किसान अपने कृषि उत्पाद को केवल कृषि उत्पाद विपणन समिति के माध्यम से ही बेच सकता था। शायद कृषि उत्पाद ही देश में एक ऐसा उत्पाद है जिसे बेचने की क़ीमत उत्पादक तय नहीं कर पाता था बल्कि इस समिति के सदस्य इसकी क़ीमत तय करते थे।
इसके कारण कई बार तो किसान अपने उत्पाद की उत्पादन लागत भी वसूल नहीं कर पाता था। परंतु, अब इस क़ानून के नियमों को शिथिल बना दिया गया है जिसके कारण अब किसान अपनी उपज को सीधे ही प्रसंस्करण इकाईयों को, निर्यातकों को एवं इन वस्तुओं में व्यापार कर रही संस्थाओं को बेच पा रहे हैं एवं उस उत्पाद की क़ीमत भी किसान एवं ये संस्थान आपस में मिलकर तय कर रहे हैं।
नियमों में किए गए इन बदलावों से कृषि उत्पाद विपणन समितियों को अब प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है एवं ये समितियाँ भी अब कृषि उत्पादों की क़ीमतें बाज़ार की क़ीमतों के आधार पर तय करने को बाध्य हो रही हैं क्योंकि इन समितियों का एकाधिकार अब समाप्त हो गया है एवं इससे अंततः किसानों को ही लाभ हो रहा है।
लघु एवं सीमांत किसान भी अब आपस में मिलकर किसान उत्पाद संस्थान का निर्माण कर सकते हैं एवं इस किसान उत्पाद संस्थान के माध्यम से अपने कृषि उत्पादों को सीधे ही उक्त वर्णित संस्थाओं को बेच सकते हैं। अतः इनकी निर्भरता अब कृषि उत्पाद विपणन समितियों पर कम हो रही है।
देश में 10,000 किसान उत्पाद संस्थानों का निर्माण, गुजरात में स्थापित की गई अमूल दुग्ध उत्पाद संस्थान की तर्ज़ पर, किया जा सकता है। कृषि उत्पादों के मार्केटिंग के क्षेत्र में किए गए उक्त परिवर्तन के कारण किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम अब बाज़ार में मिलने लगा है एवं अब उनका शोषण नहीं किया जा सकेगा।
इसी प्रकार, देश में लागू आवश्यक वस्तु अधिनियम के अंतर्गत सरकारों को यह अधिकार था कि वे किसी भी कृषि उत्पाद के भंडारण की सीमा निर्धारित कर सकती थीं। कोई भी व्यापारी इस निर्धारित सीमा से अधिक भंडारण नहीं कर सकता था। इस नियम के कारण कोल्ड स्टोरेज के निर्माण हेतु निजी निवेशक आगे नहीं आ पा रहे थे। क्योंकि, पता नहीं कब भंडारण की सीमा सम्बंधी नियमों को लागू कर दिया जाय।
दरअसल आवश्यक वस्तु अधिनियम क़ानून की जड़ें वर्ष 1943 तक पीछे चली जाती हैं जब देश में अकाल पड़ता था एवं कृषि उत्पादों का उत्पादन सीमित मात्रा में होता था। तब व्यापारियों पर कृषि उत्पादों के भंडारण हेतु सीमा लागू की जाती थी ताकि व्यापारी जमाख़ोरी नहीं कर सकें। परंतु आज तो परिस्थितियाँ ही भिन्न हैं। देश में अनाज का पर्याप्त भंडार मौजूद है तब आज इस प्रकार के नियमों की आवश्यकता ही क्यों है। अतः अब केंद्र सरकार द्वारा इस आवश्यक वस्तु अधिनियम को हटा दिया गया है।
अभी तक किसान, सामान्यतः अगले वर्ष किस कृषि उत्पाद की फ़सल पैदा करना है इस सम्बन्ध में निर्णय, इस वर्ष उस उत्पाद की बाज़ारू क़ीमत को आधार मानकर, लेता था। उदाहरण के तौर पर यदि इस वर्ष प्याज़ के बाज़ार दाम अधिक थे तो अधिक से अधिक किसान प्याज़ की पैदावार करने का प्रयास करते थे। अगले वर्ष फ़सल की मात्रा अधिक होने के कारण बाज़ार में प्याज़ के दाम कम हो जाते थे, जिसके चलते किसानों को भारी मात्रा में नुक़सान झेलना पड़ता था।
किसानों की इस परेशानी को दूर करने के उद्देश्य से अब अनुबंध खेती प्रणाली को प्रारम्भ किया गया है। जिसके अंतर्गत किसान, अपनी सोसायटी के माध्यम से, भविष्य में उसके उत्पाद की क़ीमत आज ही तय कर लेता है एवं जिस भी संस्थान को उसे अपनी फ़सल बेचना है उससे अगले वर्ष होने वाली फ़सल की क़ीमत आज ही तय कर उस संस्थान से अनुबंध कर लेता है और उसी उत्पाद की खेती कर सकता है। हाँ, उस उत्पाद की गुणवत्ता का ध्यान ज़रूर उसे रखना होता है। इस प्रकार के नियम से देश में किसानों को उसकी उपज का उचित बाज़ारू मूल्य प्राप्त होने लगेगा।
