उदारीकरण के दौर में जिस तरह विदेशी सामान भारतीय बाजार में छा गए उस तरह विदेशी बाजारों में भारतीय सामानों की धूम नहीं मची। इसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारे यहां उत्पादन लागत ज्यादा आती है, जिससे हमारे सामान घरेलू के साथ-साथ विदेशी बाजारों में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते हैं। बिजली, सड़क, जटिल कारोबारी माहौल, कौशल की कमी, खराब कानून व्यवस्था आदि के चलते हम देश में मौजूद सस्ते श्रम का पूरा फायदा उठाने में नाकाम रहे हैं। अब मोदी सरकार मेक इन इंडिया पहल के तहत देश को विनिर्माण धुरी बनाने के लिए इन सभी बाधाओं को दूर करने में जुटी है जिससे वह दिन दूर नहीं जब घरेलू के साथ-साथ विदेशी बाजारों में भी मेड इन इंडिया का डंका बजने लगेगा। भारत को मानव संसाधन केंद्र बनाने हेतु प्रधानमंत्री का सर्वाधिक बल कौशल विकास पर है। इसके लिए “स्किल इंडिया” अभियान शुरू किया गया है। इस अभियान को गरीबी के खिलाफ लड़ाई का नाम दिया गया है। इसके तहत 2022 तक 40 करोड़ लोगों को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य है। पिछले दो वर्षों में बिजली क्षेत्र में तेजी से सुधार हुआ है। बिजली का उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर है और मांग-आपूर्ति की खाई लगातार कम हो रही है। इसे देखते हुए सभी घरों तक चौबीसों घंटे बिजली आपूर्ति का लक्ष्य 2022 से तीन साल पहले अर्थात 2019 तक ही पूरा होने की उम्मीद है। कारोबारी जटिलताओं को दूर करने के लिए सरकार प्रक्रियाओं का सरलीकरण कर रही है।
मोदी सरकार लॉजिस्टिक्स लागत घटाने के लिए जलमार्ग से माल ढुलाई को बढ़ावा दे रही है। गौरतलब है कि तटीय व आंतरिक जल परिवहन न केवल सस्ता पड़ता है बल्कि इससे प्रदूषण भी नहीं फैलता है। जहां प्रति किलोमीटर माल ढुलाई की लागत सड़क से डेढ़ रूपये व रेल से एक रूपये आती है, वहीं जल मार्ग से यह लागत महज 25 पैसा आती है। स्थापना व रख-रखाव में भी जलमार्ग को कोई तोड़ नही है। एक किलोमीटर रेल मार्ग बनाने में जहां एक से डेढ़ करोड़ रूपये लगते हैं, वहीं सड़क बनाने में 60 से 75 लाख रूपये खर्च होते हैं लेकिन इतनी ही दूरी के जलमार्ग के विकास पर मात्र 10 लाख रूपयों की जरूरत पड़ती है। सबसे बढ़कर जलमार्गों के रखरखाव का खर्च न के बराबर होता है।
मोदी सरकार का सबसे ज्यादा जोर लॉजिस्टिक्स (संचालन एवं माल व्यवस्था) लागत घटाने पर है क्योंकि इसके चलते भारतीय सामान बाजार में पहुंचते-पहुंचते महंगे हो जाते हैं। उदाहरण के लिए किसी सामान की दिल्ली से मुंबई तक की परिवहन लागत मुंबई से लंदन तक के माल भाड़े से ज्यादा होती है। रेल, सड़क, हवाई व समुद्री परिवहन में समन्वय की कमी के कारण ढुलाई में देरी होती है। जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह, मुंबई देश का सबसे बड़ा कंटेनर पोर्ट है जो 55 फीसदी राष्ट्रीय ट्रैफिक हैंडल करता है। लेकिन यहां पर भंडारण सुविधा, उपकरणों व कनेक्टीविटी की भारी कमी है। देश में 12 बड़े बंदरगाह हैं लेकिन कोई भी बंदरगाह कोलंबो, दुबई, सिंगापुर की भाति बड़े लोड हैंडल नहीं कर पाता है। एयर कारगो की भी यही स्थिति है। उदाहरण के लिए सिंगापुर में एयर कारगो 24 घंटे में क्लीयर होता है तो हांगकांग में 6 घंटे में जबकि भारत में 72 घंटे लगते हैं। इन्हीं कारणों से माल ढुलाई में सड़क परिवहन का हिस्सा बढ़ता जा रहा है जो महंगा होने के कारण लागत बढ़ा देता है। उदाहरण के लिए 1980 के दशक में माल ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी 60 फीसदी थी जो कि 90 के दशक में 48 फीसदी और अब घटकर 31 फीसदी रह गई। देश की सड़कों पर वाहनों की बढ़ती भीड़ के कारण यहां ट्रक औसतन 20 से 25 किलोमीटर की रफ्तार से चलते हैं और एक दिन में 250 से 300 किलोमीटर की दूरी तय कर पाते हैं। इसके विपरीत विकसित देशों में ट्रक रोजाना 700 से 800 किमी दूरी तय करते हैं।
