प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद रूपी अलख जगाने का ही नतीजा है कि भारतीय राजनीति की दिशा और दशा बदल गई। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में जो नेता भगवान राम का नाम लेने से कतराते थे वे अब मंदिरों में घंटियां बजाने लगे हैं। धर्म को अफीम मानने वाले वामपंथियों को तो ठौर ही नहीं मिल रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 से पूरे भारत में प्राचीन धार्मिक, सांस्कृतिक विरासत रहे मंदिरों-स्थलों को जीर्णोद्धार कर उन्हें अपनी पुरानी गरिमा वापस दिलाकर देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पटकथा लिख रहे हैं। इससे देश-दुनिया में प्रधानमंत्री का मान बढ़ रहा है और दुनिया भारत को एक अलग दृष्टिकोण से देखने लगी है।
पिछले 25 वर्षों से महात्मा बुद्ध की परिनिर्वाणस्थली कुशीनगर एयरपोर्ट की राह देख रहा था। इस दौरान बहुजन समाज पार्टी व समाजवादी पार्टी की सरकारें आईं और एयरपोर्ट बनाने की कवायद शुरू किया लेकिन एयरपोर्ट पूरा नहीं हो पाया। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने कुशीनगर एयरपोर्ट को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने का निर्देश दिया।
एयरपोर्ट पूरा होने की राह में जितनी भी बाधाएं सभी को दूर किया गया। इसका परिणाम हुआ कि 2021 में कुशीनगर एयरपोर्ट का उद्घाटन हुआ। उल्लेखनीय है कि कुशीनगर बौद्ध सर्किट के अंतर्गत आता है जिसमें नेपाल के लुंबिनी से लेकर बिहार के बोधगया तक का क्षेत्र शामिल है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के लिए 2013 में केदारनाथ की बाढ़ और उसके प्रतिष्ठित मंदिर का पुनर्निर्माण एक बड़ी चुनौती थी। प्रधानमंत्री ने इस चुनौती को बड़ी कुशलता से पूरा किया। मोदी ने हर साल केदारनाथ धाम की यात्रा की और व्यक्तिगत रूप से काम की समीक्षा किया। इसी का परिणाम हुआ कि निर्धारित समय में मंदिर का भव्य स्वरूप बन पाया।
केदारनाथ मंदिर परिसर का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि मंदिर का पुनर्निर्माण उनके लिए एक व्यक्तिगत लक्ष्य तो था ही लेकिन उन्हें 2013 और 2017 में उत्तराखंड की जनता को किया गया अपना वादा भी याद था। केदारनाथ मंदिर के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तराखंड के चार तीर्थस्थलों (यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ) को जोड़ने वाले आधुनिक बारहमासी सड़क नेटवर्क के निर्माण को मंजूरी दिया। बद्रीनाथ धाम के विकास का भी मास्टर प्लान बन चुका है।
मोदी के समक्ष सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना उत्तर प्रदेश में अयोध्या में भगवान राम का मंदिर निर्माण और वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम परियोजना थी। राम मंदिर निर्माण पर सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने इसका भूमि पूजन किया और अयोध्या शहर के लिए एक कायाकल्प परियोजना शुरू किया। राम मंदिर निर्माण कार्य प्रगति पर है और प्रधानमंत्री इसकी नियमित रूप से निगरानी कर रहे हैं। इससे विश्वास है कि मंदिर निर्धारित समय में पूरा हो जाएगा।
2014 से वाराणसी प्रधानमंत्री का निर्वाचन क्षेत्र रहा है। इसीलिए काशी विश्वनाथ मंदिर पुनर्विकास परियोजना के तहत मोदी ने मंदिर की स्थापना को फिर से डिजाइन करने और इसे गंगा नदी से जोड़ने वाले गलियारे की परिकल्पना किया। 8 मार्च 2019 को प्रधानमंत्री ने इस गलियारे की आधारशिला रखी और परियोजना की प्रगति की स्वयं निगरानी की।
इसी का परिणाम है कि कोविड-19 महामारी के बावजूद यह गलियारा रिकॉर्ड समय में बना। 13 दिसंबर 2021 को गलियारे का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में सांस्कृतिक उत्थान और विकास के काम एक साथ आगे बढ़ने का उल्लेख करते हुए कहा कि नए भारत में विरासत भी है और विकास भी है। आज का भारत अपनी खोई हुई विरासत को फिर से संजो रहा है। इसी का परिणाम है कि आज काशी विश्वनाथ धाम दिव्य और भव्य बन चुका है।
मोदी सरकार बनने के बाद से तीन दर्जन से अधिक मूर्तियां विदेश से वापस आईं। जो मूर्तियां वापस आई उनमें उल्लेखनीय हैं मध्य प्रदेश से चोरी हुई पैंटेंट लेडी, कश्मीर से दुर्गा महिषासुरमर्दिनी, तमिलनाडु से चोरी हुई परमेश्वरी व गणेश की प्रतिमा, श्री देवी, पार्वती, भूदेवी, आदि की प्रतिमा। प्रधानमंत्री मोदी न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी मंदिरों को भव्य बना रहे हैं।
25 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री ने बहरीन के मनामा में 200 साल पुराने भगवान श्रीकृष्ण मंदिर के पुनर्विकास परियोजना का शुभारंभ किया और इसके लिए 42 लाख डॉलर देने की घोषणा की। यह इस क्षेत्र का सबसे पुराना मंदिर है। 2018 में प्रधानमंत्री मोदी ने अबू धाबी में बनने वाले पहले हिंदू मंदिर की आधारशिला रखी थी
समग्रत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद रूपी अलख जगाने का ही नतीजा है कि भारतीय राजनीति की दिशा और दशा बदल गई। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में जो नेता भगवान राम का नाम लेने से कतराते थे वे अब मंदिरों में घंटियां बजाने लगे हैं। धर्म को अफीम मानने वाले वामपंथियों को तो ठौर ही नहीं मिल रहा है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)