राजनीतिक रूप से देश का एकीकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया और अब आर्थिक रूप से देश को एक सूत्र में पिरोने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। वस्तु एवं सेवा कर, वन रैंक वन पेंशन, जनधन योजना, उज्जवला योजना की तरह अब “एक देश एक राशन कार्ड” के जरिए देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली का एकाकार हो रहा है। इससे भ्रष्टाचार पर तो लगाम लगेगी ही, साथ ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने वाले गरीबों विशेषकर प्रवासी मजदूरों को सब्सिडी वाले राशन से वंचित नहीं होना पड़ रहा है।
21 जून को असम में शुरू होने के साथ ही मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी वन नेशन वन राशन कार्ड योजना पूरे देश में लागू हो गई। अब देश की सभी उचित दर की दुकानों को ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ सेल डिवाइस से जोड़ दिया गया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लाभार्थी खाद्यान्न से वंचित न रह जाएं इसके लिए राशन डीलरों को हाइब्रिड मॉडल का प्वाइंट ऑफ सेल मशीनें दी गई हैं।
ये मशीनें ऑनलाइन मोड के साथ ही नेटवर्क न रहने पर ऑफलाइन भी काम करेंगी। अब लाभार्थी अपने डिजिटल राशन कार्ड के इस्तेमाल से देश के किसी भी उचित दर दुकान से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत अपने कोटे का अनाज ले सकेंगे। इससे फर्जी राशन कार्ड, लीकेज, दूसरे के नाम पर अनाज लेने जैसी समस्याएं खत्म हो गई हैं।
कोविड 19 महामारी के दौरान वन नेशन वन राशन कार्ड योजना ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के लाभार्थियों विशेषकर प्रवासी श्रमिकों को रियायती खाद्यान्न उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अगस्त 2019 में शुरू हुई इस योजना के तहत अब तक 71 करोड़ पोर्टेबल लेन देन हुए। इससे 40,000 करोड़ रुपये का खाद्यान्न वितरित किया गया।
वन नेशन वन राशन कार्ड में उपभोक्ताओं को अपनी मर्जी व पसंद की दुकानों से राशन खरीदने की छूट दी गई है भले वह उनके घर से दूर हों। इससे अच्छी सेवा न देने वाली उचित दर दुकानों से उपभोक्ताओं का मोह भंग होने लगा है और वे दुकान बदलने लगे हैं।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार पर गठित वाधवा समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि उचित दर की दुकान ही भ्रष्टाचार का केंद्र बिंदु हैं। यहां जनता को ठगने के लिए दुकान मालिक, ट्रांसपोर्टर, नौकरशाह और नेताओं में सांठगांठ है। इसी सांठगांठ के चलते खाद्यान्न की कालाबाजारी होती है और योजना का लाभ असली लाभार्थियों को नहीं मिल पाता है। वाधवा समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 42 फीसद अनाज राशन की दुकानों से निकल कर कालाबाजारी के लिए पहुंच जाता है। पूर्वोत्तर राज्यों में तो 97 फीसदी तक अनाज बाजार में पहुंच जाता है।
पीडीएस में व्याप्त भ्रष्टाचार, लीकेज, भुखमरी आदि को देखते हुए मोदी सरकार ने 2014 से ही राशन कार्डों का डिजिटलाइजेशन शुरू किया और अब तक सभी राशनकार्डों का डिजिटलाइजेशन किया जा चुका है। राष्ट्रीय स्तर पर राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी लक्ष्य हासिल करने के लिए यह जरूरी था कि विभिन्न राज्य और केंद्र शासित प्रदेश जो भी राशन कार्ड जारी करें वे सभी एक मानक प्रारूप में हों। इसी को देखते हुए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत राशन कार्ड जारी करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मानक प्रारूप जारी किया गया। अब सभी राशन कार्ड इसी के अनुरूप हैं।
वन नेशन वन राशन कार्ड योजना का अधिकतम लाभ उठाने के लिए सरकार ने मेरा राशन मोबाइल एप्लिकेशन भी शुरू किया है। यह ऐप लाभार्थियों को वास्तविक समय पर सूचना उपलब्ध करा रहा है। यह अभी 13 भाषाओं में उपलब्ध है। अब तक ऐप को गूगल प्ले स्टोर से 20 लाख से अधिक बार डाउनलोड किया जा चुका है।
मोदी सरकार राशन प्रणाली को विविधीकृत करने की योजना पर काम कर रही है। इससे एक ओर फसल विविधीकरण को बढ़ावा मिलेगा तो दूसरी ओर कुपोषण की समस्या दूर होगी। इसी के तहत सरकार ने राज्यों को छूट दे दी है कि वे पीडीएस व दूसरी कल्याणकारी योजनाओं में मोटे अनाजों का वितरण करें।
इससे स्थानीय अनाजों की सरकारी खरीद व खपत बढ़ेगी तथा गेहूं-चावल के परिवहन पर होने वाली भारी-भरकम धनराशि की बचत होगी। उत्तर प्रदेश में तो इसकी शुरुआत हो चुकी है। यहां अंत्योदय व पात्र गृहस्थी कार्ड धारकों को गेहूं, चावल के साथ-साथ प्रति कार्ड एक किलो आयोडाइज्ड नमक, एक किलो दाल या साबुत चना, एक लीटर खाद्य तेल दिया जा रहा है।
वन नेशन वन राशन कार्ड योजना को मिली कामयाबी को देखते हुए मोदी सरकार इसके आंकड़ों को अन्य योजनाओं में लागू करने जा रही है। इसकी शुरुआत ई श्रम पोर्टल से हो चुकी है। यह पोर्टल असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों को पंजीकृत करने और उन्हें सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुंचने में मदद करने के लिए बनाया गया है। अब इसे वन नेशन वन राशन कार्ड योजना से जोड़ दिया गया है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)