जैसे ही चंद्रयान ने चांद को छुआ, यहां धरती पर ऐतिहासिक जश्न शुरू हो गया। जिसने भी यह देखा वह खुद को ना रोक सका। ढोल बजाए गए, मिठाइयां बांटी गई और कुछ पल के लिए लोग अपने सारे मतभेद भुलाकर आपस में गले लग गए। यह वास्तव में एक असाधारण प्रसंग था जिसके साक्षी करोड़ों लोग बने।
भारत इतिहास रच चुका है। जो आज तक कोई देश नहीं कर पाया, भारत ने उसे कर दिखाया। इसरो के चंद्रयान 3 ने आखिरकार चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सफल लैंडिंग कर ली है। 23 अगस्त को भारतीय समयानुसार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर यान के विक्रम लैंडर ने चांद पर अपने नियत समय पर सॉफ्ट लैंडिंग कर ली।
इसरो के अध्यक्ष सोमनाथ ने तुरंत इसकी आधिकारिक पुष्टि की और इसके साथ ही पूरे देश में एक विराट उत्सव शुरू हो गया। आखिर होता भी क्यों ना! यह एक अभूतपूर्व गौरव का क्षण था। राष्ट्रीय गर्व के इन पलों में समूचा देश सम्मिलित हुआ। सड़कों पर, चौराहों पर, कार्यालयों में, क्लब में, घर में जहां संभव हुआ वहीं पर लोग समाचार माध्यमों से जुड़े रहे, जमे रहे।
जैसे ही यान ने चांद को छुआ, यहां धरती पर ऐतिहासिक जश्न शुरू हो गया। जिसने भी यह देखा वह खुद को ना रोक सका। ढोल बजाए गए, मिठाइयां बांटी गई और कुछ पल के लिए लोग अपने सारे मतभेद भुलाकर आपस में गले लग गए। यह वास्तव में एक असाधारण प्रसंग था जिसके साक्षी करोड़ों लोग बने।
देश भर के उत्साहित लोग अपने विज्ञानियों की प्रतिभा पर गौरवान्वित हो रहे हैं। इसरो की वेबसाइट, यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज के साथ दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर इस घटना का सीधा प्रसारण हुआ। इसे देश के कोने-कोने में स्कूलों, कालेजों में भी दिखाया गया। कई स्थानों पर पूजा-हवन हुए, चंद्रयान-3 मिशन की सफलता की प्रार्थना की गई। यूट्यूब पर लैंडिग को करीब 70 लाख लोगों ने लाइव देखा।
चांद पर लैंडिंग के दो घंटे बाद विक्रम लैंडर से रोवर प्रज्ञान बाहर निकला और उसने एक सेंटीमीटर प्रति सेकंड की गति से चांद की सतह पर चहलकदमी आरंभ कर दी। चंद्रमा की सतह की ताजा तस्वीर भेजी। देश व दुनिया से बधाइयों का तांता लग गया। खेल, मनोरंजन, उद्योग जगत से लेकर राजनीति की हस्तियों ने सोशल मीडिया पर देशवासियों को बधाई दी।
इतना ही नहीं, विश्व के कई देशों ने इसरो को इस बड़ी सफलता पर बधाई संदेश प्रेषित किया। रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोसकोसमोस ने भी इसरो के समकक्ष ही अपना लूना-25 यान भेजा था जो कि बीते रविवार को इंजन बंद होने से क्रैश हो गया था। इस एजेंसी ने भी इसरो को बधाई दी है। इन सब बधाइयों के बीच इसरो की इस सफलता की पृष्ठभूमि पर भी चर्चा होना चाहिये।
लगभग चार साल पहले सितंबर 2019 में भारत का चंद्रयान-2 चंद्रमा पर लैंडिंग के पहले क्रैश हो गया था। 7 सितंबर 2019 को चंद्रयान-2 मिशन अंतिम चरण में कामयाबी हासिल करते-करते रह गया था। लैंडर से जब संपर्क टूटा था तो वह अल्टीट्यूड होल्ड चरण और फाइन ब्रेकिग चरण के बीच था। अंतिम टर्मिनल डिसेंट चरण में प्रवेश करने से पहले ही वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस तरह यह मिशन आंशिक रूप से असफल हो गया था।
