निर्माण चाहे भौतिक भवनों या वस्तुओं का ही क्यों न हो, वह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को प्रेरित एवं उत्साहित करता है, वह इरादों एवं हौसलों को परवान चढ़ाता है, उम्मीदों एवं सपनों को पंख देता है, वह राष्ट्र की सामूहिक चेतना एवं संकल्प-शक्ति को मज़बूत बनाता है। नया संसद-भवन भारत की लोकतांत्रिक यात्रा का गौरवशाली कीर्त्तिस्तंभ है, मील का पत्थर है।
आज का दिन देश के लिए ऐतिहासिक रहा, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नए संसद भवन की आधारशिला रखी। 2022 तक संसद भवन की नयी इमारत बनकर तैयार हो जाएगी। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि पुराने संसद भवन में देश की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए काम हुआ था, अब नयी संसद में देश की आकांक्षाओं को पूरा किया जाएगा।
याद करें, तो लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखने वाले सभी भारतीयों की आँखों में आज भी वह चित्र जीवंत और सजीव होगा, जब 2014 में पहली बार संसद-भवन में प्रवेश करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसकी ड्योढ़ी (प्रवेश-द्वार) पर शीश नवाकर लोकतंत्र के इस महान मंदिर के प्रति गहरी श्रद्धा व्यक्त की थी। वह श्रद्धा स्वाभाविक थी।
अभाव एवं संघर्षों में पला-बढ़ा, समाज के अत्यंत निर्धन-वंचित-साधारण पृष्ठभूमि से आने वाला व्यक्ति भी यदि देश के सर्वोच्च पद तक का सफ़र तय कर पाता है तो निश्चित रूप से यह भारत की महान संसदीय परंपरा एवं सुदृढ़ लोकतंत्र का प्रत्यक्ष प्रमाण है और संसद-भवन उसका साक्षात-मूर्त्तिमान स्वरूप है।
हमारी संसद न जाने कितने गुदड़ी के लालों के असाधारण कर्तृत्व एवं व्यक्तित्व का साक्षी रहा है! इसीलिए लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले सभी नागरिकों के लिए वह किसी पवित्र तीर्थस्थल से कम नहीं।
इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि सात दशक से अधिक की यात्रा में छिटपुट बाधाओं और आपातकाल जैसे झंझावातों को सफलतापूर्वक पार कर भारत का लोकतंत्र और भी मज़बूत एवं परिपक्व हुआ है। 1947 से लेकर अब तक ऐसे अनेकानेक क्षेत्र हैं, जिनमें भारत ने तरक्क़ी की नई-नई इबारतें लिखी हैं। समय के साथ-साथ देश की तस्वीर और तक़दीर दोनों बदली है।
विकास की ओर भारत के बढ़ते क़दमों के रूप में ही आजादी की 75वीं सालगिरह पर प्रधानमंत्री मोदी देश को नए संसद-भवन की सौग़ात देने जा रहे हैं। लोकतंत्र के इस महान मंदिर को भव्य, अद्भुत एवं अलौकिक रूप देने का सपना प्रधानमंत्री के हृदय में वर्षों से पलता रहा है। निःसन्देह नया संसद-भवन समस्त देशवासियों के लिए भी गौरव का प्रतीक होगा।
नए संसद-भवन की छतों और दीवारों पर देश की कला एवं संस्कृति के विविध रंग उकेरे जाएँगे। यह विविधता में एकता को सही मायनों में प्रतिबिंबित करेगा। दिल्ली भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में आता है, इसलिए इसमें भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इस नए भवन में लोकसभा सांसदों के लिए लगभग 888 और राज्यसभा सांसदों के लिए 326 से अधिक सीटें होंगीं। इसमें दोनों सदनों के साझा सत्र में 1224 सांसदों से भी अधिक के बैठने की व्यवस्था होगी।
दर्शक दीर्घा एवं गणमान्य अतिथियों के बैठने के लिए भी सीटों की संख्या बढ़ाई जाएगी। नए भवन को त्रिकोण के आकार में डिजाइन किया गया है। इसे मौजूदा परिसर के पास ही बनाया जाएगा। 64,500 वर्गमीटर में बनने वाले इस नए संसद-भवन की लागत लगभग 971 करोड़ रुपए आने का अनुमान है। इसे चार मंजिला रखने की योजना है।
इसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा सभापति, प्रधानमंत्री एवं सांसदों के आने-जाने हेतु सुगमता की दृष्टि से चार प्रवेश-द्वार होंगें। इसे पेपरलेस और प्रदूषणमुक्त रखे जाने का प्रयास रहेगा। नए संसद-भवन में हर सांसद के लिए उनका एक कार्यालय भी होगा।
ग़ौरतलब है कि मौजूदा संसद-भवन में सभी सांसदों के लिए कार्यालय का अभाव है। फ़िलहाल सभी सांसदों की सीट के सम्मुख केवल एक माईक लगा होता है, पर नई व्यवस्था में उनकी सीट के सामने आँकड़ों और जानकारियों से लैस टेबलेट की सुविधा प्रदान की जाएगी।
आज़ादी के बाद भारत द्वारा बनाया जाने वाला यह पहला संसद-भवन है, जो उच्च तकनीक एवं वैश्विक मानकों के अनुरूप होगा। जगह की कमी से जूझ रहे 100 साल पुराने संसद-भवन के स्थान पर नए संसद-भवन का निर्माण समय की माँग है।
उल्लेखनीय है कि मौजूदा संसद-भवन का निर्माण ब्रिटिश भारत में एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स और सर हर्बर्ट बेकर ने किया था। जबकि नए संसद-भवन के निर्माण में भारत के वास्तुकार, भारत का धन और भारत का श्रम लगेगा।
इसके निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से 2000 इंजीनियर और कामगार तथा परोक्ष रूप से लगभग 9000 कामगार जुड़ेंगे। एक प्रकार से यह नए एवं आत्मनिर्भर भारत का गौरवशाली प्रतीक होगा। यह जन-मन की आशाओं का केंद्रबिंदु होगा।
निर्माण चाहे भौतिक भवनों या वस्तुओं का ही क्यों न हो, वह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को प्रेरित एवं उत्साहित करता है, वह इरादों एवं हौसलों को परवान चढ़ाता है, उम्मीदों एवं सपनों को पंख देता है, वह राष्ट्र की सामूहिक चेतना एवं संकल्प-शक्ति को मज़बूत बनाता है। नया संसद-भवन भारत की लोकतांत्रिक यात्रा का गौरवशाली कीर्त्तिस्तंभ है, मील का पत्थर है। यह राष्ट्र के मस्तक का रत्नजड़ित मान-मुकुट है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)