यह सर्वविदित है कि यह आखिरी सूची नहीं है बल्कि एक मसौदा है। लेकिन कांग्रेस और ममता की बौखलाहट से यह साबित होता है कि उन्हें अपने वोट बैंक की चिंता खाए जा रही है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बिना लाग-लपेट के इस मुद्दे पर जो रुख अपनाया है, वह इस बात का द्योतक है कि असम की जनता के अधिकारों पर कांग्रेस की शह पाए घुसपैठियों द्वारा वर्षों से जो अतिक्रमण किया गया है, उसे ख़त्म करने के अपने वादे के प्रति भाजपा पूर्णतः प्रतिबद्ध है।
एनआरसी का ड्राफ्ट आज संसद से सड़क तक चर्चा का केंद्रबिंदु बना हुआ है। सभी विपक्षी दल इस मुद्दे पर जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रहें हैं, वहीं सत्तारूढ़ भाजपा का स्पष्ट कहना है कि घुसपैठियों के मसले पर सभी दलों को अपना मत स्पष्ट करना चाहिए। देश की सुरक्षा के साथ भाजपा कोई समझौता नहीं करेगी, लेकिन इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि भाजपा को छोड़ कोई राजनीतिक दल एनआरसी की महत्ता को समझने की कोशिश नहीं कर रहा, अपितु वह अपने राजनीतिक जोड़–घटाव में लगा हुआ है।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पहले राज्यसभा में जिस आक्रामकता के साथ एनआरसी पर राजीव गांधी के हवाले से कांग्रेस को घेरा इससे कांग्रेस पूरी तरह बौखला गई। अमित शाह ने कांग्रेस की दोमुंही राजनीति को बेनकाब करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। सदन के अंदर तथा इस मुद्दे पर प्रेस कान्फ्रेंस में अमित शाह ने बार–बार साहस और हिम्मत जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। आखिर इन दो शब्दों के क्या मायने निकाले जाएँ?
दरअसल घुसपैठियों को कांग्रेस, टीएमसी जैसे दल अपने वोट बैंक के नजरिये से देखते हैं, इसलिए इस मसौदे के बाद से उनकी छटपटाहट देखने को मिल रही है। सहजता से अनुमान लगाया जा सकता है कि घुसपैठियों के चिन्हित होने से किसको वोट का नुकसान पहुँचने वाला है। वहीं दूसरी तरफ़ अमित शाह ने इस बात को भारतीयों की सुरक्षा एवं अधिकार से जोड़ते हुए स्पष्ट किया कि भाजपा सरकार में एनआरसी के क्रियान्वयन की हिम्मत है, क्योंकि भारतीयता के गौरव एवं स्वाभिमान की रक्षा के लिए वोट बैंक जैसी ओछी राजनीति वह नहीं कर रही है।
जाहिर है कि एनआरसी जैसे मुद्दे राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस अपने शासनकाल में इस मुद्दे की संवेदनशीलता को समझने की बजाय घुसपैठियों के राजनीतिक इस्तेमाल में व्यस्त रही जबकि भाजपा ने सत्ता में आते ही घुसपैठ की समस्या से असम की जनता को मुक्त कराने की हिम्मत दिखाई।
असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में करीब चालीस लाख लोगों के नाम जरूरी दस्तावेज़ न होने के कारण शामिल नहीं किए गए हैं। गौरतलब है कि असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला एक गंभीर रूप लेता दिखाई दे रहा था। वर्षों से किसी के पास यह ठोस एवं आधिकारिक जानकारी नहीं थी कि असम के अंदर कितने नागरिक अवैध हैं? असम चुनाव में घुसपैठियों का मुद्दा सभी मुद्दों पर भारी पड़ता हुआ दिखाई दिया था, जिसको भाजपा ने चुनाव के समय प्रमुखता से उठाया था और घुसपैठियों से प्रदेश को मुक्त कराने का वादा किया था,
इसका जिक्र तो कांग्रेस ने भी अपने घोषणापत्र में किया था, लेकिन भारतीय लोग यह बाखूबी समझते हैं कि जिस कांग्रेस के शासनकाल के दौरान उनके अधिकार एवं संसाधनों पर अवैध ढंग से घुसपैठियों ने अतिक्रमण किया, वह कैसे इस गंभीर समस्या से निदान दिला सकती है? ये कारण रहा कि भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार बनीं।
बहरहाल, इस मुद्दे के आने के पश्चात् कांग्रेस की झूठी सियासत का नकाब भी जार–जार हो गया है। जब सरकार असम के घुसपैठियों को चिन्हित करने की दिशा में सफलतापूर्वक आगे बढ़ रही है, तब कांग्रेस ने इसका विरोध करके यह प्रमाणित कर दिया है कि उसके घुसपैठियों से क्या रिश्ते हैं।
जैसे ही एनआरसी का मसौदा देश के सामने आया देश की राजनीति में भूचाल आ गया। अवैध नागरिकों को रोकने का मसला असम और उन राज्यों में सभी राजनीतिक दलों द्वारा उठाया जाता, जहाँ अवैध नागरिकों की संख्या बढ़ती जा रही है। लेकिन जैसे ही यह लिस्ट सामने आई कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने इसका जमकर विरोध किया और तमाम बेतुके सवाल सरकार की मंशा पर उठाए।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि जिनका नाम सूची में नहीं है, उन्हें नागरिकता साबित करने का मौक़ा दिया जाएगा तथा उन्हें किसी भी प्रकार से परेशान नहीं किया जायेगा। गौरतलब है कि इस मसले पर कोर्ट ने भी यह स्पष्ट किया है कि जिनका नाम इस लिस्ट में नहीं है, उनके उपर कोई दंडात्मक कार्यवाही नहीं की जाएगी। सरकार और सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट वक्तव्य के बाद भी कांग्रेस और ममता द्वारा इस विरोध के मायने क्या हैं? क्या अवैध घुसपैठियों के जरिये वोट बैंक की राजनीति का खेल खेला जा रहा है?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मसले पर जो रूख अख्तियार किया है, वह बेहद चिंताजनक और शर्मनाक है। आखिर ममता किस आधार पर गृह युद्ध छिड़ने की बात कह रही हैं? कहीं ऐसा तो नहीं वह इस बयान के जरिये जनता को हिंसा के लिए उकसा रहीं हैं?
देखा जाए तो अवैध घुसपैठिए देश की सुरक्षा के साथ–साथ आम नागरिकों के अधिकारों के लिए भी खतरनाक हैं। बावजूद इसके इस संवेदनशील मसले पर देश के विपक्षी दलों ने जिस छिछली राजनीति का परिचय दिया है, उससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ये राजनीतिक दल देश की सुरक्षा जैसे गंभीर विषय पर भी एका दिखाने में असमर्थ हैं।
यह सर्वविदित है कि यह आखिरी सूची नहीं है बल्कि एक मसौदा है। लेकिन कांग्रेस और ममता की बौखलाहट से यह साबित होता है कि उन्हें अपने वोट बैंक की चिंता खाए जा रही है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बिना लाग-लपेट के इस मुद्दे पर जो रुख अपनाया है, वह इस बात का द्योतक है कि असम की जनता के अधिकारों पर कांग्रेस की शह पाए घुसपैठियों द्वारा वर्षों से जो अतिक्रमण किया गया है, उसे ख़त्म करने के अपने वादे के प्रति भाजपा पूर्णतः प्रतिबद्ध है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)