देश विरोधी ताक़तें बार बार उत्तर प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर पैदा करने की कोशिशें करती रहीं लेकिन गाजियाबाद पार होते-होते विरोध की लहर कुंद हो गईं। आश्चर्य नहीं कि लखीमपुर खीरी, जिसे किसान आंदोलन का एपिसेंटर बनाने का प्रयास किया गया, वहाँ बीजेपी ने आठों ही सीटें जीत लीं।
किसी भी पार्टी को जीत महज एक कारक की वजह से मिलती हो. ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है और जीत जब उत्तर प्रदेश जैसी विलक्षण और प्रचंड हो तो उसके पीछे कई कारकों का योगदान होता है। यूपी में 37 वर्षों बाद किसी सरकार ने सत्ता में लगातार दोबारा वापसी करके इतिहास रच दिया है। इसका श्रेय किसी एक व्यक्ति या किसी एक कारक को देना गलत होगा।
लेकिन जो व्यक्ति प्रदेश की सत्ता चला रहा हो, उसके चरित्र और करिश्मा की छाप उस जीत पर सबसे ज़्यादा दिखाई पड़ती है। वास्तव में, मोदी और योगी की जोड़ी ने डबल इंजन की सरकार के जरिये प्रदेश में विकास और विश्वास की नई इबारत लिखते हुए जाति के तिलिस्म को तोड़ा है।
देश विरोधी ताक़तें बार बार उत्तर प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर पैदा करने की कोशिशें करती रहीं लेकिन गाजियाबाद पार होते-होते विरोध की लहर कुंद हो गईं। आश्चर्य नहीं कि लखीमपुर खीरी, जिसे किसान आंदोलन का एपिसेंटर बनाने का प्रयास किया गया, वहाँ बीजेपी ने आठों ही सीटें जीत लीं।
रूल ऑफ लॉं और गवर्नेंस रहा योगी के लिए तुरुप का पत्ता
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने अपनी छवि एक ऐसे नेता की बनाई जो गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार के खिलाफ रहा। माफिया और क्रिमिनल्स के खिलाफ तो योगी का बुलडोज़र कहर बनकर बरपा।
संदेश साफ था कि किसी गुनहगार को बख्शा नहीं जाएगा, साथ ही किसी निर्दोष को फंसाया नहीं जाएगा। योगी के खिलाफ वही आवाज़ उठाते रहे जो गुंडाराज के पैरोकार थे। जिनका काला धंधा चल रहा था।
याद कीजिये, समाजवादी पार्टी की सरकार में किस तरह अपराधियों का दबदबा था। अपराधियों को सजा देने की बजाय कुर्सी देकर बिठाने का चलन ज़्यादा प्रचलित था। अपराधियों के खिलाफ सख्ती को लेकर योगी की खूब आलोचना हुई लेकिन जनता योगी से नाराज़ नहीं हुई। यही वजह है कि योगी की सरकार को दोबारा सत्ता की चाभी दी गई।
योगी की साफ-सुथरी छवि ने सभी वर्गों को प्रभावित किया। जो भी सही मुद्दों के साथ बाबा के पास गया, बाबा ने उसका समाधान करवाया।
विकास की मुख्यधारा में शामिल हुआ उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश को योगी जैसा ईमानदार मुख्यमंत्री मिला। वहीं योगी को नरेंद्र मोदी जैसा पथप्रदर्शक मिला। संयोग से नरेंद्र मोदी बनारस से सांसद भी हैं, जिसने उत्तर प्रदेश में विकास की रफ्तार को पंख लगा दिये।
अमित शाह ने जिस तरह उत्तर प्रदेश में खुद बीजेपी के काडर को अपने हाथों से संभाला, उसी का फल रहा कि जाति और वर्गभेद से इतर बीजेपी को दलितों का भी भरपूर समर्थन मिला।
उत्तर प्रदेश जो कभी बीमारू राज्यों में शामिल था, अब इसकी चमक दूर-दूर तक देखी और महसूस की जाती है। अब उत्तर प्रदेश की चर्चा विकास और सुशासन के लिए होती है। अब गाँव गाँव में बिजली और पानी है। पहले नोएडा और गाजियाबाद से बाहर आने के बाद अंधेरे का साम्राज्य दिखाई पड़ता था, अब प्रगति का प्रकाश नजर आता है।
सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का फायदा गरीबों के घर-घर तक पहुंचा। कोविड़ के संक्रमण के दौरान केंद्र सरकार ने न सिर्फ उत्तर प्रदेश में बल्कि पूरे भारत में करोड़ों लोगों तक मुफ्त राशन पहुंचाया। ये खुद में एक मिसाल थी। 25 करोड़ की आबादी वाले प्रदेश में एक भी व्यक्ति भूखा नहीं सोया, क्या यह मोदी और योगी की उपलब्धि नहीं थी?
भले ही योगी पर तोहमत लगाने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर षड्यंत्र हुए लेकिन योगी ने मोर्चा पर खड़े रहकर तमाम साज़िशों को कुंद कर दिया। ये कोई साधारण उपलब्धि नहीं थी।
राष्ट्रवाद और हिन्दू आस्था को मिली आवाज़
कम से कम मोदी और योगी के स्तर पर हिन्दू पहचान को लेकर कोई संकट नहीं है। एक समय था जब चारों तरफ से हिंदुओं में हीन भावना भरने की कोशिशें होती थीं। एक ऐसा इको-सिस्टम पूरे देश में काम करता था। मोदी और योगी की जोड़ी ने हिंदुओं के बीच से “ऐहसास-ए-कमतरी” की भावना को सदा सदा के लिए खत्म कर दिया।
सनातन संस्कृति किसी पार्टी या दल से नहीं जुड़ी हैं, ये तो हजारों वर्षों से जन-जन की ज़िंदगी का हिस्सा रही है। तभी आप देखेंगे जो नेता अयोध्या का विरोध कर रहे थे, वो आज अपने ललाट पर त्रिपुंड धारण करते हैं। आज अयोध्या और बनारस दुनिया भर में बसे हिंदुओं के लिए आस्था का केंद्र बन गया है। योगी के राज में इसी पहचान को नया स्वरूप मिल गया।
यूपी की 25 करोड़ जनता ने योगी मॉडल पर मुहर लगाकर अपना काम कर दिया है। अब नज़र बड़ी लड़ाई पर है। नज़र अब 2024 पर जब देश के एक अरब मतदाता अपना निर्णायक फैसला देकर देश के भविष्य को सुरक्षित करेंगे। वैसे 2024 के परिणाम का भी संकेत तो इस चुनाव ने दे ही दिया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)