पिछला रिकार्ड भले ही निराशाजनक रहा हो, लेकिन नए वादों में राहुल कोई कंजूसी करते नहीं दिखे। मंदसौर में उन्होंने वादों की झड़ी लगा दी। लेकिन वादों की विश्वसनीयता पर विचार नहीं किया। वास्तविकता यह है कि वह जो भी वादे करेंगे, उसकी कसौटी यूपीए सरकार होगी। इतना ही नहीं, तब राहुल गांधी के निर्वाचन क्षेत्र की भी बात चलेगी जहाँ जमीन अधिग्रण के बावजूद फूड पार्क और साइकिल फैक्ट्री नहीं लगी जबकि उस दौरान केंद्र में कांग्रेस और उत्तर प्रदेश में उनका समर्थन करने वाली बसपा-सपा सरकारें रही थीं।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को शिकायत है कि प्रधानमंत्री अपने मन की बात करते हैं, लेकिन दूसरे के मन की बात नहीं सुनते। इस आधार पर उन्होंने अपने को नरेंद्र मोदी से अलग दिखाने का प्रयास किया। कहा कि वह अपने मन की बात नहीं करते, लोगों के मन की बात सुनते हैं। ये बात अलग है कि इसके बाद राहुल मंदसौर रैली में अपने मन की जमकर बोले। नरेंद्र मोदी, अमित शाह, अरुण जेटली, शिवराज सिंह चौहान किसी को नहीं छोड़ा।
यदि राहुल की बात सच है कि वे मन की बात नही करते, तो ये जो इतना उन्होंने बोला और अक्सर बोलते रहते हैं, उसे मन का गुबार ही कहा जाएगा, क्योकि रैलियों में यह संभव ही नहीं होता कि हजारों लोग बोलेन और नेता जी सुनते रहें। यदि कोई यह कहता है कि वह रैली में लोगों की बात सुनने आया है, तो इस पर यकीन नही किया जा सकता। कुछ बातों पर समर्थकों की हामी अवश्य भराई जा सकती है, लेकिन नेता को अपनी बात ही रखनी होती है।
पिछला रिकार्ड भले ही निराशाजनक रहा हो, लेकिन नए वादों में राहुल कोई कंजूसी करते नहीं दिखे। मंदसौर में उन्होंने वादों की झड़ी लगा दी। लेकिन वादों की विश्वसनीयता पर विचार नहीं किया। वास्तविकता यह है कि वह जो भी वादे करेंगे, उसकी कसौटी यूपीए सरकार होगी। इतना ही नहीं, तब राहुल गांधी के निर्वाचन क्षेत्र की भी बात चलेगी जहाँ जमीन अधिग्रण के बावजूद फूड पार्क और साइकिल फैक्ट्री नहीं लगी जबकि उस दौरान केंद्र में कांग्रेस और उत्तर प्रदेश में उनका समर्थन करने वाली बसपा-सपा सरकारें थीं।
अब दावा यह कि कांग्रेस प्रत्येक शहर की ‘मेक इन’ मोहर बनवा कर ही दम लेगी। मतलब यह कि राहुल प्रत्येक शहर में स्मार्ट फोन, जूस, कपड़े और चीन में बनने वाले सभी उत्पादों की फैक्ट्री लगवा देंगे। उन उत्पादों पर मेक इन के आगे उस शहर का नाम होगा। गनीमत है कि राहुल गांधी अभी तहसील, ब्लाक और गांव के स्तर पर नहीं पहुंचे हैं, अन्यथा चमत्कार ही हो जाता।
कर्नाटक में उनकी सरकार पांच साल चली, जोड़-तोड़ से दुबारा भी बन गई। लेकिन राहुल ने यह नहीं बताया कि वहाँ कितने जिले मेक इन अभियान में शामिल हो गए हैं। राहुल गांधी का मंदसौर भाषण भी दिलचस्प था। ऐसा लगा जैसे वह कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर मध्यप्रदेश का कायाकल्प कर देंगे। मंदसौर में किसानों की कर्जमाफी होगी और ‘मेड इन मंदसौर’ स्मार्ट फोन लोगों की जेब में होंगे।
