वैसे कांग्रेसी नेताओं के हालिया बयानों से यह बात स्पष्ट होती है कि कांग्रेस की सोच दो साल पहले सर्जिकल स्ट्राइक के समय जिस तरह सेना पर शक करने और सवाल उठाने वाली थी, वैसी ही आज भी है। गौरतलब है कि पिछले सप्ताह कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं के बयान सामने आए। ये बयान ना केवल आपत्तिजनक थे, बल्कि तथ्यहीन और बेमतलब भी थे। कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि घाटी में माहौल सुधर नहीं रहा, तो इसकी वजह ये है कि भारतीय सेना जो ऑपरेशन चलाती है, उसमें आतंकी कम और नागरिक अधिक मारे जाते हैं।
उड़ी हमले को भला कौन भूल सकता है ? सितंबर, 2016 में हुई इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। पाकिस्तान ने हमारे देश के 19 जाबांज जवानों को कायराना तरीके से मारा था, तो समूचे देश में गम और गुस्से का उबाल आ गया था। हर जुबान से प्रतिशोध लेने के स्वर उठ रहे थे।
भारतीय सेना ने महज 10 दिनों बाद ही पुरजोर और प्रभावी ढंग से इसका प्रतिशोध सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में ले लिया था। वीर जवानों ने 19 के बदले 38 आतंकी मारकर प्रतिशोध लिया था। इसकी खबरें मीडिया में आईं और हर राष्ट्रप्रेमी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। उस गर्व के क्षण में भी देश में कांग्रेस एवं विपक्षी दलों को सेना की इस कामयाबी पर खुशी नहीं हुई, उल्टा केंद्र सरकार से बहुत ही बेशर्मी के साथ इस सर्जिकल स्ट्राइक पर शक जाहिर करते हुए इसके प्रमाण मांगे गए।
अपने बेसिर पैर के और निम्न स्तरीय बयानों के लिए अक्सर विवादस्पद चर्चाओं में रहने वाले कांग्रेसी नेता संजय निरूपम, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सबूत मांगकर अपने वैचारिक दिवालियेपन का प्रमाण दिया था। लेकिन अब इस सप्ताह जब डेढ़ साल पुरानी सर्जिकल स्ट्राइक का वास्तविक वीडियो फुटेज सामने आया है, तो इन विपक्षी दलों और नेताओं को फिर से सांप सूंघ गया है।
पाक अधिकृत कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइल का वीडियो सामने आते ही फिर से राजनीति शुरू हो गई है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि सरकार इसके बहाने वोट जुटाने की कोशिश कर रही है। इस वीडियो को अब जारी करने का क्या उद्देश्य है। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस के इस बयान का जोरदार जवाब देते हुए कहा है कि चूंकि अभी किसी राज्य में चुनाव नहीं है, ऐसे में इस वीडियो को जारी करने का अर्थ स्पष्ट है कि इसे किसी भी चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए जारी नहीं किया गया है।
रविशंकर प्रसाद का जवाब तर्कसंगत है। वैसे देश के जनसामान्य को तो इस सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर कभी कोई अविश्वास नहीं था, लेकिन जिन्होंने तब इसपर अविश्वास जताया था और इसे ‘फर्जिक्ल स्ट्राइक’ कहते रहे थे, उनके पास अब कहने को शायद कुछ न हो।
कांग्रेसी की सेना विरोधी सोच
वैसे कांग्रेसी नेताओं के हालिया बयानों से यह बात स्पष्ट होती है कि कांग्रेस की सोच दो साल पहले जिस तरह सेना पर शक करने वाली थी, वैसे ही आज भी है। गौरतलब है कि पिछले सप्ताह कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं के बयान सामने आए। ये बयान ना केवल आपत्तिजनक थे, बल्कि तथ्यहीन और बेमतलब भी थे। कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि घाटी में माहौल सुधर नहीं रहा, तो इसकी वजह ये है कि भारतीय सेना जो ऑपरेशन चलाती है, उसमें आतंकी कम और नागरिक अधिक मारे जाते हैं।