वर्षों की मेहनत को क्षण में धूमिल होता देख इसरो के वैज्ञानिक मायूस हो गए थे। पूरे देश ने तब भी सारा घटनाक्रम टीवी पर लाइव देखा था। उस समय इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष के. सिवन किसी बच्चे की भांति फूट-फूटकर रो पड़े थे। वह बहुत भावुक पल था। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं इसरो मुख्यालय पर वैज्ञानिकों के साथ थे। उन्होंने सिवन को गले लगाकर संभाला, सांत्वना दी और उस समय वे एक अभिभावक की भूमिका में दिखाई दिये।
प्रधानमंत्री के इस संबल का ही परिणाम था कि चंद्रयान-2 की आंशिक असफलता के बावजूद न तो हमारे वैज्ञानिकों ने अपना आत्मविश्वास खोया और न ही अपने प्रयास बंद किए। सरकार ने भी इसरो को पूरा व लगातार सहयोग दिया। इसके बूते पर ही यह संभव हो पाया कि महज चार साल के भीतर और अल्प बजट में इस अभियान को फिर से लॉन्च किया गया और सफलतापूर्वक लक्ष्य भी प्राप्त कर लिया गया।
जब चंद्रयान ने सफल लैंडिंग की, तब ब्रिक्स बैठक के लिए दक्षिण अफ्रीका गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जोहान्सबर्ग से डिजिटल तौर पर देश के वैज्ञानिकों के साथ उपस्थित थे। उन्होंने वहीं से राष्ट्र के नाम संबोधन आरंभ किया और चंद्रयान की सफलता पर देश को बधाइयां दी।
प्रधानमंत्री का संबोधन हमारे वैज्ञानिकों के परिश्रम की सराहना करने वाला तथा भारत की विराट मेधा को पूरे गौरवबोध के साथ विश्व के समक्ष रखने वाला था। लेकिन दुर्भाग्य ही कहेंगे कि उनके ऐसा करने से विपक्ष का एक धड़ा बिफर गया और अनर्गल बयानबाजी करने लगा। यह कहा जाने लगा कि इस सफलता का श्रेय इसरो के वैज्ञानिकों को जाता है और प्रधानमंत्री मोदी व उनकी सरकार इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रही है।
ऐसा कहने वाले कांग्रेसी-वामपंथी ब्रिगेड के लोगों को जरा एक बार आत्मावलोकन करना चाहिये कि 2019 में चंद्रयान-2 की विफलता के समय विपक्ष के इसी वर्ग ने मोदी की आलोचना की थी और असफलता के पीछे केंद्र सरकार को उत्तरदायी ठहराया था। लेकिन आज जब यह अभियान सफल हुआ है तो उन्हें मोदी को श्रेय मिलने से कष्ट हो रहा है। वास्तव में, इस अभियान की सफलता हमारे वैज्ञानिकों की मेधा और परिश्रम के साथ-साथ सरकार द्वारा दिए गए हर प्रकार के सहयोग और समर्थन से ही संभव हुई है। यह विवाद का नहीं, गर्व का विषय है।
लेकिन सरकार के हर काम में मीन मेख निकालने वालों को शायद यह विराट सफलता रास नहीं आ रही है। यही इसरो है जिसके विमान के उपकरण किसी समय साइकिल और बैलगाड़ी पर ले जाए जाते थे, आज उसी इसरो का यान सीधा चांद पर जा पहुंचा है। सफलता की यह भी एक नई परिभाषा है। फिर चंद्रयान जैसे बड़े मिशन को भी इसरो ने 600 करोड़ के अल्प बजट में कैसे कर दिखाया, यह पूरे विश्व के लिए अब आश्चर्य का विषय बन गया है।
चंद्रयान-3 की सफल साफ्ट लैंडिग के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसरो प्रमुख को फोन करके कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से बेंगलुरु आएंगे और चंद्रयान-3 की सफलता पर इसरो की पूरी टीम से मुलाकात करेंगे। उन्होंने इसरो की पूरी टीम को इस बेमिसाल सफलता के लिए बधाई दी है।
इसरो प्रमुख सोमनाथ ने बुधवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि प्रधानमंत्री ने दक्षिण अफ्रीका से फोन पर हम सभी को बधाई दी है। वास्तव में, हमें भी राष्ट्र की इस अभूतपूर्व उपलब्धि का गौरव अनुभव करना चाहिये और अपने निजी या वैचारिक विरोधों को भूलकर इस उपलब्धि का उत्सव मनाना चाहिए। देश के विपक्षी खेमे को यह बात समझने की सबसे अधिक जरूरत है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)