मोदी सरकार की दूरगामी योजना देश को गैस आधारित अर्थव्यवस्था में बदलने की है। फिलहाल देश के ऊर्जा सम्मिश्र में प्राकृतिक गैस की भागीदारी 7 फीसदी है, जो कि विश्व औसत से काफी कम है। सरकार अगले तीन वर्षों में इस अनुपात को 15 फीसदी तक बढ़ाना चाहती है। इस लक्ष्य को घरेलू उत्पादन में बढ़ोत्तरी और सस्ती तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) के आयात के बल पर पूरा किया जाएगा। इसके अलावा ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कटौती करने के लिए भी सरकार प्राकृतिक गैस जैसे स्वच्छ र्इंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है।
जिस प्रकार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देश में सड़कों का जाल बिछा दिया, उसी प्रकार नरेंद्र मोदी सरकार देश में पाइपलाइन का जाल बिछाने जा रही है ताकि कच्चे तेल, एलपीजी व पेट्रोलियम उत्पाद की निर्बाध ढुलाई हो सके। इसकी शुरूआत कुछ महीने पहले हुई जब प्रधानमंत्री ने वाराणसी में 2540 किलोमीटर लंबी जगदीशपुर-हल्दिया और बोकारो-धामरा (जेएचबीडीपीएल) गैस पाइपलाइन परियोजना का उद्घाटन किया। यह देश के पूर्वी हिस्से को राष्ट्रीय गैस ग्रिड से जोड़ेगी।
इस परियोजना के अमल में आने से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में औद्योगिक, वाणिज्यिक, घरेलू और परिवहन क्षेत्र के इस्तेमाल के लिए प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की जाएगी। अब सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन अगले चार वर्षों में 20 परियोजनाओं के जरिए पाइपलाइन क्षमता में 2.5 करोड़ टन और जोड़ने की योजना पर काम कर रही है। इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना है पाइपलाइन के जरिए पश्चिमी तट को पूर्वी भारत से जोड़ना। यह पाइपलाइन गुजरात के कांधला तट से पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर तक बिछाई जाएगी। यह पाइपलाइन अहमदाबाद, उज्जैन, भोपाल, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी जैसे शहरों से होकर गुजरेगी और सालाना 37.5 लाख टन का माल का परिवहन होगा।
मोदी सरकार की दूरगामी योजना देश को गैस आधारित अर्थव्यवस्था में बदलने की है। फिलहाल देश के ऊर्जा सम्मिश्र में प्राकृतिक गैस की भागीदारी 7 फीसदी है, जो कि विश्व औसत से काफी कम है। सरकार अगले तीन वर्षों में इस अनुपात को 15 फीसदी तक बढ़ाना चाहती है। इस लक्ष्य को घरेलू उत्पादन में बढ़ोत्तरी और सस्ती तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) के आयात के बल पर पूरा किया जाएगा। इसके अलावा ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कटौती करने के लिए भी सरकार प्राकृतिक गैस जैसे स्वच्छ र्इंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है। गौरतलब है कि सरकार ने 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में एक-तिहाई कटौती करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
विकास की दौड़ में भारत अपरंपरागत ऊर्जा के साथ-साथ गैस पर भी ध्यान दे रहा है, क्योंकि अपरंपरागत ऊर्जा की अनिश्चित प्रकृति को देखते हुए प्राकृतिक गैस दोनों के बीच एक पुल का काम करती है। यह ऊर्जा उत्पादन की लागत भी कम कर देती है। इन विशेषताओं के बावजूद गैस खपत में भारी असमानता है। पश्चिमी व उत्तर भारत में गैस पाइपलाइन के बेहतर नेटवर्क के चलते जहां सर्वाधिक खपत होती हैं, वहीं पूर्वी व दक्षिणी भारत में खपत बहुत कम है। जैसे-जैसे प्राकृतिक गैस संबंधी आधारभूत ढांचा बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यह असंतुलन कम हो रहा है।