यह अध्ययन की कमी और खीझ की बहुलता से उपजा बयान था, जिसका पीडीपी की सरकार के गिरने के बाद सामने आना केवल अपने पर ध्यान केन्द्रित करना ही प्रतीत हो रहा था। जाहिर है, इस अटपटे बयान पर हंगामा मचना ही था, सो मचा भी।आजाद के इस बेतुके बयान पर बवाल अभी थमा नहीं था कि पार्टी के एक और बड़े नेता सैफुद्दीन सोज ने भी एक अनोखा बयान दे डाला। उन्होंने कहा कि कश्मीर की जनता आजादी चाहती है, इसका भारत या पाकिस्तान में विलय किए जाने से समस्या हल नहीं होगी।
सोज के इस बयान के बाद भाजपा ने उन्हें आड़े हाथों लिया। हालांकि सोज ने बाद में अपना बचाव करते हुए ये भी कहा कि उनका बयान राजनीतिक नहीं है, लेकिन कांग्रेस ने ही कुछ दिन पहले कहा था कि कश्मीर में केंद्र सरकार की नीतियां आम आदमी के प्रतिकूल काम कर रही हैं।
इन दोनों कांग्रेस नेताओं ने जो अटपटा और बचकाना बयान दिया है, वह तो खैर भर्त्सना के योग्य है ही, लेकिन इससे भी इतर इस बिंदु पर अवश्य विचार किया जाना चाहिये कि इस प्रकार का बयान किस समय पर आया है। इन बयानों की टाइमिंग विचार योग्य है। कश्मीर में भाजपा एवं पीडीपी के गठबंधन की सरकार थोड़ा ही समय हुआ है, और कांग्रेस में खलबली मच गई है।
आतंकियों का सफाया
मुख्य रूप से सुरक्षा एवं आतंकवाद के मुद्दे पर ही भाजपा ने पीडीपी से गठबंधन भंग किया और इसके तुरंत बाद सेना को ऑपरेशन ऑलआउट की स्वतंत्रता दी गई। दो घटनाओं का एक साथ घटना हुआ। इधर, सरकार गिरी और उधर सेना ने आतंक के खिलाफ अपनी कमर कस ली। यह काम सफल भी हुआ।
सरकार गिरने के बाद लगातार रोज कहीं ना कहीं, आतंकवादियों के मारे जाने की खबरें सूचना माध्यमों से प्राप्त हो रही हैं। निश्चित ही केंद्र सरकार अपनी नीति में कामयाब हो रही है। स्वयं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने शनिवार को कश्मीर में अपने प्रवास के दौरान एक सभा को संबोधित करते हुए यह सार्वजनिक रूप से स्पष्ट किया कि उन्होंने क्यों पीडीपी से गठबंधन तोड़ा।
उन्होंने साफ-साफ लहजे में कहा कि कश्मीर की सरकार आतंक को नियंत्रित करने में असफल रही इसलिए हमें यह कदम उठाना पड़ा। जिस दिन भाजपा ने पीडीपी से गठबंधन तोड़ा था, उस दिन भाजपा के महासचिव राम माधव ने स्वयं मीडिया से चर्चा में इसके कारण गिनाते हुए कहा था कि कश्मीर में अराजकता फिर से चरम पर पहुंच गई है।
ईद के पर्व के दिन भी हिंसक घटनाओं का होना, रमजान के दौरान भारत की ओर से सीजफायर लागू किए जाने के बावजूद पाकिस्तान द्वारा इसका उल्लंघन करके भारतीय सैनिकों को मारना, कश्मीर में संपादक की खुलेआम गोली मारकर हत्या करना आदि घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि अब आतंक फिर से सिर उठाकर खड़ा हो गया है। अब बातों से काम नहीं चलेगा, एक्शन लेना होगा।
सो, भाजपा ने एक्शन ले लिया। लेकिन यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि गुलाब नबी आजाद और सोज जैसे नेता बिना किसी पृष्ठभूमि के कुछ भी कैसे बोल लेते हैं। यदि इन नेताओं को थोड़ा सा भी ज्ञान हो तो इन्हें पता होगा कि आतंकवाद के मुद्दे पर ही भाजपा ने कश्मीर में सरकार गिराई है तो ये किस आधार पर आरोप लगा रहे हैं कि सेना के ऑपरेशन में आतंकी नहीं, नागरिक मरते हैं।
आतंकियों की पैरवी कर रहे गुलाम नबी आजाद से पूछा जा सकता है कि पत्थरबाजों के बारे में क्या ख्याल है ? क्या पत्थरबाजी से राज्य की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचता ? पत्थरबाजी की चपेट में आकर विगत दिनों एक पर्यटक की मौत हो गई थी, तब आजाद कहां थे ? रही सही कसर सोज ने पूरी कर दी और साबित कर दिया कि वे कश्मीर के नाम पर राजनीति करने से बाज नहीं आने वाले। अपना बेतुका बयान देने से पहले कम से कम सोज को एक बार तो सोच लेना चाहिये था कि वे किस आजादी की बात कर रहे हैं।
