योग न केवल शारीरिक स्वास्थ्य में काफ़ी मददगार है, बल्कि मानसिक शांति का भी बहुत शानदार ज़रिया है। आज जबकि अधिकाधिक लोग मानसिक रूप से अशांति के दौर में हैं, ज़िंदगी की आपाधापी में मानसिक शांति खो चुके हैं; ऐसे में योग और प्राणायाम इनसे निजात दिलाने का एक बेहतरीन साधन है। मन की एकाग्रता बहुत ज़रूरी है और योग के माध्यम से हम अपने मन को आसानी से संतुलित एवं एकाग्रचित कर सकते हैं। कुल मिलाकर योग शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है।
प्राचीन काल में भारत के विश्वगुरु कहलाने के कई कारण थे। शिक्षा व संस्कृति हमारी भारतीय सभ्यता के स्तंभ थे। इन्हीं आधार स्तंभों के बलबूते हमने विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित की। शिक्षा के अनेक क्षेत्रों के साथ-साथ नीतिशास्त्र, कलाएं, युद्धनीति, आयुर्वेद एवं योग के क्षेत्र में हम काफी उन्नत थे। तमाम बर्बर आक्रमणों ने यहां बहुत कुछ नष्ट करने का प्रयत्न किया। यहां की ज्ञान की परंपरा को नष्ट करने का भरपूर प्रयत्न हुआ, परंतु जो ज्ञान लोक में समाहित हो चुका था, वह पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होकर आगे बढ़ता रहा। योग की परंपरा कमोबेश ऐसे ही आगे बढ़ती रही।
पतंजलि योग दर्शन के अनुसार चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। बौद्ध धर्म के अनुसार ‘कुशल चिंतकग्गता योग:’ अर्थात् कुशल चित्त की एकाग्रता योग है। हिंदू वांगमय में योग शब्द सर्वप्रथम कठोपनिषद में ज्ञानेंद्रियों के नियंत्रण और मानसिक गतिविधि के निवारण के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, जो उच्चतम स्थिति प्रदान करने वाला माना गया है। इस प्रकार अनेक व्याख्याताओं के द्वारा योग को परिभाषित कर उसकी महत्ता को स्थापित किया गया।
योग मूल रूप से भारत की ही खोज है। आधुनिक युग के प्रारंभ में हमने तमाम अवधारणाओं को अपनाया। लेकिन हम स्वयं शायद इतने सक्षम नहीं हुए थे कि योग को उसी तार्किकता के साथ लोगों के मध्य तक पहुंचा पाए। हालांकि लोक में प्रचलित आसन, मुद्राएं आदि अनेक योग से संबंधित क्रियाओं का जन में प्रयोग होता रहा। योग को योग की तरह प्रसिद्धि दिलाने में बी.के.एस. अयंगर की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने यथा-संभव देश-दुनिया में योग को स्थापित करने का प्रयत्न किया।
उन्होंने योग पर “लाइट ऑन योगा”, ‘लाइट ऑन प्राणायाम’, ‘लाइट ऑन द योग सूत्राज ऑफ पतंजलि” जैसी महत्त्वपूर्ण किताबें भी लिखीं। अयंगर की इस परंपरा को एक आंदोलन का रूप योग गुरु स्वामी रामदेव ने दिया। इन्होंने पूरे भारत के लगभग सभी कोनों में जा-जाकर योग की पुनर्स्थापना में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। बाबा रामदेव के प्रयासों का परिणाम था कि लोगों के भीतर योग को लेकर इतनी जागृति व चेतना फैली।
वर्तमान समय में जिस तरह से लोगों की जीवनशैली बदल रही है, वह मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। अधिक धन कमाने की चाह में बड़े-बड़े महानगरों में लोग दिन-रात अथक परिश्रम करते हैं। संतुलित आहार लेने की बजाय पेट भरने के लिए कुछ भी जैसे फ़ास्ट फूड आदि खाते रहते हैं। इसका परिणाम यह है कि मनुष्य अनेक बिमारियों का शिकार बन रहा है। शारीरिक अस्वस्थता और मानसिक तनाव के इस जीवन में योग लोगों के लिए एक अभेद्य रक्षाकवच का कार्य कर सकता है। इस जीवन-शैली में योग का महत्व और बढ़ जाता है।
योग न सिर्फ व्यक्ति की अधिक लालसाओं को संयमित करता है, बल्कि मधुमेय, रक्तचाप, तनाव, अनिद्रा, मोटापा आदि गंभीर रोगों से भी बचाता है। आज अगर योग की लोकप्रियता बढ़ी है, तो इसके पीछे कारण है बढ़ी हुई बीमारियाँ। भारत में रक्तचाप, मधुमेह और मोटापा तो सामान्य बीमारियाँ हैं, जिनसे लगभग आधा भारत ग्रसित है। योग इन सब में बहुत ही कारगर भूमिका अदा करता है।
योग न केवल शारीरिक स्वास्थ्य में काफ़ी मददगार है, बल्कि मानसिक शांति का भी बहुत शानदार ज़रिया है। आज जबकि अधिकाधिक लोग मानसिक रूप से अशांति के दौर में हैं, ज़िंदगी की आपाधापी में मानसिक शांति खो चुके हैं; ऐसे में योग और प्राणायाम इनसे निजात दिलाने का एक बेहतरीन साधन है। मन की एकाग्रता बहुत ज़रूरी है और योग के माध्यम से हम अपने मन को आसानी से संतुलित एवं एकाग्रचित कर सकते हैं। कुल मिलाकर योग शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है।
भारत सरकार के प्रयास से भारतीय योग को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई गयी और अब २१ जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में समूचे विश्व में मनाया जाता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस प्रयास का समस्त श्रेय नरेंद्र मोदी सरकार को जाता है।
ऐसे में बहुत से लोगों का यह अंदेशा रहता है कि स्वामी रामदेव जो कि नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं और मोदी को लगातार अपना समर्थन देते रहे हैं, योग की ब्रांडिंग कर के उसे बेच रहे हैं और मोदी सरकार उनकी मददगार है। लेकिन यह बात निरर्थक है। लोगों के निशाने पर असल में योग गुरू द्वारा खड़ा किया गया पतंजलि ब्राण्ड है जो बाज़ार में अन्य सभी उत्पादों को कड़ी टक्कर दे रहा है और लगातार बढ़त बना रहा है। रही बात योग की ब्रांडिंग कर बेचने की तो अगर स्वामी रामदेव ने इसके प्रचार-प्रसार में अपनी अथक भूमिका ना अदा की होती तो शायद ही यह आज लोगों के मध्य इतना प्रचलित हो पाता।
वैसे, स्वामी रामदेव ने कुछ बहुत अलग नहीं किया जो भारतीय ज्ञान में योग की विशिष्ट परम्परा रही है, बस उसी परम्परा को आधुनिक रूपों में प्रचलित कर के लोगों के मध्य तक पहुँचाया और यही उनका सबसे बड़ा योगदान है। अपने परम्परा को पुनर्जीवित करने का महत्वपूर्ण कार्य उन्होंने किया। उसका परिणाम यह हुआ कि हम जिस परम्परा को भूल चुके थे, आज उसे ही अपनाकर करोड़ों सामान्य लोग अपने मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को दुरुस्त कर रहे हैं।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)