भारत युद्ध नहीं शांति का प्रणेता है। रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव लाया गया जिसमें भारत ने रूस के युक्रेन पर हमले को लेकर निंदा तो की, परंतु वोटिंग से परहेज कर लिया। इससे एक तरफ रणनीतिक साझेदारी वाला दोस्त अमेरिका तो दूसरी ओर परंपरागत परखा हुआ दोस्त रूस दोनों को साथ साधते हुए भारत ने एक सफल कूटनीति का परिचय दिया। इसपर रूस ने भारत को धन्यवाद दिया और उनके राजदूत का बयान आया कि “संयुक्त राष्ट्र में भारत ने गैर पक्षपाती रुख अपनाया है। हमें उम्मीद है कि भारत अपनी स्थिति को ऐसे ही बरकरार रखेगा। हम संतुलित रुख अपनाने के लिए भारत के आभारी हैं”।
पिछले 10 दिनों से रूस और यूक्रेन के बीच लगातार युद्ध जारी है। जहां एक तरफ रूस हर दिन आगे बढ़ता जा रहा है और एक मजबूत स्थिति में है वहीं दूसरी ओर यूक्रेन हार मानने को तैयार नहीं है। यूकैन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और उनकी जनता एक साथ मिलकर रूस का सामना करने के लिए तैयार है। 10 दिनों में 12 लाख लोग युक्रेन छोड़ चुके हैं। रूस के सैनिकों ने खारकीव, कीव से अब जैपोरिजिया न्यूक्लियर पॉवर प्लांट जोकि यूरोप का सबसे बड़ा पॉवर प्लांट है, को अपने अधीन कर लिया है।
यूक्रेन भारत से मदद की गुहार लगा रहा है। यूक्रेन के राजदूत डॉक्टर इगोर पोलिखा ने कहा कि “मोदी जी दुनिया के सबसे ताकतवर और सम्मानित नेताओं में से एक हैं। ये नहीं पता है कि दुनिया के कितने नेताओं की पुतिन सुनेंगे लेकिन मोदी जी से हमें काफी उम्मीद है। अगर वो अपनी आवाज पुतिन के सामने उठाएं तो पुतिन शायद इस बारे में सोचें। मुझे उम्मीद है कि मोदी जी पुतिन को किसी तरह से प्रभावित करने की कोशिश करेंगे। इस मुश्किल हालात में सिर्फ भारत हमें बचा सकता है।” इस वक्तव्य से वैश्विक पटल पर भारत की विदेश नीति और मोदी की मजबूत स्थिति देखने को मिलती है। जो हम सभी भारतीयों के लिए गर्व का विषय है।
यदि इतिहास के पन्नों को पलटें तो पाएंगे कि, यह वही यूक्रेन है जो हमेशा भारत के विरोधी देशों के साथ खड़ा नजर आता था और आज यूक्रेन भारत से उसकी मदद करने की मांग कर रहा है। भारत ने जब परमाणु परीक्षण किया तो यूक्रेन संयुक्त राष्ट्र के मंच से भारत के परमाणु परीक्षण को बंद करने और उस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की मांग कर पाकिस्तान की भाषा बोलने लगा। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए प्रस्ताव लाया था जिसमें 25 देशों ने इसकी पेशकश की थी तब यूक्रेन इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहा था।
यूक्रेन 30 वर्षों से लगातार पाकिस्तान को हथियार दे रहा है। पाकिस्तान ने 400 टैंक यूक्रेन से खरीदें। इसके अलावा फाइटर जेट टेक्नोलॉजी, स्पेस रिसर्च में भी पाकिस्तान की मदद यूक्रेन ने की। यूक्रेन हमेशा भारत के विरुद्ध खड़ा रहा है और अमेरिका पाकिस्तान जैसे देशों को अपना समर्थन दिया है।
इन सबके बावजूद भारत की सद्भावना यूक्रेन के साथ हैं। भारत युद्ध नहीं शांति का प्रणेता है। रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव लाया गया जिसमें भारत ने रूस के युक्रेन पर हमले को लेकर निंदा तो की, परंतु वोटिंग से परहेज कर लिया। इससे एक तरफ रणनीतिक साझेदारी वाला दोस्त अमेरिका तो दूसरी ओर परंपरागत परखा हुआ दोस्त रूस दोनों को साथ साधते हुए भारत ने एक सफल कूटनीति का परिचय दिया।
इसपर रूस ने भारत को धन्यवाद दिया और उनके राजदूत का बयान आया कि “संयुक्त राष्ट्र में भारत ने गैर पक्षपाती रुख अपनाया है। हमें उम्मीद है कि भारत अपनी स्थिति को ऐसे ही बरकरार रखेगा। हम संतुलित रुख अपनाने के लिए भारत के आभारी हैं”। भारत ने एक तरफ वोटिंग से परहेज कर दोस्ती निभाई तो दूसरी तरफ यूक्रेन को मानवीय सहायता और दवाइयां भेजकर मानवता का संदेश भी दिया।
भारत के रूस के साथ ऐतिहासिक और राजनीतिक संबंध रहे हैं। रूस ने हमेशा भारत का साथ दिया है। 60% हथियार भारत रूस से खरीदता है। मिलिट्री हार्डवेयर रिपेयरिंग और सर्विसिंग में रसिया का महत्वपूर्ण योगदान है। भारत के लिए रूस ने कई बार अपने वीटो पावर का इस्तेमाल किया है। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत का साथ दिया है।
