2014 में सत्तारूढ़ हुई नरेंद्र मोदी की सरकार ने पूर्वोत्तर की समस्या को समझा है और इस क्षेत्र का समग्र विकास सुनिश्चित करने के लिए कटिबद्ध दिख रही है। सरकार द्वारा इस दिशा में कई कदम भी उठाए गए हैं। सरकार की नित नई योजनाओं और परियोजनाओं का असर यहां की जनता के जीवन पर भी अब पड़ने लगा है। स्थानीय जनता में नई उम्मीद पैदा हुई है।
पौराणिक काल से ही भारत वर्ष के इतिहास में पूर्वोत्तर क्षेत्र का गौरवशाली स्थान रहा है। यहां की संस्कृति, भाषाएं, परंपरा, पर्व, त्योहार, वेशभूषा, भोजन आदि हर रूप में इतनी समृद्ध विविधताएं हैं कि इसे भारत का सांस्कृतिक संग्रहालय कहा जाना गलत न होगा। लेकिन खेदजनक है कि यह क्षेत्र आजादी के बाद से ही उपेक्षा का शिकार रहा है।
चार देशों की सीमाओं से घिरे इस भौगोलिक धरातल पर ईसाई प्रचारकों की विभाजनकारी धर्मनीति और अंग्रेजों की औपनिवेशिक राजनीति ने पहले ही यहां के राज्यों में अलगाववाद और उग्रवाद के बीज बो दिए थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मिली उपेक्षाओं ने इन समस्याओं को और गहरा दिया।
जिस समय पूर्वोत्तर में हो रही सुनियोजित घुसपैठ, हिंसा और जबरन धर्मांतरण को प्राथमिकता के आधार पर रोकना जरूरी था, उस समय तत्कालीन केंद्र सरकार वोट बैंक की राजनीति में अन्य राज्यों पर नजर जमाए थी।
लेकिन 2014 में सत्तारूढ़ हुई नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश के इस हिस्से की समस्या को समझा है और इस क्षेत्र का समग्र विकास सुनिश्चित करने व शांति स्थापित करने के लिए कटिबद्ध दिख रही है। सरकार द्वारा इस दिशा में कई कदम भी उठाए गए हैं। सरकार की नित नई योजनाओं और परियोजनाओं का असर यहां की जनता के जीवन पर भी अब पड़ने लगा है। स्थानीय जनता में नई उम्मीद पैदा हुई है।
वर्तमान सरकार भारत के इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में विकास-कार्यों में लगी है और यहां तमाम तरह की महत्वाकांक्षी योजनाओं के क्रियान्वयन पर जोर दे रही है। दशकों से उपेक्षित रहे पूर्वोत्तर को आधिक समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रयास जारी हैं।
यहां तेजी से सड़क, रेल, नदी और हवाई मार्गों के विस्तार के लिए युद्ध स्तर पर काम चल रहे हैं। सैलानियों के पूर्वोत्तर आवागमन के लिए तमाम तरह की तैयारियां की जा रही हैं। यहां के लोगों की स्थानीय समस्या और उनकी मांगों के प्रति वर्तमान सरकार ने रुझान दिखाया है। इस क्षेत्र के वर्षों से लंबित ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा और समाधान के लिए बातचीत को माध्यम बनाया जा रहा है जो कारगर भी हो रही है।
बोडो समझौता
जिस तरह केंद्र सरकार ने असम में शांति और सद्भाव हेतु त्रिपक्षीय समझौते के जरिये करीब पांच दशकों से चल रहे अलग बोडोलैंड राज्य विवाद का शांतिपूर्ण हल निकाला, वह काबिले तारीफ है। बोडो समुदाय बहुल क्षेत्रों में विकास के लिए केंद्र सरकार की तरफ से तीन वर्षों में 1500 करोड़ रुपये दिए जाने हैं।
बताते चलें कि बोडो समुदाय, ब्रह्मपुत्र घाटी के दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाला सबसे बड़ा जन समुदाय है। यह वही क्षेत्र है जहां बांग्लादेश के घुसपैठियों की सबसे बड़ी शरणस्थली थी। यहां घुसपैठ का सिलसिला 1950 से जारी था। ये बांग्लादेशी घुसपैठिये इनकी खेती की जमीन व जंगल आदि संसाधनों पर कब्जा करते गए।
हालात ऐसे बने कि भारतीय मूल के ये बोडो समुदाय के लोग संकटग्रस्त हो गए। हर तरह की परेशानी और संकट झेल रहे इस समुदाय के बीच सरकार को लेकर असंतोष, आक्रोश व हिंसा की भावना उपजती गयी और इसी ने अलग बोडोलैंड राज्य की मांग में हिंसात्मक आंदोलन को जन्म दिया।
यूनाइटेड बोडो पीपुल्स ऑर्गेनाइजेशन ने 1972 में बोडोलैंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन का नेतृत्व किया जिसमें बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। लेकिन अभी हालात नियंत्रित हैं।
ब्रूरिआंग समुदाय का पुनर्वास
बोडो समझौते के अलावा वर्तमान सरकार की एक और ऐतिहासिक पहल है ब्रूरिआंग समुदाय का पुनर्वास। दरअसल ब्रूरिआंग हिंदू जन-समुदाय है जो अपने ही देश में 23 वर्षों से शरणार्थी के रूप में जीवन बसर कर रहा था। शरणार्थी के जीवन का अर्थ यह था कि उन्हें सभी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहना था।