वर्ष 1947 के विभाजन के पूर्व पाकिस्तान और कश्मीर किस राष्ट्र का अंग थे और अखंड भारत की क्या अवधारणा थी, क्या ये सामान्य ज्ञान की बात भी सोज को नहीं पता। कश्मीर सदा से भारत का अविभाज्य अंग रहा है। हां, यदि कश्मीर के लोगों को आजादी ही दिलाना है तो उन्हें पत्थरबाजों से, अलगाववादी नेताओं से, आतंकवाद से, पाकिस्तान द्वारा सीमा पर लगाए जा रहे आतंकी प्रशिक्षण शिविरों से आजादी दिलाई जाना चाहिये।
लेकिन इस बिंदु पर बोलना तो दूर, इन बातों का जिक्र तक आजाद और सोज ने करना उचित नहीं समझा। ऐसा मालूम होता है कि भारत में बैठकर ये नेता पाकिस्तान को खुश करने के लिए काम कर रहे हैं। इनके बयानों का स्वर पाकिस्तान की पक्षधरता को प्रकट करता है। आजाद के बयान पर तो लश्कर की तरफ से बयान जारी कर सहमति भी जताई गयी है।
क्या आतंकियों की हितैषी है कांग्रेस ?
यह पहली बार नहीं हुआ है जब कांग्रेस नेताओं ने ऐसे बोल बोले हैं। देश के खिलाफ ऐसे बयान देना और आतंकवाद की पैरवी करते हुए पाकिस्तान के हितों को साधना कांग्रेस की पुरानी परम्परा रही है। फिलहाल निलंबित कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर जब-तब पाकिस्तान में पक्ष में बोलकर यही साबित करते रहे हैं कि वे पाकिस्तान को उपकृत करने के लिए ही बैठे हैं।
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित ने तो भारतीय सेनाध्यक्ष के प्रति अत्यंत अभद्र एवं निम्न स्तर की टिप्पणी की थी, जिस पर बवाल मचा था। इन सब घटनाओं से साबित होता है कि जब भी आतंक के खिलाफ सेना ने अभियान चलाया है, कांग्रेस को कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ समस्या हुई है। लेकिन सवाल उठता है कि एक तरह से आतंकवादियों की पैरवी करने वाले अपने नेताओं के बयानों पर कांग्रेसी शीर्ष नेतृत्व प्रायः मौन ही रहता है। उनपर कोई कार्यवाही तो दूर, उन्हें चेतावनी तक नहीं दी जाती। आजाद और सोज के बयान पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मौन ही हैं।
असल में कश्मीर में भाजपा की सरकार गिरने का भाजपा से अधिक कांग्रेस को दुख हो रहा है। चूंकि, अब वहां राज्यपाल शासन लग चुका है, ऐसे में सरकार का हस्तक्षेप पूरी तरह बंद हो गया है। अब वहां केवल आंतरिक सुरक्षा की प्राथमिकता है। गुलाम नबी आजाद जैसे नेता तब गायब हो जाते हैं जब पाकिस्तान के आतंकवादी कश्मीर में घुसकर जवानों के सिर काट ले जाते हैं। वे तब भी चुप रहते हैं जब ईद के दिन भी घाटी में हिंसा का नंगा नाच होता है। लेकिन उन्हें तकलीफ हो जाती है जब सेना अपना अभियान शुरू करती है।
आतंकवाद का समर्थन किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। आजाद और सोज को तब सांप सूंघ गया था जब औरंगजेब और शुजात बुखारी की हत्या की गई। क्या तब इन्हें मानवाधिकार याद नहीं आया ? किस मुंह से ये नेता सेना पर टिप्पणी कर रहे हैं।
निश्चित ही ऐसे वरिष्ठ नेताओं का इतना लचर बयान आना कांग्रेस की उस बौखलाहट और बैचेनी को प्रकट करता है जो लगातार पराजयों से उपजी है। भारत की सेना ऐसे सतही और बेशर्म बयानों की परवाह किए बिना अपना काम करती चली जा रही है और आतंकियों की सूची बनाने के बाद अब उम्मीद है कि आने वाले दिनों में घाटी में आतंकियों के पाँव फिर से उखड़ने लगेंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)