वैश्विक स्तर पर कोरोना महामारी के चलते ठप पड़ी आर्थिक गतिविधियों को अब जब पुनः चालू किया जा रहा है तब केंद्र सरकार द्वारा विशेष रूप से एमएसएमई क्षेत्र को एक विशेष आर्थिक पैकेज के तहत अधिकतम तरलता प्रदान करना एक तार्किक निर्णय ही कहा जाना चाहिए। क्योंकि, देश में लगभग दो माह के सम्पूर्ण लॉक डाउन के बाद जब किसी औद्योगिक इकाई को पुनः चालू किया जाएगा तो सबसे पहले उसे तरल पूँजी की आवश्यकता होगी। पर्याप्त तरल पूँजी हाथ में आने के बाद ही कोई भी औद्योगिक इकाई आर्थिक गतिविधियों से सम्बंधित अन्य कार्य प्रारम्भ कर पाएगी।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) देश की अर्थव्यवस्था के विकास में एक अहम भूमिका अदा करता है। एमएसएमई क्षेत्र की देश के सकल घरेलू उत्पाद में 30 प्रतिशत, औद्योगिक उत्पादन में 45 प्रतिशत और निर्यात में 48 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। कृषि क्षेत्र के बाद, एमएसएमई क्षेत्र में रोज़गार के सबसे अधिक अवसर निर्मित होते हैं।
73वें राष्ट्रीय सैम्पल सर्वेक्षण के अनुसार, देश में एमएसएमई क्षेत्र में 6.34 करोड़ इकाईयाँ कार्यरत थीं, ज़िनके माध्यम से 11.1 करोड़ व्यक्तियों (4.98 करोड़ ग्रामीण क्षेत्रों में एवं 6.12 करोड़ शहरी क्षेत्रों में) को रोज़गार उपलब्ध कराया जा रहा था। इस क्षेत्र को देश की अर्थव्यवस्था के लिए “विकास का इंजन” कहा जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कह सकते हैं कि एमएसएमई को मजबूती देकर आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ा जा सकता है।
वैश्विक स्तर पर कोरोना महामारी के चलते ठप पड़ी आर्थिक गतिविधियों को अब जब पुनः चालू किया जा रहा है तब केंद्र सरकार द्वारा विशेष रूप से एमएसएमई क्षेत्र को एक विशेष आर्थिक पैकेज के तहत अधिकतम तरलता प्रदान करना एक तार्किक निर्णय है। क्योंकि, देश में लगभग दो माह के सम्पूर्ण लॉक डाउन के बाद जब किसी औद्योगिक इकाई को पुनः चालू किया जाएगा तो सबसे पहले उसे तरल पूँजी की आवश्यकता होगी। पर्याप्त तरल पूँजी हाथ में आने के बाद ही कोई भी औद्योगिक इकाई आर्थिक गतिविधियों से सम्बंधित अन्य कार्य प्रारम्भ कर पाएगी।
उक्त तर्क के आधार पर ही केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दिनांक 13 मई 2020 को एमएसएमई क्षेत्र की इकाईयों सहित व्यापार जगत को 3 लाख करोड़ रुपए के कोलैटरल मुक्त ऋण प्रदान किए जाने सम्बंधी योजना की घोषणा की। इन इकाईयों को, दिनांक 29.02.2020 को बैंकों में इनके ऋण खातों में बक़ाया राशि के स्तर पर 20 प्रतिशत की अतिरिक्त ऋण राशि बैंकों द्वारा आटोमैटिक स्वीकृत की जाएगी ताकि ये इकाईयाँ अपने व्यापार को तुरंत ही प्रारम्भ कर सकें।
इस योजना के अंतर्गत बैंकों से ऋण प्राप्त करने की सुविधा 31 अक्टूबर 2020 तक जारी रहेगी। इस अतिरिक्त ऋण राशि की किस्त को एक साल की अवधि तक भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी एवं एक साल उपरांत यह ऋण राशि इस प्रकार कुल 4 वर्षों की अवधि के दौरान अदा करनी होगी। एक अनुमान के अनुसार, देश की कुल 45 लाख इकाईयाँ इस योजना का लाभ उठा सकेंगी एवं ये इकाईयाँ देश में रोज़गार के कई नए अवसरों को भी सृजित करेंगी।
