यह अजीब है कि उत्तर प्रदेश में सपा बसपा को पूर्ण बहुमत से सरकार चलाने का अवसर मिला। लेकिन, अति-पिछड़ा और अति-दलित कभी इनके एजेंडे में नहीं रहे। जब सपा सत्ता में थी, तब बसपा उस पर जाति-विशेष को ही प्रत्येक स्तर पर अहमियत देने का आरोप लगाती थी। इसमें अति-पिछड़ा कहीं नहीं थे। बसपा सत्ता में थी, तब सपा उसपर जति-विशेष की हिमायत का आरोप लगाती थी। बसपा की मेहरबानी अति-दलितों के लिए नहीं थी। आज दोनों पार्टी गठबन्धन को बेताब हैं, लेकिन उनकी चिंता में आज भी अति-पिछड़ा और अति-दलित कहीं नहीं हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सामाजिक न्याय के विस्तार के लिए प्रयासरत दिख रहे हैं। उनकी मंशा आरक्षण के लाभ को अतिदलित और अतिपिछड़े वर्ग तक पहुंचाने की है। इसका ऐलान उन्होंने विधानसभा में किया। वैसे, आरक्षण का विषय संवेदनशील होता है। फिर भी समाज के वंचित वर्ग को इस माध्यम से बराबरी पर लाने की आवश्यकता है। लेकिन, इतने दशक बीतने के बाद भी आरक्षित वर्ग का एक बड़ा हिस्सा इस सुविधा से वंचित है। यदि इस ओर ध्यान न दिया गया तो सामाजिक न्याय का सपना कभी पूरा नही होगा।
हालांकि यह तथ्य वंचित वर्ग की ओर से उठता तो ज्यादा बेहतर होता। लेकिन, यह वंचित वर्ग विकास यात्रा में इतना पीछे छूट गया कि आवाज उठाने की जहमत भी नहीं उठा सकता। जिन्हें नौकरी मिल गई, वह प्रमोशन में आरक्षण के लिए तो वर्षो से आंदोलन कर रहे हैं, आवाज उठा रहे हैं, किन्तु जिन्हें आज तक आरक्षण नसीब ही नहीं हुआ, उनकी बात उठाने की चिंता नहीं की गई। इस आधार पर राजनीति करने वालों ने भी अतिवंचित वर्ग पर ध्यान देने की कभी आवश्यकता नहीं समझी। यहां तक कि ऐसे दल जब सत्ता में रहे तब उन पर जाति-विशेष को ही सर्वाधिक अहमियत देने के आरोप लगे, जबकि सामाजिक न्याय को वास्तविक रूप में न्यायपूर्ण बनाने की आवश्यकता थी। लेकिन, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस विषय को गंभीरता से उठाया है। उन्होंने कहा है कि आजादी के बाद मुख्यधारा से अलग रहे लोगों और वंचितों को सम्मानजनक अधिकार दिलाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है।
अतिदलित और अतिपिछड़ों को अलग से आरक्षण दिया जाएगा। आरक्षण में कुछ लोगों का एकाधिकार समाप्त किया जाएगा। सरकार इस पर सुझाव देने के लिए समिति का गठन करेगी। यह भी संयोग है कि पहले भी एकबार इसकी पहल भाजपा सरकार ने ही की थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने हुकुम सिंह की अध्यक्षता में समिति बनाई थी। इसने पिछड़ा वर्ग का आरक्षण सत्ताईस से बढ़ाकर अट्ठाइस करने की सिफारिश की थी। इसमें यादवों के लिए पांच प्रतिशत, शेष पिछड़ी जातियों के लिए तेईस प्रतिशत आरक्षण का फार्मूला बनाया गया था। इसी प्रकार दलितों में जाटव व उनके उपवर्गों को दस प्रतिशत और अन्य दलितों के लिए ग्यारह प्रतिशत आरक्षण निर्धारित किया गया था।
लेकिन, राजनाथ सिंह सरकार को केवल ग्यारह महीने बाद ही सत्ता से हटना पड़ा था। इससे यह मसला अधर में ही रह गया। सपा और बसपा की सरकारों ने इस सामाजिक न्याय पर कोई ध्यान नहीं दिया। एक बार फिर योगी आदित्यनाथ ने इसकी कमान संभाली है। उनकी कार्यशैली के आधार पर कहा जा सकता है कि वह इस विषय को अंजाम तक अवश्य ले जाएंगे। ऐसा नहीं कि यह देश में पहली बार होगा। देश के ग्यारह प्रदेशों में अति पिछड़ों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्राप्त है। बिहार, हरियाणा, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आंध्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, पांडुचेरी, प.बंगाल, केरल और जम्मू कश्मीर में यह व्यवस्था की जा चुकी है।
यह अजीब है कि उत्तर प्रदेश में सपा बसपा को पूर्ण बहुमत से सरकार चलाने का अवसर मिला। लेकिन, अति-पिछड़ा और अति-दलित कभी इनके एजेंडे में नहीं रहे। जब सपा सत्ता में थी, तब बसपा उस पर जाति-विशेष को ही प्रत्येक स्तर पर अहमियत देने का आरोप लगाती थी। इसमें अति-पिछड़ा कहीं नहीं थे। बसपा सत्ता में थी, तब सपा उसपर जति-विशेष की हिमायत का आरोप लगाती थी। बसपा की मेहरबानी अति-दलितों के लिए नहीं थी। आज दोनों पार्टी गठबन्धन को बेताब हैं, लेकिन उनकी चिंता में आज भी अति-पिछड़ा और अति-दलित कहीं नहीं हैं।
कुछ समय पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायधीश ने भी कहा था कि दलित और पिछड़ा वर्ग की एक जाति-विशेष आरक्षण कोटे का पूरा लाभ ले चुकी है। इस मुद्दे पर सरकार को विचार करना चाहिए। इसमें भी लगातार कई पीढ़ी से आरक्षण का लाभ उठाने वाला एक वर्ग तैयार हो चुका है। यह कहीं से भी पिछड़ा या दलित नहीं है। लेकिन, आरक्षण के नाम पर वह वंचित वर्ग का हिस्सा ले रहे हैं। कम जे कम इन मसलों पर चर्चा तो होनी चाहिए। यह अच्छा है कि योगी आदित्यनाथ ने आलोचनाओं की चिंता किये बिना इस दिशा में कदम बढ़ाया है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)