भारत में लॉजिस्टिक्स लॉगत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 14 फीसदी है जबकि विकसित देशों में यह 7 फीसदी है। भारी-भरकम लॉजिस्टिक्स खर्च की वजह से भारतीय कंपनियां अपने कारोबार का वैश्विक विस्तार नहीं कर पा रही हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि उदारीकरण के दौर में कारोबार में बढ़ोत्तरी के बावजूद लॉजिस्टिक्स क्षमता में सुधार के उपाय नहीं हुए। विश्व बैंक की लॉजिस्टिक्स परफार्मेंस रिपोर्ट 2014 में 160 देशों में भारत 54वें स्थान पर है। दूसरी ओर दक्षिण अफ्रीका 34वें, चिली 42वें, पनामा 45वें और वियतनाम 48वें पायदान पर है। एसोचैम के अध्ययन के मुताबिक यदि भारत अपनी लॉजिस्टिक्स लागत को जीडीपी के 14 फीसदी से घटकार 9 फीसदी कर ले तो हर साल 50 अरब डॉलर की बचत होने लगेगी।
मोदी सरकार लॉजिस्टिक्स लागत कम करने के लिए बहुआयामी प्रयास कर रही है। 10 लाख करोड़ रूपये के निवेश से सागरमाला परियोजना शुरू की गई है। इसके तहत 37 आधारभूत ढांचा क्लस्टरों का विकास किया जाएगा जिसमें एक करोड़ रोजगार के अवसर सृजित होंगे। आने वाले 10 साल में पोत एवं बंदरगाह आधारभूत ढांचे के विकास हेतु चार लाख करोड़ रूपये का निवेश किया जाएगा। सागरमाला परियोजना का लक्ष्य है लॉजिस्टिक्स लागत को जीडीपी के 14 फीसदी से घटकर 10 फीसदी करना। देश के अंदरूनी इलाकों में आधारभूत ढांचा बेहतर करके लॉजिस्टिक्स लागत कम करने की नीति बनाई जा रही है। शहर, रेलवे यार्ड व बंदरगाह से गोदामों तक माल ढुलाई में जाम एक बड़ी समस्या है। इसे देखते हुए गोदामों को शहर से बाहर रिंग रोड पर स्थानांतरित किया जाएगा। केंद्र सरकार ने बंदरगाहों की मौजूदा क्षमता 140 करोड़ टन को 2025 तक बढ़ाकर 300 करोड़ टन करने की योजना तैयार की है।
मोदी सरकार लॉजिस्टिक्स लागत घटाने के लिए जलमार्ग से माल ढुलाई को बढ़ावा दे रही है। गौरतलब है कि तटीय व आंतरिक जल परिवहन न केवल सस्ता पड़ता है बल्कि इससे प्रदूषण भी नहीं फैलता है। जहां प्रति किलोमीटर माल ढुलाई की लागत सड़क से डेढ़ रूपये व रेल से एक रूपये आती है, वहीं जल मार्ग से यह लागत महज 25 पैसा आती है। स्थापना व रख-रखाव में भी जलमार्ग को कोई तोड़ नही है। एक किलोमीटर रेल मार्ग बनाने में जहां एक से डेढ़ करोड़ रूपये लगते हैं, वहीं सड़क बनाने में 60 से 75 लाख रूपये खर्च होते हैं लेकिन इतनी ही दूरी के जलमार्ग के विकास पर मात्र 10 लाख रूपयों की जरूरत पड़ती है। सबसे बढ़कर जलमार्गों के रखरखाव का खर्च न के बराबर होता है। गौरतलब है कि जहां भारत के कुल यात्री व माल परिवहन में जलमार्ग की हिस्सेदारी महज 3.5 फीसदी है वहीं चीन, बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस में यह अनुपात 30 से 40 फीसदी है। मोदी सरकार जलमार्ग से ढुलाई को बढ़ावा देने हेतु देश में तीन मल्टी मॉडल हब बना रही है। इनके पूरा होने पर माल से लदे जहाज महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश से सीधे बांग्लादेश, म्यांमार पहुंचने लगेंगे। अनाज, खाद्य तेल, दालों, कोयला आदि का परिवहन कम कीमत पर होने से महंगाई में भी कमी आएगी। माल ढुलाई की सस्ती और प्रतिस्पर्धी सुविधा के साथ-साथ सरकार देश भर में औद्योगिक कॉरिडोर बना रही है ताकि देश में विनिर्माण को बढ़ावा मिले और भारत वैश्विक विनिर्माण धुरी बने।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)