जहां तक उत्तर प्रदेश के किसानों की बदहाली का सवाल है, तो उसके लिए जातिवादी राजनीति जिम्मेदार है। पिछले तीन दशकों से उत्तर प्रदेश में जाति की राजनीति चरम पर रही। विकास पर राजनीति के भारी पड़ने का ही परिणाम है कि सिंचाई, बिजली आपूर्ति, ग्रामीण सड़क, बीज विकास, भंडारण, विपणन, सहकारिता जैसी किसान उपयोगी गतिविधियां ठप पड़ गईं। इस दौरान पूरा प्रशासनिक अमला समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की जातिवादी राजनीति के हितों को पूरा करने में लगा रहा।
अपने चुनावी वादे पर अमल करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में लघु व सीमांत किसानों के एक लाख रूपये तक के फसली ऋण और सात लाख किसानों का 5630 करोड़ रूपये का एनपीए माफ कर दिया। कुल मिलाकर इस कर्जमाफी से प्रदेश के 2.15 करोड़ किसानों को 36,359 करोड़ रूपये के कर्ज से राहत मिली है। कर्जमाफी की घोषणा होते ही रिजर्व बैंक के मुखिया समेत तमाम बैंक अधिकारियों की भौंहे तन गईं। सबसे तीखी प्रतिक्रिया रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की ओर से आई। उन्होंने कहा कि कर्जमाफी से ईमानदार ऋण संस्कृति कमजोर होती है और कर्ज चुकाने का प्रोत्साहन घटता है। इससे आने वाले दिनों में कर्ज की लागत बढ़ेगी अर्थात लोगों को महंगा कर्ज मिलेगा।
किसानों की कर्जमाफी पर सवाल उठाने वाले क्या यह बताने का कष्ट करेंगे कि क्या आज तक किसी उद्योगपति ने बैंक कर्ज न चुका पाने के कारण आत्महत्या की है। बैंक कर्ज न चुका पाने के कारण किसान आत्महत्या करते हैं और वह भी करोड़ों-अरबों रूपये के कर्ज के लिए नहीं बल्कि साठ-सत्तर हजार रूपये के कर्ज के लिए। इसका कारण है कि किसान कर्ज को अपने स्वाभिमान के खिलाफ मानता है और जब तक कर्ज चुका नहीं देता तब तक उसे चैन की नींद नहीं आती। जमीनी सच्चाई यह है कि किसान कर्ज लेना ही नहीं चाहता लेकिन बीज, जुताई, उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई का खर्च इतना ज्यादा बढ़ गया है कि कर्ज लेना उसकी मजबूरी बन गई है।
कृषि ऋण माफी पर सवाल उठाने से पहले बैंकों को कर्ज अदायगी में किसानों की ईमानदारी का रिकार्ड देखना चाहिए। कर्ज अदायगी अनुपात के रिकार्ड को देखें तो उसमें किसान सबसे आगे हैं। खुद रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि 97 प्रतिशत किसान समय पर कर्ज लौटाते हैं। किसान तभी कर्ज चुकाने में असफल होते हैं जब कोई आपात स्थिति हो। जलवायु परिवर्तन, वैश्विक ताप वृद्धि, बारिश में उतार-चढ़ाव, प्राकृतिक आपदाओं में तेजी जैसे कारणों से किसान समय पर ऋण नहीं चुका पाते हैं। कई बार ये स्थितियां दो-तीन साल लगातार घट जाती हैं, तब तो किसान की कमर ही टूट जाती है। ऐसी स्थिति में किसानों की कर्जमाफी से कैसे मुंह मोड़ा जा सकता है। फिर शासन केवल बैलेंस शीट से नहीं बल्कि समाज की आपातकालीन जरूरतों के प्रति संवेदनदशील कर्तव्य निर्वहन से चलता है। कर्ज माफी इसी संवेदनशील कर्तव्य निर्वहन की श्रेणी में आता है।
जहां तक उत्तर प्रदेश के किसानों की बदहाली का सवाल है तो उसके लिए जातिवादी राजनीति जिम्मेदार है। पिछले तीन दशकों से उत्तर प्रदेश में जाति की राजनीति चरम पर रही। विकास पर राजनीति के भारी पड़ने का ही परिणाम है कि सिंचाई, बिजली आपूर्ति, ग्रामीण सड़क, बीज विकास, भंडारण, विपणन, सहकारिता जैसी किसान उपयोगी गतिविधियां ठप पड़ गईं। इस दौरान पूरा प्रशासनिक अमला समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की जातिवादी राजनीति के हितों को पूरा करने में लगा रहा। जाति की राजनीति का ही परिणाम है कि वर्ष 2000-01 से 2014-15 के बीच उत्तर प्रदेश की कृषि विकास दर मात्र 2.5 प्रतिशत रही जबकि इसी अवधि में कृषि विकास का राष्ट्रीय औसत 2.9 प्रतिशत था। बीज, सिंचाई, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं में पिछड़े रहने का परिणाम है कि प्रदेश में प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी राष्ट्रीय औसत से कम है। धीमे कृषि विकास का ही परिणाम है कि उत्तर प्रदेश की की 30 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करती है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत 21.9 फीसदी है।
कर्जमाफी का विरोध करने वाले यह नहीं देख रहे हैं कि खेती-किसानी की लंबी उपेक्षा के बाद केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार कृषि विकास का बुनियादी ढांचा बनाने में जुटी हैं ताकि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी किया जा सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिंचाई, पशुधन विकास, फसल बीमा, जैविक खेती, ग्रामीण सड़क, भंडारण-विपणन, कोल्ड चेन जैसे दूरगामी उपाय कर रहे हैं ताकि खेती फायदे का सौदा बने। इसी तरह उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने गेहूं किसानों को उचित मूल्य प्रदान करने हेतु प्रदेश भर में पांच हजार गेहूं खरीद केंद्र बनाए हैं और 80 लाख टन सरकारी खरीद का लक्ष्य निर्धारित किया है। प्रदेश में पहली बार गेहूं खरीद का इतना अधिक लक्ष्य रखा गया है। गन्ना बकाया की समस्या को देखते हुए मुख्यमंत्री ने 2016-17 पेराई सत्र के बकाया भुगतान के लिए 23 अप्रैल की तिथि निर्धारित कर दी है। आलू की गिरती कीमतों के चलते परेशान किसानों को राहत देने के लिए योगी सरकार 487 रूपये प्रति क्विंटल की दर से एक लाख टन आलू खरीदेगी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)