स्वच्छ राजनीतिक वातावरण के लिए यह आवश्यक है कि विपक्ष मजबूत हो, लेकिन ममता सरकार को यह रास नहीं आ रहा है। हालांकि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जनता सर्वोपरि होती है, अतः ममता सरकार का यदि यही रवैया रहा तो आने वाले विधानसभा चुनाव में उसे उसके इन अलोकतांत्रिक हथकंडों और राज्य की बिगड़ती कानून व्यवस्था के लिए जनता अवश्य सबक सिखाएगी।
तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के 2011 में मुख्यमंत्री बनने के बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा बंद होने की उम्मीद की गयी थी, लेकिन वास्तविकता इससे एकदम परे साबित हुई है। पश्चिम बंगाल में आए दिन लगातार विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं के खिलाफ सत्ताधारी दल का खूनी संघर्ष चल रहा है।
वैसे तो राज्य में सत्ता के इस खूनी संघर्ष का पुराना इतिहास रहा है। लेकिन इन दिनों यह प्रवृत्ति कुछ अधिक ही तीव्र हो गयी है। इसका प्रमुख कारण भारतीय जनता पार्टी का बढ़ता जनाधार है, जिसका सबसे बड़ा साक्ष्य 2019 के आम चुनाव में स्पष्ट रूप से सामने आया जब राज्य की सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस को 43 प्रतिशत वोट मिले तो वहीं भारतीय जनता पार्टी को उससे जरा ही कम 40 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए।
ये आंकड़े राज्य में ममता बनर्जी की खिसकती जमीन के ही सूचक हैं। अतः लोकतान्त्रिक तरीके से भाजपा को रोकने में नाकाम तृणमूल कांग्रेस हिंसा के रास्ते को अपना रही है। राज्य में सत्ताधारी दल का आतंक ऐसा है कि 2018 में हुए पंचायत चुनाव में उसके 34.2 प्रतिशत सदस्य निर्विरोध निर्वाचित हुए, क्योंकि विपक्षी दलों के कार्यकर्ता पर्चा दाखिल करने तक का साहस नहीं कर सके या राजनीतिक हिंसा किए कारण उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया।
वीरभूमि जिले से सबसे ज्यादा उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हुए थे। यहां जिला परिषद की सभी 42 सीटें निर्विरोध चुनी गई हैं। ये सब आंकड़े स्पष्ट रूप से यह बता रहे हैं कि ममता सरकार में किस प्रकार खुलेआम लोकतंत्र की हत्या हो रही है।
यही नहीं, राज्य में शासन-प्रशासन भी ममता बनर्जी की संकीर्ण राजनीति से नहीं बच सका है। तृणमूल कांग्रेस सरकार कोरोना जैसी महामारी के दौरान भी जनता की सुविधाओं का गला घोंटकर राजनीति करने से बाज़ नहीं आई। सरकार ने लगातार केंद्र की जन कल्याणकारी योजनाओं में रोड़े अटकाने और उसके लाभ से प्रदेश की जनता को वंचित रखने का काम किया है।
पश्चिम बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा और बिगड़ती कानून व्यवस्था के विरोध में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने 8 अक्टूबर को राज्य सचिवालय, नबन्ना की ओर मार्च किया। इस दौरान राज्य की तानाशाह ममता सरकार की पुलिस ने कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए पानी की बौछारों, आंसू गैस का इस्तेमाल करने के साथ-साथ लाठीचार्ज भी किया।
इससे पूर्व हाल ही में कोलकाता शहर में भाजपा नेता मनीष शुक्ला पर 5 राउंड फायरिंग की गई, जिसमें घटना स्थल पर ही उनकी मृत्यु हो गई। गौरतलब है कि पूर्व में वे तृणमूल कांग्रेस में थे और लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल हुए थे। यह घटना तब हुई जब वह पुलिस स्टेशन से थोड़ी ही दूरी पर अपने सुरक्षा दस्ते के साथ खड़े थे।
इस घटना से भी इस बात का अनुमान लगा सकते है कि पश्चिम बंगाल में किस तरह का राजनीतिक वातावरण है और भाजपा के कार्यकर्ताओं के लिए कितनी भयानक स्थिति बनती जा रही है। इसके बावजूद हम चुनाव के आंकड़ों में देख सकते हैं कि पश्चिम बंगाल में लगातार भारतीय जनता पार्टी सुदृढ़ होती जा रही है। मतलब साफ़ है कि जनता परिवर्तन चाहती है।
स्वच्छ राजनीतिक वातावरण के लिए यह आवश्यक है कि विपक्ष मजबूत हो, लेकिन ममता सरकार को यह रास नहीं आ रहा है। हालांकि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जनता सर्वोपरि होती है, अतः ममता सरकार का यदि यही रवैया रहा तो आने वाले विधानसभा चुनाव में उसे उसके इन अलोकतांत्रिक हथकंडों और राज्य की बिगड़ती कानून व्यवस्था के लिए जनता अवश्य सबक सिखाएगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)