प्रभु श्रीराम का कथन है, “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”– जन्म भूमि स्वर्ग से भी महान होती है। अपने राष्ट्र के प्रति यही आत्मगौरव का भाव भारत को एक शक्तिशाली देश के रूप में परिवर्तित कर सकता है। राम मंदिर निर्माण का शुभारम्भ रामराज्य की स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, यहाँ से हमारी यात्रा एक नयी ऊर्जा और गति के साथ अग्रसर होनी चाहिए।
भारत के इतिहास में 5 अगस्त, 2020 एक विशेष तारीख के रूप में दर्ज हो गयी है। इतिहास के पन्नों में इस दिन को शताब्दियों के लम्बे संघर्ष, त्याग और बलिदान की अमिट गाथा के पश्चात् प्राप्त विजय के दिन के तौर पर याद किया जाएगा। 5 अगस्त को 130 करोड़ भारतीय के ह्रदय में बसने वाले प्रभु श्री राम की अपने घर में वापसी हुई है।
वर्षों तक अदालत के अन्दर और बाहर चले लोकतांत्रिक संघर्ष के बाद भव्य राम मंदिर के निर्माण का कार्य शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों राम मंदिर का भूमि पूजन हुआ, तो उनके पीछे बल था भारत और दुनिया भर में फैले करोड़ों राम भक्तों का, जो प्रभु श्रीराम के लिए एक भव्य मंदिर निर्माण के पक्षधर थे।
राम मंदिर का भूमिपूजन किसी एक पार्टी या किसी दल या एक व्यक्ति की जीत नहीं है, ये तो सदियों से चली आ रही आस्था और बलिदान की चरम परिणति है। राम मंदिर के लिए चले आन्दोलन की डोर हर दौर में एक हाथों से दूसरे हाथ में जाती रही, ये वैसे लोग थे, जिनके ह्रदय में प्रभु श्रीराम और माता जानकी का वास था।
यह कोई राजनीतिक आन्दोलन नहीं था, यह तो धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना की निरंतरता का परिलक्षण था, जो समय-समय पर अपने आवेग के साथ प्रकट होता रहा।
बाबर की सेना का मुखिया था मीर बाकी, जिसने भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को छिन्न-भिन्न करने का पूरा प्रयास किया, उसी पाप को पूरा भारत अपने कलेजे पर ढो रहा था। ऐसा ही कुछ सोमनाथ में भी हुआ था, जहाँ भगवान शिव के मंदिर को मुस्लिम आक्रान्ताओं ने अपवित्र कर उसे छिन्न-भिन्न कर दिया। आक्रान्ताओं ने यह अपराध तो हमारे सैकड़ों मंदिरों के साथ किया। ऐसे अपराध क्षम्य हो सकते हैं क्या? समय निश्चित ही ऐसे अपराधों का न्याय करता है।
भारत की आत्मा में प्रभु श्री राम बसते हैं, कण कण पर उनका अधिकार है, हमारे रोम-रोम पर, हमारे जीवन पर उनका अधिकार है। राम मंदिर का सपना साकार होना प्रभु श्री राम के प्रति आस्था की विजय तो है ही, असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की जीत है।
अब हर भारतीय के लिए अगला लक्ष्य रामराज्य की स्थापना है, एक ऐसे समतामूलक समाज की स्थापना, जहाँ हर किसी को अपने विकास का सामान अवसर मिले, न कोई शोषित हो और न ही कोई शोषक। रामराज्य में एक ऐसे समाज की परिकल्पना है जहाँ कोई भी अपराध न करे। प्रधानमंत्री ने भूमि-पूजन के पश्चात् अपने वक्तव्य में भी इस बात को रेखांकित किया।
राम मंदिर निर्माण शुरू हो गया है और पूरा भी हो जाएगा, परन्तु भारत के सामने अब भी चुनौती कम नहीं है। सनातन धर्म को वैश्विक खतरा है। खतरा जितना भारत के बाहर से है, उतना अंदर से भी है। अगर आप खुद मजबूत नहीं हुए तो विपत्ति का सामना नहीं कर सकते। ऐसे में, हर भारतीय को अपने चरित्र को मजबूत करना होगा। स्वयं के साथ-साथ देश-समाज के उत्थान के लिए भी प्रयास करना होगा।
आत्मनिर्भर भारत का सपना भी रामराज्य की स्थापना की दिशा में ही एक कदम है। आप सबको याद होगा कि जापान ने अपना पुनर्निर्माण किस तरह किया? नागासाकी और हिरोशिमा पर एटॉमिक बम गिराए जाने के बाद जापान के लोगों ने ही अपना फिर से पुनर्निर्माण कर लिया।
जापान की प्रजा को अपने देश, संस्कृति और समाज पर गौरव है। वो किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते, वो पूरी दुनिया को आर्थिक दान देते हैं। किसी से कुछ लेते नहीं। हर भारतीय को भी इसी तरह से अपनी आत्मनिर्भरता पर ज्यादा ध्यान देना होगा। स्वाभिमान और आत्मगौरव को संबल बनायेंगे तभी रामराज्य का सपना साकार होगा।
प्रभु श्रीराम का कथन है, “जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”- जन्म भूमि स्वर्ग से भी महान होती है। अपने राष्ट्र के प्रति यही आत्मगौरव का भाव भारत को एक शक्तिशाली देश के रूप में परिवर्तित कर सकता है। राम मंदिर के निर्माण का यह शुभारम्भ रामराज्य की स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, यहाँ से हमारी यात्रा एक नयी ऊर्जा और गति के साथ बढ़नी चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)