जो एमएसएमई इकाईयाँ आर्थिक रूप से दबाव में हैं एवं जिनके ऋण खाते बैंकों में अनियमित अथवा ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों में तब्दील हो चुके हैं, उन्हें यदि अतिरिक्त पूँजी की आवश्यकता है तो यह अतिरिक्त पूँजी सबोर्डिनेट ऋण के रूप में उपलब्ध करायी जाएगी ताकि इस प्रकार की इकाईयाँ भी अपने व्यापार को सुचारू रूप से प्रारम्भ कर सकें। केंद्र सरकार ने इस प्रकार की सहायता के लिए 20,000 करोड़ रुपए के फ़ंड की अतिरिक्त व्यवस्था की है। केंद्र सरकार की इस योजना से लगभग 2 लाख एमएसएमई इकाईयों के लाभान्वित होने की सम्भावना हैं।
इसी प्रकार, जिन एमएसएमई इकाईयों में पूँजी की बहुत भारी मात्रा में कमी हो गई है एवं इन इकाईयों में अतिरिक्त पूँजी डालने की तुरंत आवश्यकता है, इसके लिए भी केंद्र सरकार 10,000 करोड़ रुपए के एक विशेष फ़ंड का निर्माण कर रही है जिसमें अन्य दूसरे फ़ंड भी अपना योगदान कर सकते हैं और इस प्रकार इस फ़ंड की कुल राशि को 50,000 करोड़ रुपए तक ले जाने की योजना है। इस राशि का उन एमएसएमई इकाईयों में निवेश किया जाएगा जिनके आगे आने वाले समय में तेज़ी से विकास करने की प्रबल सम्भावना है एवं इन इकाईयों के आकार एवं उत्पादन क्षमता को विस्तार भी दिया जा सकता है।
अभी तक देश में भारी मात्रा में की जाने वाली सरकारी ख़रीद के लिए आमंत्रित किए जाने विभिन्न टेंडर व्यवस्था में एमएसएमई इकाईयों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की बहुत बड़ी विदेशी कम्पनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होती थी। परंतु, अब केंद्र सरकार ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय लिया है जिसके अंतर्गत अब 200 करोड़ रुपए तक के टेंडर, वैश्विक स्तर पर आयोजित नहीं किए जाएँगे। इसके कारण अब एमएसएमई इकाईयों को ही सीधे तौर पर इन टेंडर में भाग लेने का मौक़ा मिलेगा एवं इन्हें इसका बहुत लाभ होगा। साथ ही, आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में यह एक निर्णायक क़दम साबित होगा।
एमएसएमई क्षेत्र सहित अन्य औद्योगिक एवं कृषि क्षेत्र को तरलता प्रदान करने के उद्देश्य से भारतीय रिज़र्व बैंक ने भी अभी हाल ही में कई निर्णय लिए थे। बीते 17 अप्रैल को भारतीय रिज़र्व बैंक ने विशेष रूप से ग़ैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों एवं सूक्ष्म वित्त संस्थानों को अतिरिक्त वित्त प्रदान करने के उद्देश्य से 50,000 करोड़ रुपए के लम्बी अवधि के रेपो संचालन की विशेष व्यवस्था की घोषणा की थी। हालाँकि पूर्व में भी 75,000 करोड़ रुपए के लम्बी अवधि का रेपो संचालन किया जा चुका है, जिसके उपरांत इस सम्पूर्ण राशि ने वित्तीय क्षेत्र में तरलता प्रदान की थी।
लम्बी अवधि के रेपो संचालन के अतिरिक्त भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा NABARD (कृषि क्षेत्र को ऋण हेतु) को 25,000 करोड़ रुपए, SIDBI (लघु उद्योग को ऋण हेतु) को 15,000 करोड़ रुपए एवं NHB (आवासीय क्षेत्र को ऋण हेतु) को 10,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि उपलब्ध करायी जा रही है ताकि ये वित्तीय संस्थान पुनर्वित्त के रूप में बैंकों को यह राशि उपलब्ध करा सकें। इससे कृषि क्षेत्र, लघु एवं मध्यम उद्योग, एवं आवास क्षेत्र को अतिरिक्त धन की उपलब्धि, ऋण के रूप में प्राप्त हो सकेगी।