राहुल के भाषण में वैसे नया कुछ भी नहीं था। नरेंद्र मोदी पर वही पुराने आरोप दोहराए। जैसे नोटबन्दी, नीरव मोदी को धन देने के लिए की गई थी। मतलब लोगों का धन इक्कट्ठा कराया, फिर वही गठरी नीरव मोदी को दे दी और उसे विदेश भगा दिया। पन्द्रह पूंजीपतियों का लाखों करोड़ रुपये का कर्जा माफ कर दिया।
मतलब कि वही पुराने कपोल-कल्पित और रटे-रटाए आरोप दोहराए गए। यह ठीक ही है कि इन आरोपों के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पूंजीपतियों की कर्जमाफी पर राहुल को चुनौती दी है। जेटली का दावा है कि किसी पूंजीपति का एक रूपया माफ नहीं किया गया। अरुण जेटली ने राहुल गांधी के मंदसौर भाषण का जवाब दिया है।
जेटली ने यह कहा कि क्या राहुल को अपर्याप्त जानकारी दी जा रही या फिर क्या वह तथ्यों को लेकर थोड़ा लापरवाह हैं। जेटली ने लिखा कि राहुल का प्रधानमंत्री पर पन्द्रह शीर्ष उद्योगपतियों का दो लाख करोड़ से अधिक का कर्ज माफ करने का आरोप तथ्यहीन और पूरी तरह से गलत है। सरकार ने किसी भी उद्योगपति का एक भी पैसा माफ नहीं किया है। सच्चाई बिल्कुल अलग है।
जिन्होंने बैंकों और अन्य कर्जदाताओं से कर्ज लिया है और चुकाया नहीं, उन्हें दिवालिया घोषित किया गया है। उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की सरकार द्वारा लागू किए गए कानून के तहत कंपनियों से बेदखल कर दिया गया है। हकीकत यह है कि ये कर्ज यूपीए सरकार के दौरान दिया गया था। राहुल यदि अपने को सही मानते हैं, तो उन्हें जेटली की चुनौती स्वीकार करनी चाहिए। अन्यथा ऐसे आरोप लगाने से बचना चाहिए।
राहुल गांधी के भाषण का जवाब केवल जेटली ने ही नहीं दिया बल्कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी आकड़ो के आधार पर बताया कि कांग्रेस ने किसानों की मूलभूत समस्याओं को दूर करने की दिशा में कारगर कदम नहीं उठाए थे। दस वर्ष के शासन में एक बार कर्जमाफी का ढिंढोरा वह आज तक पीट रही है। दस वर्षों में उसने सात वर्षों तक कोई कर्जमाफी नहीं दी। अब राहुल को कर्ज की याद आ रही है।
भाजपा ने तथ्यों के आधार पर राहुल गांधी को घेरने का प्रयास किया। यह राहुल के लिए चुनौती की तरह था। लेकिन इनका जवाब देना आसान नही है। यूपीए सरकार के आधार पर राहुल के मंदसौर में किये गए दावों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। भाजपा ने राहुल के सामने चार वर्ष की उपलब्धियों को चुनौती के रूप में पेश किया है।
दरअसल चार वर्षों में अभूतपूर्व कार्य हुए हैं। अठारह हजार गांवों में पहली बार बिजली पहुंची। चौंतीस करोड़ लोगों ने पहली बार बैंक में खाता खुलवाया। चौतीस प्रतिशत के मुकाबले आज बयासी प्रतिशत लोगों के पास बैंक खाता है। पहले नौ प्रतिशत लोगों के पास बीमा था, आज छब्बीस प्रतिशत लोगों के पास है।
तीन करोड़ से अधिक परिवारों को एलपीजी कनेक्शन दिए गए। यूपीय सरकार में प्रतिदिन एक से दो किलोमीटर नई सड़क बनती थी, आज आठ किलोमीटर प्रतिदिन बनती है। यूपीए के समय में सेना के पास दो दिन युद्ध लड़ने का आयुध था, आज सोलह दिन लड़ने का आयुध उपलब्ध है। इसमें लगातार वृद्धि हो रही है। भारत हथियार निर्माता बनने की दिशा में बढ़ रहा है।
