बैड बैंक से फँसे कर्ज की वसूली की राह होगी आसान

फंसे कर्ज को बेचने से जो नकदी बैंक में वापिस आयेगी, उसे पुनः जरूरतमंदों को ऋण के रूप में दिया जा सकेगा, क्योंकि बैंक फंसे कर्ज के लिए पहले ही आवश्यक प्रावधान कर चुके हैं। अतः जो भी रकम वसूल की जाएगी, वह सीधे बैंकों के मुनाफे में जुड़ जाएगी। दुनिया के अनेक देशों में बैड बैंक फंसे कर्ज को बेचने में सफल रही है।

बैंकों को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। इसलिए, बैंकों का स्वस्थ रहना जरुरी है, लेकिन एक लंबे समय से बैंक खास करके सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) या फंसे कर्ज की समस्या से जूझ रहे हैं।

भारतीय बैंक संघ (आईबीए) ने पिछले साल फंसे कर्ज के समाधान के लिए बैड बैंक बनाने का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा था, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया और बजट में बैड बैंक बनाने की घोषणा की और केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में फंसे कर्ज की वसूली के लिये बैड बैंक के पहले हिस्से राष्ट्रीय परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी लिमिटेड (एनएआरसीएल) द्वारा जारी सिक्योरिटी रिसीप्ट्स पर 30,600 करोड़ रुपए की गारंटी देने की मंज़ूरी दी है, ताकि बैड बैंक अपने गठन के उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल रहे।

साभार : Dainik Jagran

एनएआरसीएल और भारत ऋण समाधान कंपनी लिमिटेड (आईडीआरसीएल) दोनों मिलकर बैड बैंक का निर्माण करते हैं। एनएआरसीएल बैड बैंक का पहला हिस्सा है, जबकि आईडीआरसीएल दूसरा हिस्सा। एनएआरसीएल का गठन कंपनी अधिनियम के तहत किया गया है। एनएआरसीएल में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी होगी। एनएआरसीएल फंसे कर्ज को बैंकों से उसके बुक वैल्यू पर खरीदेगा, जबकि आईडीआरसीएल का काम होगा फंसे कर्ज को बेचना या उसका समाधान करना।

आईडीआरसीएल में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की अधिकतम 49 प्रतिशत की हिस्सेदारी होगी। शेष 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी निजी क्षेत्र के ऋणदाताओं और अन्य वित्तीय संस्थानों की होगी। आईडीआरसीएल एक परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी के तौर पर काम करेगी, लेकिन तकनीकी रूप में यह गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) होगी, जिसका नियमन केंद्रीय बैंक करेगा।

चूँकि, आईडीआरसीएल में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी बहुलता में होगी। इसलिए, यह जांच एजेंसियों के दायरे में नहीं आएगी, जिससे फंसे ऋण को बेचने या उसका  समाधान करने में इसे ज्यादा कानूनी अड़चनों का सामना नहीं करना पड़ेगा। एनएआरसीएल का पूंजीकरण बैंकों और एनबीएफसी द्वारा इक्विटी के माध्यम से किया जाएगा। यह जरुरत पड़ने पर बाजार से भी पूंजी उगाह सकेगा। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के 16 बैंकों ने बैड बैंक में लगभग 6,000 करोड़ रुपये डाल दिए हैं, जो यह दर्शाता है कि बैड बैंक पूर्व के उपायों से बेहतर साबित हो सकता है।

एनएआरसीएल विभिन्न चरणों में विभिन्न वाणिज्यिक बैंकों से लगभग 2 लाख करोड़ रुपए के फंसे कर्ज को खरीदेगी। पहले चरण में 500 करोड़ रूपये से ज्यादा बकाया राशि वाले खातों के कुल 90,000 करोड़ रुपए के फंसे कर्ज को यह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से खरीदेगी। शुरू में बैड बैंक 22 वैसे फंसे कर्ज वाले खातों को खरीद सकती है, जिनमें बैंकों ने 100 प्रतिशत का प्रावधान कर दिया है।

अभी एनएआरसीएल को जितने फंसे ऋण खाते स्थानांतरित किए जाने वाले हैं, वे सभी झंझट वाले हैं अर्थात उनमें वसूली करना या उनका समाधान करना मुश्किल भरा काम है। ये खाते बिजली, सड़क और दूसरे आधारभूत संरचना क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। इन परियोजनाओं में प्रवर्तकों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। इसी वजह से फंसे कर्ज में कोई वसूली नहीं हो पा रही है।

