प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास से भारतीय ज्ञान-परंपरा की अनुपम थाती योग, आज अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त कर विश्व भर में लोकप्रिय हो रहा है। विश्व समुदाय ‘योगा’ कहकर ही सही, भारतीय संस्कृति के इस अद्वितीय आरोग्य-विधान को अंगीकृत करने में लगा हुआ है। कोविड काल में भारत सहित विश्व के अनेक देशों के लिए योग कितना बड़ा सहारा बनकर सामने आया था, यह हम देख चुके हैं। इसी दौर में शारीरिक दूरी रखने के कारण जब हाथ मिलाने में बाधा आई तो कई वैश्विक नेताओं को अभिवादन हेतु हाथ जोड़कर नमस्ते करते भी देखा गया। यह हमारी संस्कृति का प्रभाव ही था।
भारतीय संस्कृति में धर्म और सत्य की विजय का भाव सदैव से विद्यमान रहा है। इस भाव की अभिव्यक्ति हमारी सांस्कृतिक परंपरा के अनेक ऐतिहासिक प्रसंगों और मनोरम पर्वों के माध्यम से भी होती रही है। दीपावली ऐसा ही एक पर्व है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में निहित अधर्म पर धर्म की विजय की उत्सवधर्मिता को भौतिक अभिव्यक्ति प्रदान करता है। प्रकाश के इस पर्व की उत्सवधर्मिता ऐसी है कि इसका प्रभाव भारत के साथ विश्व के अनेक देशों में भी देखने को मिलता रहता है।
अभी हाल ही में अमेरिकी सांसद ग्रेस मेंग ने अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में ‘दिवाली दिवस बिल’ पेश करते हुए दीपावली के दिन संघीय अवकाश घोषित किए जाने की मांग की है। उनका कहना है कि हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन सहित विभिन्न धर्मों के लाखों अमेरिकी दिवाली मनाते हैं। इसलिए इस दिन अवकाश घोषित किया जाना चाहिए। गत वर्ष मई में भी ग्रेस मेंग ने ऐसा ही एक विधेयक पेश किया था, जिसे सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई थी। इस विधेयक के पारित होने की स्थिति में अमेरिका में भी दीपावली पर आधिकारिक अवकाश की व्यवस्था शुरू हो सकती है।
यह प्रसंग भले दीपावली का हो, परंतु इसके बहाने व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो समझ आता है कि हाल के वर्षों में विश्व पटल पर भारतीय संस्कृति के प्रति स्वीकार्यता का भाव बढ़ा है। 1893 में अमेरिका की शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने अपने वक्तव्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति के जिस तेजोमय स्वरूप का परिचय विश्व को दिया था, आज वह संस्कृति अपने सनातन तेज के साथ विश्व पटल पर प्रकाशित हो रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास से भारतीय ज्ञान-परंपरा की अनुपम थाती योग, आज अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त कर विश्व भर में लोकप्रिय हो रहा है। विश्व समुदाय ‘योगा’ कहकर ही सही, भारतीय संस्कृति के इस अद्वितीय आरोग्य-विधान को अंगीकृत करने में लगा हुआ है। कोविड काल में भारत सहित विश्व के अनेक देशों के लिए योग कितना बड़ा सहारा बनकर सामने आया था, यह हम देख चुके हैं। इसी दौर में शारीरिक दूरी रखने के कारण जब हाथ मिलाने में बाधा आई तो कई वैश्विक नेताओं को अभिवादन हेतु हाथ जोड़कर नमस्ते करते भी देखा गया। यह हमारी संस्कृति का प्रभाव ही था।
भारत की अध्यक्षता में आज जी-20 के माध्यम से ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का भारतीय दर्शन विश्व को ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ की राह दिखा रहा है। जलवायु परिवर्तन के संकट का समाधान आज भारत की पारंपरिक जीवनशैली में देखा जा रहा है।
अभी गत दिनों चेन्नई में आयोजित जी-20 के पर्यावरण और जलवायु मंत्रियों की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने दो हजार वर्ष पूर्व हुए महान कवि तिरुवल्लुवर के बहाने भारत की इस परंपरागत सीख का उल्लेख किया कि न तो नदियां अपना जल स्वयं ग्रहण करती हैं और न ही वृक्ष अपने फल स्वयं खाते हैं। बादल भी अपने जल से उत्पन्न होने वाले अन्न को नहीं खाते। प्रधानमंत्री पूर्व में भी भारतीय तौर-तरीकों में जलवायु परिवर्तन के समाधान की बात कहते रहे हैं। इस रूप में भी आज भारतीय संस्कृति की गूँज विश्व पटल पर देखी-सुनी जा सकती है।
अधिक क्या कहें, कभी मथुरा-वृंदावन-काशी आदि कहीं के भी मंदिरों में पहुँच जाइए और वहाँ मौजूद अलग-अलग देशों के पर्यटकों की संख्या देखिये, आप सहज ही समझ जाएंगे कि विश्व पटल भारतीय संस्कृति के प्रभाव कितना गहरा है। इस्कॉन मंदिरों में तो विदेशी आपको कृष्ण भक्ति में डूबे भजन गाते मिल जाएंगे तो काशी में संस्कृत की शिक्षा लेने में जुटे विदेशियों से भी आपकी भेंट हो सकती है।
ऐसा नहीं है कि यह सब अभी ही हुआ हो, लेकिन यह जरूर है कि हाल के वर्षों में जिस प्रकार भारतीय सांस्कृतिक स्थलों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित बनाने पर ध्यान दिया गया है तथा उनका प्रचार-प्रसार हुआ है, उसने उसने विदेशी पर्यटकों का ध्यान इस तरफ खींचा है। वास्तव में, भारतीय संस्कृति का स्वरूप ही ऐसा है कि जो एकबार इसके निकट आता है, वो इसके प्रभाव में आए बिना नहीं रह पाता। सुखद है कि विश्व पटल पर हमारी यह सनातन संस्कृति अपनी उचित प्रतिष्ठा प्राप्त कर रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)