भारतीय बैंकों की ऋण क्षमता में वृद्धि करने के उद्देश्य से भारतीय रिज़र्व बैंक ने CRR में कमी करते हुए बैंकों की तरलता में 137,000 करोड़ रुपए की राशि जोड़ी है। इसी प्रकार, म्यूचूअल फ़ंड क्षेत्र को भी 50,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त विशेष तरलता प्रदान की गई है।
कोरोना वायरस की महामारी के चलते केंद्र एवं राज्य सरकारों की आय में कमी आ रही है। इसलिए भारतीय रिज़र्व बैंक की WMA योजना के अंतर्गत केंद्र एवं राज्य सरकारों को उपलब्ध कराए जाने वाले वित्त की सीमा में भी वृद्धि की गयी है ताकि राज्य सरकारों को वित्त की कमी नहीं हो। अतः भारतीय रिज़र्व बैंक ने उक्त योजना के अंतर्गत राज्य सरकारों को उपलब्ध कराए जाने वाली वित्त की सीमा में पूर्व में घोषित की गई 30 प्रतिशत की वृद्धि दर को बढ़ाकर 60 प्रतिशत कर दिया है।
हाल ही के समय में यह भी देखा जा रहा है कि विश्व के लगभग सभी देश अब मौद्रिक नीति के अंतर्गत ब्याज दरों में लगातार कमी करते जा रहे हैं। परंतु, राजकोषीय नीति के अंतर्गत हर देश अपने हिसाब से आर्थिक गतिविधियों वाले विभिन्न क्षेत्रों को चुन कर ही अपने ख़र्चे को निर्धारित कर रहा है। वैश्विक स्तर पर लगातार हो रही ब्याज की दर में कमी के चलते भारतीय रिज़र्व बैंक ने भी तुरंत प्रभाव से रिवर्स रेपो की ब्याज दर में 25 बिंदुओं की कमी की घोषणा की है। जिसके कारण अब यह 4 प्रतिशत से घटकर 3.75 प्रतिशत हो गई है।
हालाँकि देश में हो रही वित्तीय गतिविधियों की ओर यदि नज़र डाली जाय तो मालूम पड़ता है कि देश में मैक्रो स्तर पर तरलता की कमी नहीं है। परंतु, रिवर्स रेपो की ब्याज दर में की गई उक्त कमी के कारण बैंकिंग क्षेत्र अब वित्त प्रदान करने की ओर प्रेरित/आकर्षित होंगे एवं अपनी तरल राशि भारतीय रिज़र्व बैंक के पास रिवर्स रेपो खिड़की के अंतर्गत नहीं रखेंगे। अब विनिर्माण इकाईयों, कृषि क्षेत्र, लघु एवं मध्यम उद्योग, मध्यम वर्ग, आदि क्षेत्रों को वित्त प्रदान किया जाएगा इससे देश के सम्पूर्ण आर्थिक चक्र में वृद्धि होगी और उत्पादों की माँग में बढ़ौतरी होगी जिसके चलते अंततः रोज़गार के कई नए अवसर उत्पन्न होंगे।
एक दम से ठप्प पड़ गए व्यापार एवं उद्योगों को कच्चे माल, वित्त, श्रमिक आदि सभी क्षेत्रों में समस्याएँ आने की सम्भावना है। अतः आज उद्योगों को पुनः चालू करने के लिए इन सभी क्षेत्रों की समस्याओं को हल करने के उद्देश्य से उनके हाथ में अतिरिक्त पूँजी उपलब्ध कराए जाने की अत्यधिक आवश्यकता है जिसके लिए केंद्र सरकार द्वारा भरपूर प्रयास किया जा रहा है। कुल मिलाकर इस संकट की घड़ी में सरकार सभी क्षेत्रों को प्रोत्साहित देकर विकास के पहिये को गति देने की दिशा में लगी हुई है, जिसमें एमएसएमई क्षेत्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र की मजबूती प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए बहुत आवश्यक है।
(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)