प्रधानमंत्री मोदी ने जिस आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना की है, वह अधिकांश समय तक केंद्र की सत्ता में रही कांग्रेसी सरकारों के एजेंडे या प्राथमिकता में कभी था ही नहीं। पहले घरेलू उद्योगों के विकास के नाम पर संरक्षणवादी नीतियां अपनाई गईं लेकिन संरक्षण के नाम पर भ्रष्ट नेताओं-नौकरशाहों-ठेकेदारों की तिकड़ी ने समाजवादी नीतियों को साम्राज्यवादी नीतियों में बदल डाला। नतीजा गरीबी, बेकारी, उग्रवाद, आतंकवाद, नक्सलवाद में तेजी से इजाफा हुआ।
12 मई को राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकट के दौर में अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए बीस लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज का एलान किया। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में सुधार की बात कही ताकि आत्मनिर्भर भारत का ख्वाब हकीकत में बदल सके। अब तक राहत पैकेजों का फोकस सामान्यत: बड़े उद्यमों पर रहता था लेकिन इस बार सरकार ने देश भर में फैले सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को प्राथमिकता दी है।
इसी को देखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एमएसएमई के लिए राहत पैकेज का एलान किया है। इसके तहत एमएसएमई की परिभाषा में बदलाव करते हुए 1 करोड़ निवेश या 10 करोड़ टर्नओवर वाले उद्यमों को सूक्ष्म उद्योग, 10 करोड़ निवेश या 50 करोड़ टर्नओवर वाले उद्यमों को लघु उद्योग और 20 करोड़ निवेश या 100 करोड़ टर्नओवर वाले उद्यमों को मध्यम उद्योग का दर्जा दिया गया है। घरेलू खरीद को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने फैसला किया है कि 200 करोड़ रूपये तक का टेंडर ग्लोबल नहीं होगा। इसके अलावा एमएसएमई को ई-मार्केट से जोड़ा जाएगा ताकि ये उद्यम लोकल से ग्लोबल बन सकें।
गौरतलब है कि भारत में सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र विविधताओं से भरा हुआ है। यह क्षेत्र जमीनी ग्रामोद्योग से शुरू होकर ऑटो कल-पुर्जे के उत्पाद, माइक्रो प्रोसेसर, इलेक्ट्रानिक उपकरणों और विद्युत चिकित्सा उपकरणों तक फैला हुआ है। देश के विनिर्माण क्षेत्र में इस क्षेत्र की 45 प्रतिशत हिस्सेदारी है और देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में यह 8 प्रतिशत योगदान करता है। यह क्षेत्र बारह करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है।
इन बहुआयामी लाभों के बावजूद एमएसएमई पूंजी की कमी से जूझता रहा है। इसका कारण है कि राष्ट्रीयकरण के बावजूद बैंकों का ढांचा अमीरों के अनुकूल और गरीबों के प्रतिकूल ही बना रहा। इस कमी को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुद्रा बैंक की स्थापना की जिसके तहत छोटे उद्यमियों को पचास हजार से लेकर दस लाख रूपये तक का ऋण मुहैया कराया जा रहा है। इसके लाभार्थियों में छोटा-मोटा कारोबार करने वाले लोग शामिल हैं जैसे फल-सब्जी विक्रेता, मैकेनिक, नई, ब्यूटी पार्लर, दर्जी, कुम्हार, मोची आदि।
इसके बाद प्रधानमंत्री ने देश के एमएसएमई क्षेत्र को 59 मिनट में अर्थात एक घंटे से भी कम समय में एक करोड़ रूपये तक का ऋण मुहैया कराने वाले पोर्टल को लांच किया है। इसके अलावा कई जटिल प्रक्रियाओं का सरलीकरण किया गया।
इसके बावजूद छोटे उद्यमियों की चुनौतियाँ दूर नहीं हुई थीं। इसी को देखते हुए सरकार एमएसएमई क्षेत्र को तीन लाख करोड़ रूपये का पैकेज दे रही है। एमएसएमई के कर्ज में सबसे बड़ी बाधा गारंटर की होती है जिसे दूर करते हुए सरकार ने इन इकाइयों को बिना गारंटी लोन की व्यवस्था की है। इस लोन की समय सीमा चार वर्ष होगी। इसके अलावा संकटग्रस्त इकाइयों के लिए 20,000 करोड़ रूपये की नकदी की व्यवस्था की गई है।
दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ने जिस आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना की है, वह अब तक अधिकांश समय तक सत्ता में रही कांग्रेसी सरकारों की प्राथमिकता में कभी था ही नहीं। पहले घरेलू उद्योगों के विकास के नाम पर संरक्षणवादी नीतियां अपनाई गईं लेकिन संरक्षण के नाम पर भ्रष्ट नेताओं-नौकरशाहों-ठेकेदारों की तिकड़ी ने समाजवादी नीतियों को साम्राज्यवादी नीतियों में बदल डाला। नतीजा गरीबी, बेकारी, उग्रवाद, आतंकवाद, नक्सलवाद में तेजी से इजाफा हुआ।
1991 में शुरू हुई नई आर्थिक नीतियों में उदारीकरण-भूमंडलीकरण के नाम पर महानगर केंद्रित विकास रणनीति की शुरूआत हुई। इसमें विकास का रथ महानगरों और हाईवे से आगे बढ़ ही नहीं पाया। इससे देश भर में फैले करोड़ों सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों की घोर उपेक्षा हुई। मुक्त व्यापार नीतियों को इस तरह बनाया गया कि सत्ता पक्ष से जुड़े बिचौलिए और उद्योगपतियों के लिए कर मुक्त आयात सुविधाजनक हो गया।
इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि देश भर के बाजार विदेशी विशेषकर चीन में बने सामानों से भर गए। इसका नतीजा यह हुआ कि अटक से कटक तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैले करोड़ों लघु व कुटीर उद्योग घाटे में चले गए। इससे इन उद्यमों में नियोजित कामगारों के पास महानगरों की ओर पलायन के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।
जो कांग्रेस पार्टी लॉकडाउन में करोड़ों कामगारों के गांव लौटने की खबर को प्रमुखता से उठा रही है उसे यह बताना चाहिए कि क्या ये प्रवासी पिछले छह वर्षों में महानगरों में आए हैं? यह वही कांग्रेस पार्टी है जिसने यूपीए-2 के तीन वर्ष पूरा होने पर जो जश्न मनाया था उसमें एक प्लेट खाने की कीमत 7721 रूपये थी।
दूसरी ओर यूपीए सरकार ने 2011 में गांव और शहर में गरीबी रेखा के निर्धारण में महज एक रूपये की बढ़ोत्तरी करके क्रमश: 27.20 रूपये और 33.30 रूपये कर दिया था। इससे देश में गरीबों की संख्या 40.73 करोड़ से कम होकर 26.89 करोड़ रह गई थी लेकिन जमीन पर गरीबी जस की तस रही। आत्मनिर्भर भारत पर सवाल उठाने वाली कांग्रेस को बताना चाहिए कि दिल्ली का सदर बाजार चाइना बाजार में कैसे तब्दील हो गया?
समग्रत: मोदी सरकार देश भर में फैले करोड़ों लघु व कुटीर उद्योगों को देश की आर्थिक धुरी में तब्दील कर रही है। इसके पूरा होने पर न केवल देश का संतुलित विकास होगा बल्कि गरीबी, बेकारी, असमानता, महानगरों की ओर पलयन जैसी कांग्रेस द्वारा पैदा की गई समस्याएं भी दूर होंगी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)