कश्मीर से 370 हटाने के खिलाफ जब पूरी दुनिया पाकिस्तान के साथ खड़ी थी तब यही रूस भारत के साथ खड़ा नजर आया। 1971 के युद्ध में जब अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा था तब रूस ने अकेले पूरी दुनिया के खिलाफ जाकर भारत का साथ दिया। इसके साथ-साथ परमाणु परीक्षण में जब तमाम महाशक्ति देशों ने भारत पर प्रतिबंध लगाए थे तब भी रूस ने भारत का समर्थन किया था।
इसके बाद, प्रधानमंत्री मोदी पहले ऐसे भारत के नेता हैं जिन्हें ईस्टर्न इकोनामिक फोरम में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ। रूस ने मोदी जी का स्वागत किया और उन्हें रूस का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ सेंट एंडूर्यस अपोस्टल प्रदान किया।
भारत और रूस के बीच रक्षा, कृषि, पर्यटन, ऊर्जा आपूर्ति, आतंकवाद विरोधी, सुरक्षा, अंतरिक्ष तथा डिफेंस एक्यूमेंट्स आदि प्रदान कर एक नए आयाम काबिज हुए हैं। दोनों देश अंतरराष्ट्रीय संगठन के सदस्य हैं जहां वे एक दूसरे का सहयोग करते हैं जैसे ब्रिक्स, संयुक्त राष्ट्र संघ और जी 20। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और मोदी के काफी अच्छे संबंध हैं तभी अमेरिका के ना चाहते हुए भी रूस ने भारत को s-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली दी है।
रूस इस युद्ध में भी भारत के नागरिकों को यूक्रेन से निकालने में मदद कर रहा है। यूक्रेन में फंसे छात्रों के लिए मोदी सरकार को दोष देने का अभियान चल रहा है जबकि मोदी सरकार ने युद्ध शुरू होने से काफी पहले ही 4 बार एडवाइजरी जारी कर छात्रों को यूक्रेन छोड़ने का आग्रह किया था तब अधिकांश छात्रों ने इस एडवाइजरी पर अमल नहीं किया और वापस आने से मना कर दिया। इन सबके बावजूद, भारत सरकार ऑपरेशन गंगा के तहत यूक्रेन में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए तत्पर है।
इसके लिए यूक्रेन से जमीनी सीमा साझा करने वाले 5 देशों के जरिए लोगों को निकाला जा रहा है, यह देश हैं पोलैंड, स्लोवाकिया, रोमानिया, मोल्डोवा और हंगरी। इसके साथ ही देश के चार केंद्रीय मंत्रियों ज्योतिरादित्य सिंधिया, किरेन रिजिजू, हरदीप सिंह और जनरल वीके सिंह को इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी दी गई है। इस तरह सभी भारतीय छात्रों को यूक्रेन से भारत लाया जा रहा है जिसमें एयर फोर्स की टीम ने एयर इंडिया, स्पाइस जेट और इंडिगो के साथ मिलकर बचाव कार्य में अपनी अहम भूमिका निभाई है।
बहरहाल, 2014 के बाद वैश्विक पटल पर भारत एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभर कर सामने आया है जिसकी सफल विदेश नीतियों की वजह से आज विदेशों में फसे भारतीयों को सफलतापूर्वक भारत लाया जा रहा है। युक्रेन से पहले भी 2015 में सुषमा स्वराज के विदेश मंत्रित्व में यमन में फंसे भारतीयों को वापस भारत लाया गया था। उस समय लगभग 5000 हजार लोगों को सुरक्षित निकाला गया था जिसमें अन्य देशों के लोग भी शामिल थे। आज अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश यूक्रेन में फंसे अपने नागरिकों को नहीं निकाल पा रहे हैं, वहीं भारत सबको पीछे छोड़ अपने देश की जनता के लिए प्रथम श्रेणी में खड़ा नजर आता है।
विदेश नीति के साथ-साथ भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ भी आपने मधुर संबंध स्थापित किए है। भारत ने सबसे पहले आगे बढ़कर संकट के समय में अपने पड़ोसी देशों की मदद का बीड़ा उठाया है। चाहे वह श्रीलंका में बाढ़ के दौरान राहत कार्य करने हो या नेपाल में भूकंप के कारण नेपाल को पुनः व्यवस्थित करने के लिए डोनर के रूप में 100000 बिलियन डॉलर की सहायता देना हो। लेकिन चीन या पाकिस्तान जैसा कोई पड़ोसी जब भारत पर रौब जमाने की कोशिश करता है तो उसे मुंह तोड़ जवाब देने से भी अब देश कतराता नहीं है।
ये नया, मजबूत और आत्मनिर्भर भारत है। चाहे चीन-पाकिस्तान को सैन्य मोर्चे के साथ-साथ विश्व पटल पर कूटनीतिक मात देनी हो या रूस व अमेरिका दोनों के साथ संबंधों को साधना हो, इन सभी नीतियों के द्वारा भारत ने विदेश नीति के नए मानदंड स्थापित किए किए हैं जिससे पूरी दुनिया भारत की तरफ भरोसे से देख रही है।
(लेखिका डीआरडीओ में कार्यरत रह चुकी हैं। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन एवं अनुवाद में सक्रिय हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)