यूपीए के दस वर्षों में तीन लाख नब्बे हज़ार गरीब परिवारों को घर मिले थे, जबकि मोदी के चार वर्षों में छिहत्तर लाख गरीब परिवारों को अपने घर मिले हैं। यूपीए शासन के समय तक नौ प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास शौचालय था और आज साठ प्रतिशत के करीब पहुंच रहा है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की वजह से भ्रष्टाचार के मामले में सत्तर प्रतिशत तक कमी आयी है। नोटबन्दी और जीएसटी से आयकर दाताओं की संख्या में तीस प्रतिशत की बृद्धि हुई है।
आयुष्मान भारत योजना के तहत लगभग पचास करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य बीमा देने का कार्य प्रगति पर है। तीन से अधिक करोड़ युवाओं को स्टार्टअप योजना के तहत कम इंटरेस्ट पर लोन देकर रोजगार के अवसर पैदा किये गए हैं। कौशल विकास योजना के तहत छह करोड़ युवाओं को प्रशिक्षण देकर उनके लिए स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराए गए हैं।
जोजिला दर्रे पर पन्द्रह किलोमीटर टनल रोड बनाकर लेह लद्दाख को बारह महीने देश से जोड़े रखने का काम शुरू हो गया है। अभी तक लद्दाख साल के सात महीने देश से कटा रहता था। मेक इन इंडिया के तहत बीस से अधिक बड़ी कंपनियों ने देश मे मैनुफैक्चरिंग यूनिट या तो शुरू कर दी है या प्रक्रिया में है। पैंतालीस वर्षो के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है जब मेघालय, मणिपुर और अरुणाचल में पहली बार ट्रेन पहुंची।
राहुल गांधी की सरकार तो किसानों तक यूरिया पहुंचाने के प्रति भी गंभीर नहीं थी। यह कार्य नरेंद्र मोदी ने किया। फसल बर्बाद होने की क्षतिपूर्ति की राशि पचास प्रतिशत बढ़ाई गई। भूमि अधिग्रहण में किसानों को अधिक लाभ के लिए तेरह कानून बनाए गए। पिछले बजट में फसलों के लागत से डेढ़ गुना समर्थन मुल्य की घोषणा की गई है। किसानों को आठ लाख करोड़ रुपए से अधिक का ऋण मोदी सरकार पिछले तीन वर्षों में बांट चुकी है।
छोटे किसानों के हित के लिए बाइस हजार ग्रामीण हाटों को किसान बाजार के रूप में विकसित करने का काम जोर-शोर से चल रहा है। गोवंश और दूध की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय गोवंश मिशन और पिछले बजट में गोवर्धन योजना शुरू की गयी है। फल और सब्जियां उगाने वाले किसानों को सीधा लाभ कैसे मिले, मोदी सरकार इस दिशा में बेहतर काम कर रही है।
यह संयोग है कि भाजपा इस समय सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर सम्पर्क अभियान चला रही है। उसके पास अपनी सरकार के चार और यूपीए के दस वर्षों का रिपोर्ट कार्ड है। इसमें यूपीए सरकार कहीं नहीं ठहरती। इस सरकार के चार वर्षीय कार्यकाल की उपलब्धियों के तथ्यों के आईने में राहुल के आरोप केवल और केवल उनके ‘मन का गुबार’ ही नजर आते हैं। बावजूद इसके राहुल जाने किस आधार पर मोदी सरकार पर सवाल उठा रहे हैं।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)