आम तौर पर गरीबों की हितैषी वाली योजनाएं शुरू में तो धूमधड़ाके के साथ होती हैं, लेकिन बाद में वे भ्रष्ट तत्वों के जीने-खाने का जरिया बन जाती हैं, परंतु प्रधानमंत्री जनधन योजना के साथ ऐसा नहीं हुआ। मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के चलते 2014 के पांच महीनों में दस करोड़ से ज्यादा बैंक खाते खोले गए जो कि एक विश्व रिकार्ड है। गरीबों को बैंकिंग प्रक्रिया से जोड़ने की यह रफ्तार आगे भी जारी रही और अब तक प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत 29.04 करोड़ से ज्यादा बचत खाते खुल चुके हैं। इनमें से 17.36 करोड़ खाते ग्रामीण इलाकों में खुले।
सैद्धांतिक रूप से ही भले ही बैंकों को गरीबों का हितैषी कहा जाता हो लेकिन व्यावहारिक धरातल पर बैंकों का ढांचा अमीरों के अनुकूल और गरीबों के प्रतिकूल रहा है। देश में गरीबी की व्यापकता एवं उद्यमशीलता के माहौल में कमी की एक बड़ी वजह यह भी है। 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद यह उम्मीद बंधी थी कि अब बैंकों की चौखट तक गरीबों की पहुंच बढ़ेगी लेकिन वक्त के साथ यह उम्मीद धूमिल पड़ती गई। इसका नतीजा यह निकला कि आजादी के 67 वर्षों बाद भी देश की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से के पास बैंकिंग, बीमा या पेंशन जैसी वित्तीय सुविधाएं नहीं पहुंच पाईं।
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने तक देश के सिर्फ 55 प्रतिशत लोगों के पास जमा खाता और प्रति 14000 लोगों पर एक बैंक शाखा थी। सिर्फ दस प्रतिशत लोगों के पास जीवन बीमा की सुरक्षा थी, गैर-जीवन बीमा कवर वालों की संख्या तो महज 0.6 फीसदी ही थी। बैंकों की सीमित पहुंच का ही नतीजा था कि हर स्तर पर बिचौलियों-भ्रष्टाचारियों की भरमार रही। इन बिचौलियों-भ्रष्टाचारियों ने गरीबों का हक छीनकर अकूत दौलत कमाई और इस दौलत को विदेशी बैंकों में जमा किया।
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने “सबका साथ-सबका विकास” के लिए आम जनता को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने का बीड़ा उठाया। “हर घर का पासबुक” जैसा महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2014 को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री जन धन योजना शुरू करने का एलान किया। इस योजना की शुरूआत 28 अगस्त 2014 को हुई और इस दिन बैंकों ने गरीबों का खाता खोलने के लिए देश भर में 60,000 शिविर लगाया। इसका परिणाम यह हुआ कि योजना के पहले ही दिन देश भर में डेढ़ करोड़ बैंक खाते खोले गए। पहले ही दिन योजना को मिली इस अभूतपूर्व कामयाबी देखते हुए प्रधानमंत्री ने 28 अगस्त को ‘वित्तीय स्वतंत्रता दिवस” करार दिया।
आम तौर पर गरीबों की हितैषी वाली योजनाएं शुरू तो धूमधड़ाके के साथ होती हैं, लेकिन बाद में वे भ्रष्ट तत्वों के जीने-खाने का जरिया बन जाती हैं, परंतु प्रधानमंत्री जनधन योजना के साथ ऐसा नहीं हुआ। मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के चलते 2014 के पांच महीनों में दस करोड़ से ज्यादा बैंक खाते खोले गए जो कि एक विश्व रिकार्ड है। गरीबों को बैंकिंग प्रक्रिया से जोड़ने की यह रफ्तार आगे भी जारी रही और अब तक प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत 29.04 करोड़ से ज्यादा बचत खाते खुल चुके हैं। इनमें से 17.36 करोड़ खाते ग्रामीण इलाकों में खुले।
इस दौरान 22.54 करोड़ रुपये कार्ड जारी किए गए। 1.26 लाख बैंक मित्र बैंकिंग सुविधाओं को गरीबों के दरवाजे तक ले गए। बैंक मित्रों द्वारा किया जाने वाला लेन-देन भी 84 गुना तक बढ़ चुका है। 2014 में जहां एक बैंक मित्र औसतन 52 रूपये का लेन-देन करता था, वहीं अब यह राशि बढ़कर 4291 रूपये हो गई है। जीरो बैलेंस खाता खोलने की छूट के बावजूद जन धन खातों में 64,564 करोड़ रूपये जमा हुए जो एक बड़ी उपलब्धि है। इतना ही नहीं, हर खाते में औसत जमा में भी बढ़ोत्तरी हो रही है। मार्च 2015 में जहां प्रति खाते में औसत जमा 1064 रूपये था, वहीं मार्च 2017 में यह औसत बढ़कर 2235 रूपया हो गया।
बैंकिंग सुविधाएं गरीबों की पहुंच में हों इसके लिए मोदी सरकार ने 800 करोड़ रूपये की लागत से भारतीय डाक भुगतान बैंक को मंजूरी दी है। इसके तहत सितंबर 2017 तक डाकघर की 650 शाखाओं में बैंकों का परिचालन शुरू हो जाएगा। इन शाखाओं को ग्रामीण इलाकों में स्थित 1,39,000 डाकघरों से जोड़ा जाएगा। इसके साथ ही 1,43,000 ग्रामीण डाक सेवकों को हस्तचालित एटीएम मशीन दी जाएंगी ताकि वे दूरदराज के इलाकों में बैंकिंग सुविधा उपलबध करा सकें। गौरतलब है कि भुगतान बैंक ग्राहकों से जमा तो स्वीकार करते हैं लेकिन कर्ज नहीं देते। यहां बिजली-पानी जैसी सेवाओं के बिल जमा कराए जा सकते हैं। इस प्रकार गरीबों को इन कामों के लिए तहसील या जिला मुख्यालयों के चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा।
गरीबों का हक छीनकर विदेशी बैंकों में अकूत धन जमा कराने वाले कांग्रेसी नेताओं का पराभव हो रहा है तो उसकी असली वजह यही है कि अब गरीबों को उनका हक सीधे उनके बैंक खाते में पहुंचाने वाली सरकार आ गई है। कांग्रेसियों के साथ इसका सबसे ज्यादा खामियाजा सत्ता के उन दलालों को उठाना पड़ रहा है जो बिना कुछ किए धरे मौज कर रहे थे।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)