पूर्वी व दक्षिणी भारत में गैस आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार सस्ते एलएनजी आयात और गैस पाइपलाइन कूटनीति पर काम कर रही है। भारत में मौजूदा गैस पाइपलाइन की कुल लंबाई 15000 किमी है। राष्ट्रीय गैस ग्रिड के पूरा होने के लिए अभी 15000 किलोमीटर की और जरूरत है। सरकार ने अगले पांच-छह वर्षों में नेशनल गैस ग्रिड के पूरा होने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
गौरतलब है कि सरकार जगदीशपुर-हल्दिया और बोकारो-धामरा परियोजना के अलावा कई दूसरी गैस पाइपलाइन परियोजनाओं पर भी काम कर रही है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी गेल इंडिया आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा से मध्य प्रदेश के विजयपुर तक एक गैस पाइपलाइन बिछाने पर 8000 करोड़ रूपये का निवेश करेगी। कंपनी विजयवाड़ा से गैस का परिवहन कर उसे मध्य और उत्तर भारत में उपभोक्ताओं तक पहुंचाएगी।
हाइड्रोकार्बन विजन 2030 के तहत पूर्वोत्तर भारत में तेल-गैस उत्पादन दो गुना करने का लक्ष्य रखा गया है। गौरतलब है कि मौजूदा समय में पूर्वोत्तर भारत की अधिकांश गैस खुले में जला दी जाती है, क्योंकि उसे उपभोक्ताओं तक पहुंचाने की व्यवस्था नहीं है। ओएनजीसी ने 2022 तक त्रिपुरा में गैस खोज हेतु 5050 करोड़ रूपये के निवेश का लक्ष्य रखा है। त्रिपुरा में अब तक 11 गैस क्षेत्र खोजे जा चुके हैं जिनमें से 7 में उत्पादन हो रहा है।
सरकार ने गैस उत्पादन व आपूर्ति में बढ़ोत्तरी हेतु कई समझौते किए हैं। बांग्लादेश पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने इस साल अप्रैल में एक समझौता किया। इसके तहत बांग्लादेश के चटगांव में एलपीजी टर्मिनल की स्थापना की जाएगी जहां से पूर्वोत्तर में गैस की आपूर्ति की जाएगी। पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी व बांग्लादेश के परबतीपुर के बीच हाइ स्पीड डीजल की ढुलाई हेतु एक अन्य समझौता नुमलीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड व बांग्लादेश पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन के बीच हुआ है। इसके अलावा सरकार म्यांमार के सियेट बंदरगाह से बांग्लादेश के चटगांव होते हुए 6900 किमी लंबी गैस पाइपलाइन परियोजना पर काम कर रही है ताकि पूर्वोत्तर व पश्चिम बंगाल में गैस की किल्लत दूर की जा सके।
पूर्वी भारत के साथ-साथ पूरे देश में गैस आपूर्ति बढ़ाने के लिए सरकार तुर्कमेनिस्तान- अफगानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया यानी तापी और ईरान-पाकिस्तान इंडिया गैस पाइपलाइन के समय पर क्रियान्वयन को लेकर गंभीर है। सरकार मध्य-पूर्व की गैस को गहरे समुद्री रास्ते से आयात करने की योजना बना रही है ताकि सीमा क्षेत्र के विवादों से बचा जा सके। पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए सरकार ईरानी गैस को पाकिस्तान को बॉयपास कर आयात करने पर विचार कर रही है जैसे चाबहार बंदरगाह से सीधे पोरबंदर तक। इसके साथ-साथ सरकार की योजना लंबी अवधि के सौदे करने की है ताकि गैस की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव से बचा जा सके। स्पष्ट है, अब प्राकृतिक गैस विकास की नई ऊर्जा बन चुकी है और मोदी सरकार इसका लाभ उठाने में पूरी शिद्दत से जुटी है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)