जैसे-जैसे मोदी सरकार का डिजिटल इंडिया अभियान आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे देश कागजी रिकॉर्ड से मुक्त हो रहा है। स्पष्ट है, दस्तावेजों के डिजिटल होने से सबसे ज्यादा परेशानी कांग्रेसी सिस्टम में पले-बढ़े उन लोगों को हो रही है जिनकी रोजी-रोटी कागजी रिकॉडों के हेर-फेर से चलती थी। कागजी दस्तावेजों के डिजिटल होने का ही नतीजा है कि जम्मू व कश्मीर में दशकों पुरानी दरबार मूव की प्रथा पर रोक लग गई।
डिजिटल इंडिया पारदर्शी, भेदभाव रहित व्यवस्था और भ्रष्टाचार पर चोट करने वाली है। इससे समय, श्रम और धन की बचत हो रही है। सीधे शब्दों में कहें तो डिजिटल इंडिया मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस का दूसरा रूप है।
इससे सरकारी तंत्र तक हर आदमी की पहुंच बनी है। मात्र छह वर्षों में डिजिटल इंडिया अभियान ने कामयाबी की हजारों गाथाएं लिखी हैं। उदाहरण के लिए डिजिटल इंडिया की बदौलत कोरोना महामारी के इस डेढ़ साल में ही भारत सरकार ने विभिन्न योजनाओं के तहत लगभग 7 लाख करोड़ रूपये प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण अर्थात डीबीटी के माध्यम से लोगों के बैंक खातों में भेजे हैं।
आज केवल भीम यूपीआई से ही हर महीने लगभग पांच लाख करोड़ रूपये का लेन-देन हो रहा है। अब तो सिंगापुर और भूटान में भी भीम यूपीआई के जरिए लेन-देने होने लगा है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत एक लाख 35 हजार करोड़ रूपये दस करोड़ से अधिक किसान परिवारों के बैंक खातों में भेजा गया। डिजिटल इंडिया ने वन नेशन वन एमएसपी की भावना को भी साकार किया। ई-नाम के जरिए देश के किसान अब तक 1,35,000 करोड़ रूपये से ज्यादा का लेन-देन कर चुके हैं।
यह डिजिटल इंडिया इंडिया की ही देन है कि ड्राइविंग लाइसेंस हो या जन्म प्रमाण पत्र, बिजली का बिल भरना हो पानी का; आयकर रिटर्न भरना हो या इस तरह के अन्य काम हों, सब डिजिटल इंडिया की मदद से आसानी से हो रहे हैं। गांवों में यह सब अब अपने घर के पास जन सेवा केंद्रों में हो रहे हैं।
भ्रष्टाचार पर सीधे चोट करने के साथ-साथ डिजिटल इंडिया अब सरकारी फिजूलखर्ची खत्म करने का कारगर हथियार बनता जा रहा है। इसका ज्वलंत उदाहरण है केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में राजधानी परिवर्तन (दरबार मूव) की प्रथा को बंद करना। डिजिटल इंडिया के तहत ई-ऑफिस का काम जम्मू कश्मीर में 20 जून को पूरा हुआ।
इसी को देखते हुए उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने सरकारी कार्यालयों के साल में दो बार होने वाले अदला-बदली या दरबार मूव की प्रथा को बंद का एलान किया। इससे सरकारी दस्तावेजों को इधर से उधर करने में हर साल खर्च होने वाले 200 करोड़ रूपये की बचत होगी।
उल्लेखनीय है कि मौसम बदलने के साथ हर छह महीने में जम्मू-कश्मीर की राजधानी भी बदल जाती थी। राजधानी शिफ्ट होने की इस प्रक्रिया को दरबार मूव के नाम से जाना जाता है। छह महीने राजधानी श्रीनगर में रहती है और छह महीने जम्मू में। राजधानी शिफ्ट करने की यह प्रक्रिया जटिल और खर्चीली रही है।
इसीलिए इसका विरोध होता रहा लेकिन वोट बैंक की राजनीति, प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी और कारगर वैकल्पिक व्यवस्था न होने से देश को यह फिजूलखर्ची हर साल बरदाश्त करनी पड़ती थी। सबसे बड़ी बात यह थी कि इस प्रक्रिया में सत्ता पक्ष से जुड़े ठेकेदार जुड़े थे जो बिलों में फर्जीवाड़ा करके मोटी कमाई करते थे। लेकिन अब इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया है
समग्रत: जैसे-जैसे डिजिटल इंडिया अभियान आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे देश कागजी रिकॉर्ड से मुक्त हो रहा है। स्पष्ट है, दस्तावेजों के डिजिटल होने से सबसे ज्यादा परेशानी कांग्रेसी सिस्टम में पले-बढ़े उन लोगों को हो रही है जिनकी रोजी-रोटी कागजी रिकॉडों के हेर-फेर से चलती थी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)