कांग्रेस और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता पच नहीं रही है। उसी का नतीजा है कि राहुल गांधी ऐसे लफ्जों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं। राहुल गांधी के सिपाहसालार भी देश को कभी हिंदू पाकिस्तान तो कभी हिंदू तालिबान बताने से बाज नहीं आते हैं। लेकिन उन्हें यदि ऐसा लगता है कि वे प्रधानमंत्री मोदी के प्रति इस जुबानी बर्बरता के जरिए देश का दिल जीत पाएंगे या विदेशी धरती पर देश के खिलाफ आग उगलकर सत्ता तक पहुंच पाएंगे तो इस मुगालते से उन्हें बाहर आ जाना चाहिए।
‘जस करनी तस भोगहु ताता, नरक जात पुनि क्या पछताता’। गोस्वामी तुलसीदास की यह पंक्ति देश के उन माननीयों के लिए सख्त संदेश है जो बिना विचार किए हर पल विषवमन करने को आतुर दिखते हैं। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर निर्वाचित जनप्रतिनिधि की जिम्मेदारी होती है कि वह भाषा की मर्यादा और ईमानदार आचरण का ख्याल रखते हुए अपनी बात कहे। यह कहीं से भी उचित नहीं कि वह दूसरे को नीचा दिखाने के लिए जुबानी बर्बरता पर उतर जाए और संसदीय मर्यादा को मिट्टी में मिला दे।
लेकिन विडंबना है कि देश के राजनेता इसे समझने-गुनने को तैयार नहीं हैं और अदालत को जुबानी बर्बरता के लिए उन्हें दंडित करना पड़ रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। सूरत की एक अदालत ने उन्हें 2019 के मानहानि मामले में दो साल की सजा सुनायी है। लिहाजा उनकी संसद की सदस्यता समाप्त हो गयी है।
हालांकि राहुल गांधी के पास निचली अदालत की सजा के खिलाफ ऊपरी अदालत में जाने का विकल्प मौजूद है। निःसंदेह वे अदालत जाएंगे भी। अगर उन्हें राहत मिलती है तो ठीक है अन्यथा दो साल की सजा भुगतनी तय है। यहीं नहीं वह सजा की अवधि और उसके पूरा होने के 6 साल बाद तक चुनाव लड़ने के योग्य भी नहीं रह जाएंगे। फिलहाल सभी की नजर अब ऊपरी अदालत और चुनाव आयोग के रुख पर है। लेकिन असल सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी को इस सजा से सबक लेंगे? कहना मुश्किल है। अबसे पूर्व उन्हें कई बार अदालत ने ऐसे ही अनुचित वक्तव्यों के मामलों में माफ़ी और चेतावनी दी थी। लेकिन इससे उन्होंने कोई सबक नहीं लिया।
याद होगा जब वे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बार-बार ‘चौकीदार चोर है’ कह रहे थे तब अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को माफी देते हुए संभलकर बोलने की नसीहद दी। लेकिन राहुल गांधी नहीं माने। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक के कोलार की रैली में प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलते हुए कहा कि ‘सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है, चाहे वह ललित मोदी हो या नीरव मोदी हो चाहे नरेंद्र मोदी’। इसी मामले में न्यायालय ने अब उन्हें सजा सुनाई है।
गौर करें तो राहुल गांधी कमाल के नेता हैं। वे तनिक भी विचलित व चिंतित नहीं होते कि उनकी जुबानी बर्बरता का परिणाम क्या होगा। वे सरकार की आलोचना के फेर में देश की साख और मर्यादा का भी ख्याल नहीं रखते। बेशक राहुल गांधी को अधिकार है कि वह सरकार की नीतियों की आलोचना करे। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि भाषायी मर्यादा को लांघ जाएं और देश की छवि खराब करें। उन्हें समझना होगा कि एक लोकतांत्रिक देश में देश की छवि, साख और मर्यादा की रक्षा की जिम्मेदारी जितना सत्तापक्ष की होती है उतना ही विपक्ष की भी। लेकिन राहुल गांधी इसे समझने को तैयार नहीं हैं। उनके पिछले कुछ संबोधनों पर गौर करें तो सारा माजरा समझ में आ जाएगा।
अभी हाल ही उन्होंने लंदन के एक कार्यक्रम में देश के लोकतंत्र पर सवाल उठाया जिसकी चतुर्दिक निंदा हुई। इसी तरह उन्होंने जर्मनी के हैम्बर्ग में बुसेरियस समर स्कूल में छात्रों और प्रवासियों को संबोधित करते हुए माॅब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं को बेरोजगारी से जोड़ा। लंदन में ही आरएसएस की तुलना आतंकी संगठन ब्रदरहुड से की। उनके इस ‘दुर्लभ प्रवचन’ से न केवल भारत-जर्मनी बल्कि दुनिया भर के समाजशास्त्री और अर्थशस्त्री हतप्रभ रह गए।
