यदि हम भारत में धर्मान्तरण के मुद्दे को लेकर गम्भीर हैं तो हमें सुनील सरदार और जोसेफ डिसूजा का नाम जानना चाहिए। सुनील सरदार महाराष्ट्र से हैं और ट्रूथसिकर्स इंटरनेशनल के नाम से एक गैर सरकारी संस्था चलाते हैं। यह धर्मान्तरण का भारत में बड़ा खिलाड़ी है। सुनील सरदार घोषित तौर पर धर्मान्तरण के माध्यम से भारत में जिसस का किंगडम स्थापित करना चाहता है। अरूंधति राय भी सुनील के संपर्क में है।
क्रिश्चियंस जीवन स्तर सुधारने की बात करते हैं, धर्मान्तरण से पहले। ऐसे धर्मान्तरण के ठेकेदारों से पूछा जाना चाहिए कि इसी तरह धोखा देकर मैक्सिको और फीलीपिन्स में इन्होंने धर्मान्तरण कराया था, फिर वहां के हालात क्यों नहीं सुधरे अब तक। वहां के लोग अपने जीवन स्तर को जिसस के शरण में जाने के बाद सुधरा हुआ देखना चाहते हैं। नए लोगों को सब्ज बाग दिखाकर धर्मान्तरित करने की जगह, जिनका धर्म वे पहले भ्रष्ट कर चुके हैं, उनके जीवन में उन्हें पहले रोशनी लेकर जाना चाहिए।
बात जोसफ डिसूजा की करें तो ये एक संस्था चलाते हैं, जिसका नाम है डीएफएन (दलित फ्रीडम नेटवर्क)। दिलचस्प यह है कि दलित फ्रीडम नेटवर्क एवं जिलिकल क्रिश्चियन संस्था है। संस्था का आधिकारिक तौर पर मानना है कि वह दलितों को मानवीय गरिमा और सामाजिक स्वतंत्रता दिलाने के लिए, उन्हें सशक्त करने के लिए सूचना के स्तर पर, मानवीयता के स्तर पर और आर्थिक स्तर पर सहायता प्रदान करता है। दलित फ्रीडम नेटवर्क नाम का यह संगठन कालरेडो से चल रहा है। भारत में अपने आपरेशन के लिए संस्था ने आल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल से हाथ मिलाया हुआ है। आल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल भारत में लगभग 2000 क्रिश्चियन संगठनों के साथ देश भर में काम करता है। अब सबसे महत्वपूर्ण बात, दलित फ्रीडम नेटवर्क भारत में आल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल को यूएस में अपनी बात कहने के लिए मदद करता है। डीएफएन जाति आधारित छूआछूत को लेकर यूएस में सेमिनार, गोष्ठी कराता है। इस तरह की गोष्ठियों पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। इस तरह की गोष्ठियों में जहां सिर्फ भारत विरोधी बात की जाती है, सामाजिक सद्भाव बिगड़ने के अलावा इस तरह की गोष्ठियों का कोई लाभ नहीं है।
कांचा इलैया जैसे कथित दलित चिन्तकों का पाखंड इस बात में स्पष्ट नजर आता है कि भारत में श्री इलैया जहां एक तरफ खुद को प्रगतिशील और वामपंथी दिखाते हैं। दक्षिणपंथियों का साया भी अपने ऊपर पड़ने नहीं देते। वहीं दूसरी ओर वे यूएस में जिस दलित फ्रीडम नेटवर्क के खर्चे पर भाषण देने जाते हैं। वह दलित फ्रीडम नेटवर्क यूनाइटेड स्टेट्स में कट्टर दक्षिणपंथी क्रिश्चियनों का समूह है।
‘ब्रेकिंग इंडिया’ के लेखक राजीव मल्होत्रा ने एफसीआरए के माध्यम से भारत भेजे जा रहे पैसे और उन पैसों का किस तरह भारत के खिलाफ इस्तेमाल हो रहा है, इसपर विस्तृत काम किया है। कांचा इलैया पर यूएस चर्च इतना पैसा खर्च कर रहा है तो बदले में उसने कांचा से सूद समेत अपना पैसा वसूल भी लिया है। वर्ना एक चर्च की कठपुतली की तरह कांचा नहीं कहते कि भारत के दलित अपने आप को बुद्ध की तुलना में जिसस के अधिक करीब मानते हैं। कांचा इलैया ने किताब लिखी – व्हाय आई एम नॉट हिन्दू। कांचा को अच्छे और बुरे एनआरआई का ज्ञान इतना ही है कि बॉबी जिन्दल, निकी हेली, रिचर्ड वर्मा जैसे क्रिश्चियन धर्म को स्वीकार कर लेने वाले प्रवासी भारतीय उनके लिए अच्छे प्रवासी भारतीय हैं और जिन्होंने सनातन धर्म को श्रेष्ठ समझा, वे सब उन्हें बुरे लोग नजर आते हैं।
क्रिश्चियंस जीवन स्तर सुधारने की बात करते हैं, धर्मान्तरण से पहले। ऐसे धर्मान्तरण के ठेकेदारों से पूछा जाना चाहिए कि इसी तरह धोखा देकर मैक्सिको और फीलीपिन्स में इन्होंने धर्मान्तरण कराया था, फिर वहां के हालात क्यों नहीं सुधरे अब तक। वहां के लोग अपने जीवन स्तर को जिसस के शरण में जाने के बाद सुधरा हुआ देखना चाहते हैं। नए लोगों को सब्ज बाग दिखाकर धर्मान्तरित करने की जगह, जिनका धर्म वे पहले भ्रष्ट कर चुके हैं, उनके जीवन में उन्हें पहले रोशनी लेकर जाना चाहिए।
(लेखक पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)