कोरोना वायरस महामारी में कृषि क्षेत्र के बाद ग्लोबल सप्लाई चैन एक ऐसा दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसमें भारत आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है। क्योंकि अब यह देखा जा रहा है कि एशिया के कुछ दूसरे देशों में विनिर्माण क्षेत्र में गतिविधियाँ बढ़ती दिखाई दे रही हैं एवं इनके बीच में ग्लोबल सप्लाई चैन की गतिविधियाँ आपस में समेकित पाई जा रही हैं।
उदाहरण के तौर पर चार पहिया वाहनों के लिए उसके एक अंग का निर्माण एक देश में हो रहा है तो किसी दूसरे अंग का निर्माण किसी अन्य देश में हो रहा है। परंतु आपस में इन्होंने एक समेकित सप्लाई चैन बनाई हुई है। अतः अब भारत द्वारा ग्लोबल सप्लाई चैन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए देश में आधारभूत सुविधाओं का विकास करने की दिशा में काम जारी है।
तटवर्तीय इलाक़ों में सड़क मार्गों का निर्माण किया जा रहा है। पूरे देश को मल्टी मॉडल कनेक्टीविटी इंफ़्रास्ट्रक्चर से जोड़ने की एक बहुत बड़ी योजना तैयार की गई है। इस योजना के अंतर्गत समुद्रीय बंदरगाहों को रेल मार्ग से जोड़ा जाएगा। रेल मार्ग को रोड मार्ग से काफ़ी बड़ी हद तक जोड़ा जा चुका है।
इससे देश में यातायात की सुविधा में और अधिक सुधार देखने को मिलेगा। मल्टी मोडल कनेक्टीविटी इंफ़्रास्ट्रक्चर सिस्टम यदि देश में उपलब्ध होगा तो देशी एवं विदेशी निवेशक इन क्षेत्रों में अपना निवेश करने को आकर्षित होंगे।
देश के बंदरगाहों में वस्तुओं के आयात एवं निर्यात के लिए टर्न-अराउंड टाइम कम किए जाने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। अतः ग्लोबल सप्लाई चैन का विकास भी एक नई गतिविधि के तौर पर देखने को मिलेगा।
भारतीय उद्योग संघ की सालाना बैठक को सम्बोधित करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्ति कांत दास ने भी कहा है कि देश में बदलती परिस्थितियां भारतीय अर्थव्यवस्था के पक्ष में हैं एवं आने वाले समय में भारत को ग्लोबल वैल्यू/सप्लाई चैन का हिस्सा बनने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
किसी ज़माने में देश में यह सोचा जाता था कि एक राज्य की राजधानी को दूसरे राज्य की राजधानी से जोड़ना है अथवा एक बड़े शहर को दूसरे बड़े शहर से जोड़ना है। यह कार्य चूँकि देश में लगभग सम्पन्न हो चुका है, अतः अभी हाल ही में इस सोच में स्पष्ट तौर पर बदलाव आया है। अब सोचा जा रहा है कि किस प्रकार ब्रॉड बैंड की कनेक्टिविटी को गावों तक पहुँचाएँ।
इंटरनेट कनेक्टिविटी को गावों तक प्रदान करें ताकि इन गावों की विशेषताओं का उपयोग देश के हित में किया जा सके। ग्रामीण पर्यटन की ओर भी अब फ़ोकस किया जा रहा है। भारत में इस क्षेत्र में विकास की अपार सम्भावनाएँ हैं। इसमें कम पूँजी निवेश से रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित होते हैं। इस क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों में अधिक स्किलिंग की भी ज़रूरत नहीं होती है।
जाहिर है, केंद्र के प्रयासों से भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वरूप में कई परिवर्तन आ रहे हैं और ये परिवर्तन निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था को मजबूती देने वाले तथा आगे ले जाने वाले हैं।
(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। आर्थिक विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)