लोगबाग भी नहीं समझ पाए कि आखिर राहुल गांधी को क्या हो गया है जो मोदी विरोध के नाम पर देश की आबरु से खिलवाड़ करने पर आमादा हैं। वह भी तब जब देश के प्रधानमंत्री दुनिया भर में भारत की प्रतिष्ठा को चार चांद लगा रहे हैं।
याद होगा गत वर्ष पहले विकिलीक्स ने खुलासा किया था कि राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत से कहा था कि देश को इस्लामिक आतंकवाद से ज्यादा खतरा हिंदू कट्टरवाद से है। तब राहुल गांधी की खूब फजीहत हुई थी। यह भी उल्लेखनीय है कि 2013 में उन्होंने इंदौर की एक रैली में जुगाली किया कि इंटेलिजेंस के एक अधिकारी ने उन्हें बताया की पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई मुज्जफरनगर दंगा पीड़ितों से संपर्क कर उन्हें आतंकवाद के लिए उकसाने की कोशिश कर रही है। मजे की बात यह कि उनके इस बयान के तत्काल बाद ही गृहमंत्रालय ने ऐसे किसी भी रिपोर्ट से इंकार कर दिया। तब राहुल गांधी की खूब फजीहत हुई थी।
2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी का घोषणापत्र ही फाड़ दिया। यही नहीं उन्होंने 2014 में एक चुनावी जनसभा में गांधी जी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जिम्मेदार ठहराया। लेकिन जब इससे नाराज संघ के एक कार्यकर्ता ने उन्हें अदालत में घसीटा तो उनकी असहजता बढ़ गयी। उच्चतम न्यायालय ने तब राहुल गांधी को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि वह या तो वह माफी मांगे या मानहानि के मुकदमें का सामना करने के लिए तैयार रहें।
राहुल गांधी के इस गैर जिम्मेदराना रवैए से साफ है कि उनमें सूझबूझ की कमी है और वे बार-बार अपनी गलत बयानबाजी के जरिए खुद की मुसीबत बढ़ाते रहते हैं। राहुल गांधी की इसी नासमझी का नतीजा है कि कांग्रेस का जनाधार तेजी से खिसक रहा है और राजनीतिक समझ और अंतर्दृष्टि रखने वाले उसके शीर्ष नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। जिस तरह कांग्रेस पार्टी को बार-बार चुनाव-दर-चुनाव हार मिल रही है, उसके लिए कोई और नहीं बल्कि खुद राहुल गांधी ही जिम्मेदार हैं।
सच यह भी है कि कांग्रेस और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता पच नहीं रही है। उसी का नतीजा है कि राहुल गांधी ऐसे लफ्जों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं। राहुल गांधी के सिपाहसालार भी देश को कभी हिंदू पाकिस्तान तो कभी हिंदू तालिबान बताने से बाज नहीं आते हैं। लेकिन उन्हें यदि ऐसा लगता है कि वे प्रधानमंत्री मोदी के प्रति इस जुबानी बर्बरता के जरिए देश का दिल जीत पाएंगे या विदेशी धरती पर देश के खिलाफ आग उगलकर सत्ता तक पहुंच पाएंगे तो इस मुगालते से उन्हें बाहर आ जाना चाहिए क्योंकि यह संभव ही नहीं है।
सच तो यह है कि देश उनके और उनकी पार्टी के बदजुबानी भरे रवैए से आहत है। राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी दोनों को समझना होगा कि अगर वे यह सोच रहे हैं कि भोथरे दलीलों और अपशब्दों के जरिए देश को गुमराह करने में सफल हो जाएंगे तो वे भ्रम में हैं। देश चैतन्य और सतर्क है।
नकारात्मक राजनीति का खामियाजा कांग्रेस को ही भुगतना होगा। क्योंकि राहुल गांधी कांग्रेस के अग्रणी नेता हैं। अगर वह गली छाप नेताओं की तरह राजनीतिक आचरण की नुमाईश करेंगे तो कांग्रेस का भविष्य अधर में जाना तय है। ऐसा नहीं है कि देश राहुल गांधी और कांग्रेस को बात रखने का अवसर नहीं दे रहा है। लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस दोनों मौके का लाभ उठाने के बजाए अपने अशोभनीय आचरण से देश को शर्मसार कर रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)