दूसरे चरण में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक 1.10 लाख करोड़ रुपये मूल्य के फंसे कर्ज की पहचान करेंगे। इस कार्य को करना बैंकों ने शुरू कर दिया है और उम्मीद है कि आगामी कुछ महीनों में बैंक ऐसे फँसे कर्ज के खातों की पहचान कर लेंगे। फंसे कर्ज के लिये बैड बैंक 15 प्रतिशत की राशि बैंकों को नकद देगी और शेष 85 प्रतिशत राशि का भुगतान बैंकों को सिक्योरिटी रिसीट रूप में किया जायेगा।

फंसे कर्ज को बेचने से जो नकदी बैंक में वापिस आयेगी, उसे पुनः जरूरतमंदों को ऋण के रूप में दिया जा सकेगा, क्योंकि बैंक फंसे कर्ज के लिए पहले ही आवश्यक प्रावधान कर चुके हैं। अतः जो भी रकम वसूल की जाएगी, वह सीधे बैंकों के मुनाफे में जुड़ जाएगी। दुनिया के अनेक देशों में बैड बैंक फंसे कर्ज को बेचने में सफल रही है। वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद अमेरिका ने संकटग्रस्त परिसंपत्ति राहत कार्यक्रम शुरू किया था, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था का स्वास्थ बेहतर हुआ था।

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एक अनुमान के अनुसार बैड बैंक 5 लाख करोड़ से अधिक के फंसे कर्ज के समाधान में कारगर हो सकती है। इसके दूसरे भी फ़ायदे हैं, मसलन, फंसे कर्ज को बैड बैंक को बेचने के बाद बैंक अपने कारोबार को बढ़ाने पर ध्यान दे सकते हैं, क्योंकि बैंकों को फंसे कर्ज की वसूली में आर्थिक नुकसान तो होता ही है साथ ही साथ उनका  मानव संसाधन कारोबार बढ़ाने पर ध्यान नहीं दे पाता है, जिससे गुणवत्तायुक्त परिसंपत्ति भी फंसे कर्ज में तब्दील हो जाती है। बैलेंस शीट के साफ-सुथरा रहने से देसी व विदेशी निवेशकों और जमाकर्ताओं का बैंकों पर भरोसा बढ़ेगा, जिससे बैंक की रेटिंग बढ़ेगी और निवेश की राह आसान होगी।

एडेलवेईस असेट रिकंस्ट्रक्टशन कंपनी लिमिटेड (ईएआरसी) के प्रबंध निदेशक ने हाल ही में कहा कि उनके लिए बैड बैंक से फंसे कर्ज खरीदना आसान होगा, क्योंकि अभी कंसोर्टियम वाले फंसे कर्ज को खरीदने में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। बड़े फंसे कर्ज वाले लगभग सभी खाते कंसोर्टियम वाले होते हैं और इनसे अनेक बैंक जुड़े होते हैं।

इसलिए, फंसे कर्ज को बैंकों से खरीदना आसान नहीं होता है। दरअसल, कंसोर्टियम वाले बैंकों में फँसे कर्ज को बेचने के बारे में आसानी से सहमति नहीं बन पाती है। चूँकि, बैड बैंक में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी बहुलता में होगी और इसे सरकार का भी समर्थन प्राप्त होगा, अस्तु, फंसे कर्ज को खरीदने में बैड बैंक को कोई परेशानी नहीं होगी और परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी (एआरसी) बिना परेशानी के बैड बैंक से फँसे कर्ज को खरीदकर बेच सकेंगे या उनका समाधान कर सकेंगे।

बैड बैंक द्वारा अपना काम शुरू करने से पहले ही उसकी सफलता पर सवाल उठाना या आशंका जताना उचित नहीं है। फंसे ऋण के समाधान के लिए किया गया यह प्रयोग आईडीआरसीएल की प्रबंधन टीम और इसके कर्मचारियों के प्रदर्शन पर निर्भर करेगा। अगर यह अपने कर्मचारियों को आर्थिक प्रोत्साहन देती है और प्रबंधक के रूप में बाजार से जहीन एवं अनुभवी पेशेवरों की सेवायें लेती है तो यह निश्चित रूप से फँसे कर्ज का खात्मा करने में सफल होगी।

फंसे कर्ज को खरीदने के लिए संभावित खरीदारों ने दिलचस्पी दिखानी शुरू भी कर दी है, जिनमें कई वैश्विक इकाइयां भी शामिल हैं। यह सही है कि पहले से फंसे कर्ज की वसूली का काम करने वाले कानून या संस्थान फंसे कर्ज की वसूली करने में अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाये हैं, लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि फंसे कर्ज की वसूली में पहले से तेजी आई है। विगत 6 सालों में बैंक 5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा फंसे कर्ज की वसूली करने में सफल रहे हैं। अतः निश्चित रूप से बैड बैंक भी फंसे कर्ज की वसूली करने के मामले में बेहतर परिणाम देने में सफल ही होंगे।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)