उनके पास न घर था, न जमीन, न चिकित्सा और न ही कोई शैक्षिक सुविधाएं। ये हमारे देश के वे लोग थे जिनको ईसाई धर्म स्वीकार न करने के कारण अपने ही पैतृक राज्य मिजोरम को छोड़कर त्रिपुरा में शरण लेनी पड़ी थी। इनकी कहानी कश्मीरी पंडितों की कहानी से अलग ना थी। उन्हें अपनी आस्थाओं, मान्यताओं और धर्म को मानने के कारण हिंसा, अमानवीयता और मौत के डर से अपने ही जमीन से पलायन करना पड़ा था।
ऐसे में 16 जनवरी 2020 को नई दिल्ली में भारत सरकार, त्रिपुरा और मिजोरम सरकार तथा ब्रूरिआंग प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता हुआ। इस समझौते में तय हुआ कि लगभग 34 हजार ब्रू शरणार्थियों को त्रिपुरा में ही बसाया जाएगा। उन्हें सीधे सरकारी तंत्र से जोड़कर राशन, यातायात, शिक्षा आदि की सुविधाएं प्रदान की जाएंगी और उनके पुनर्वास में सरकार उनकी मदद करेगी। इस समझौते ने अपने ही देश में शरणार्थी का जीवन जी रहे लोगों को आत्मसम्मान दिलाया और पूर्ण अधिकार से जीवन जीने की हिम्मत दी।
अन्य विकासपरक कार्य
इसके अलावा नगालैंड की दशकों लंबी समस्या का स्थायी समाधान करने की दिशा में कार्य जारी है। 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस समझौते के प्रारूप पर हस्ताक्षर किया था उससे जुडे कई मामलों में कार्य तेजी से चल रहा है।
वर्तमान परिदृश्य पर बात करें तो इन दिनों केंद्र सरकार पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत को लेकर बहुत ही सजग है। यहां की तमाम चुनौतियों पर प्रधानमंत्री व्यक्तिगत रूप से नजर रखे हुए हैं। हाल ही में मणिपुर की बहनों को रक्षाबंधन के तोहफे के तौर पर प्रधानमंत्री ने 3,000 करोड़ की लागत से पूरे होने वाले वाटर सप्लाई प्रोजेक्ट को सुपुर्द किया है। इसके शुरू होने से यहां के लोगों की पानी की दिक्कतें कम होंगी।
प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार, इस प्रोजेक्ट के शुरू होने से 1,700 से ज्यादा गांवों के लिए जलधारा निकलेगी जो वहाँ के लिए जीवनधारा का काम करेगी। ये प्रोजेक्ट आज ही नहीं, बल्कि अगले 20-22 साल की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। बता दें कि इसका काम लॉकडाउन में भी नहीं रुका।
इसके अलावा नॉर्थ-ईस्ट की देश के अन्य राज्यों से कनेक्टिविटी बढ़ाने पर भी जोर दिया जा रहा है। छह साल में पूरे नॉर्थ-ईस्ट के इन्फ्रास्ट्रक्टर पर हजारों करोड़ का निवेश किया गया है। कोशिश यह है कि नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों की राजधानियों को फोर लेन और गांवों को प्रमुख सड़कों से जोड़ा जाए। इसके लिए करीब 3,000 किमी सड़कें तैयार हो चुकी हैं। जबकि 7,000 किमी के प्रोजेक्ट्स पर काम तेजी से चल रहा है।
रेल कनेक्टिविटी में भी बहुत बड़ा परिवर्तन दिख रहा है । आज नॉर्थ-ईस्ट में छोटे-बड़े करीब 13 ऑपरेशनल एयरपोर्ट काम कर रहे हैं। नॉर्थ-ईस्ट के लिए एक और बड़ा काम हो रहा है। इन-लैंड-वॉटरवेज के क्षेत्र में बड़ा रिवॉल्यूशन दिख रहा है। भविष्य में यहां की कनेक्टिविटी सिर्फ सिलीगुड़ी कॉरिडोर तक सीमित नहीं रहेगी। यहां सीमलेस कनेक्टिविटी पर जोर शोर से काम चल रहा है।
यह सच है कि नॉर्थ-ईस्ट देश की नेचुरल और कल्चरल डायवर्सिटी का बहुत बड़ा प्रतीक है। ऐसे में यदि इसे अन्य राज्यों से जोड दिया गया तो यहाँ के टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा मणिपुर की बैम्बू इंडस्ट्री के लिए पार्क को भी मंजूरी मिल चुकी है। साथ ही, नुमालीगढ़ में बायो फ्यूल बनाने पर भी काम हो रहा है। इससे युवाओं और स्टार्टअप को बहुत फायदा मिलेगा।
जाहिर है, आजादी के बाद से उपेक्षित रहे पूर्वोत्तर के राष्ट्रीय एवं सामरिक महत्व को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार ने समझा है और उसके विकास के लिए हर प्रकार से कृतसंकल्पित नजर आ रही है। शीघ्र ही भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में पूर्वोत्तर बड़ी भूमिका निभाएगा।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)