देश हित के मुद्दों पर पहले भी सरकारें काम करती रही हैं, लेकिन नीति को लेकर जब तक आप स्पष्ट दृढ़ता नहीं दिखाते दुश्मनों में संशय बना रहता है। हो सकता है कि सीमापार जाकर सेना ने पहले भी कई सर्जिकल स्ट्राइक किये हों, लेकिन इस सरकार ने फैसला किया कि दुश्मनों को इसका सख्त सन्देश देना चाहिए। नतीजा था, पहली बार सरकार ने सीना ठोंक कर एलओसी पार जाकर कार्यवाही करने की बात स्वीकारने की अनुमति सेना को दी। इसका सन्देश यह गया कि अगर फिर कभी सरहद पार से आतंकी वारदात को अंजाम दिया गया तो न सिर्फ मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा अपितु आतंक के अड्डों पर हमला करने में सेना पीछे नहीं हटेगी।
केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद एक बात साफ़ हुई है कि विपक्ष की सोच के विपरीत भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर एक सख्त और सर्वमान्य नीतियों को लेकर जनता ने भी सरकार का समर्थन किया है। मुद्दा चाहे राजनीतिक हो, सुरक्षा का हो या आर्थिक, नरेन्द्र मोदी सरकार ने स्टैंड लिया है। इसका नतीजा न सिर्फ चुनावी सफलता के तौर पर परिलक्षित हुआ है, बल्कि आम जनमानस में नेतृत्व को लेकर बेहतर और मजबूत छवि भी स्थापित हुई है। इस संदर्भ में सरकार के ऐसे कुछ निर्णय उल्लेखनीय होंगे, जिनसे सिद्ध होता है कि प्रधानमंत्री मोदी के रूप में देश की बागडोर एक मजबूत नेतृत्वकर्ता के हाथों में है।
नोटबंदी के बाद बढ़ा आईटीआर
केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद काले धन पर रोक लगाने के लिए नोटबंदी जैसे मजबूत कदम उठाए गए। शुरआती दौर में इससे जनता को थोड़ी मुश्किलों का सामना जरूर करना पड़ा, लेकिन अगर चुनावों की बात करें तो उत्तर प्रदेश जैसे निर्णायक राज्यों के चुनावों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। काले धन की अर्थव्यवस्था को समाप्त करने में सरकार को पर्याप्त सफलता मिली।
इस बार 2016-17 के लिए दाखिल किए गए इनकम टैक्स रिटर्न के आंकड़ों पर गौर करें तो नोटबंदी और ऑपरेशन क्लीन का नतीजा यह रहा कि इनकम टैक्स भरने वालों की तादाद में 25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखने को मिली। वित्त मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, ‘आईटीआर में इस इजाफे से पता चलता है कि नोटबंदी के बाद बड़ी संख्या में लोगों को टैक्स के दायरे में लाया जा सका है।‘
नोटबंदी का सीधा-सीधा असर डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन पर भी देखा गया। 5 अगस्त तक के आंकड़े बताते हैं कि अडवांस टैक्स कलेक्शन (व्यक्तिगत इनकम टैक्स) में 41.79 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसका मतलब यह हुआ कि लोगों में आमदनी को छिपाने की प्रवृति कम हुई। यह एक कमजोर या दिशाहीन नेतृत्व के रहते शायद संभव नहीं हो पाता।
आतंकवाद और अलगाववादियों के खिलाफ सख्त रुख
दूसरा बड़ा मुद्दा था – आतंकवाद, जिसको लेकर सरकार ने अपना रुख साफ़-साफ़ देश के सामने रख दिया है कि वो आतंकवाद को लेकर कोई समझौता नहीं करेगी। चाहे वह आतंकवाद देश के अंदर से समर्थित हो रहा हो या विदेशी धरती से। कश्मीर में शुरुआती दो सालों में खूब पत्थरबाजी की घटना हुई, लेकिन सरकार ने इस आतंकवाद के गणित को भी समझा और निर्णायक कदम उठाया।
आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले आकाओं पर हाथ डालने की पहले किसी ने हिम्मत नहीं की थी, इसकी पहल मोदी सरकार ने की। हवाला के ज़रिए सालों से आतंकवादियों को पैसा मुहैया कराया जा रहा था, इसे पहले क्यों नहीं समझा गया? आज शीर्ष के कश्मीरी नेता सलाखों के पीछे इसलिए खड़े हैं, क्योंकि उन्हें भारतीय कानून के दायरे में रहते हुए कभी भी कटघरे में खड़ा नहीं किया गया था।
कश्मीरी मामलों के जानकारों का कहना है कि सरकार की सख्ती की वजह से कश्मीर में आतंकवाद लगभग अपने अंतिम दौर में है। सेना ने पिछले कुछ महीनों में आतंकियों के गिरोह को चुन-चुनकर मारने का जो कठिन काम किया है, उसके पीछे कहीं न कहीं स्थानीय जनता का सहयोग भी है। बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर में दर्जन भर के करीब आतंकियों को ढेर किया गया। यह स्थानीय समर्थन और सूचना के बिना संभव नहीं था।
आतंक को लेकर सेना सिर्फ सख्ती अपना रही हो, ऐसा नहीं है। सेना उनलोगों को पर्याप्त मौका भी दे रही है जो मुख्यधारा में वापस लौटना चाहते हैं। कुछ दिनों पहले ही सेना और कश्मीर के शीर्ष आतंकी अबु दुजाना के बीच हुई बातचीत का रिकॉर्ड सामने आया जिसमें सेना ने उसे आत्मसमर्पण करने को कहा। सेना का यह मानवीय पक्ष था, जिसकी दुनिया भर में खूब सराहना हुई। सेना अगर चाहती तो उसे बोलने का मौका भी नहीं देती।
सर्जिकल स्ट्राइक
देश हित के मुद्दों पर पहले भी सरकारें काम करती रही हैं, लेकिन नीति को लेकर जब तक आप स्पष्ट दृढ़ता नहीं दिखाते दुश्मनों में संशय बना रहता है। हो सकता है कि सीमापार जाकर सेना ने पहले भी कई सर्जिकल स्ट्राइक किये हों, लेकिन इस सरकार ने फैसला किया कि दुश्मनों को इसका सख्त सन्देश देना चाहिए। नतीजा था, पहली बार सरकार ने सीना ठोंक कर एलओसी पार जाकर कार्यवाही करने की बात स्वीकारने की अनुमति सेना को दी। इसका सन्देश यह गया कि अगर फिर कभी सरहद पार से आतंकी वारदात को अंजाम दिया गया तो न सिर्फ मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा अपितु आतंक के अड्डों पर हमला करने में सेना पीछे नहीं हटेगी।
इसका भी परिणाम सामने आया, आतंकियों ने अपने अड्डे या तो समेट लिए या पीछे ले जाने को मजबूर हुए। भारत के दबाव का नतीजा था कि आज पाकिस्तान हाफिज सईद के खिलाफ कदम उठाने को मजबूर है। अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकी राज्य अगर करार दिया है, तो इसके पीछे भारत की मौजूदा सरकार की कारगर विदेश नीति की ही सफलता है।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भी मोदी में एक निर्णायक नेता की छवि दिखती है, जो भारत के लिए न सिर्फ खड़ा होने का माद्दा रखता है बल्कि वह अमेरिका, जापान, साउथ कोरिया, इजरायल जैसे देशों के साथ मिलकर आगे बढ़ने की दूर दृष्टि भी रखता है। स्पष्ट है कि चीन भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की शक्ति और सामर्थ्य को स्वीकार रहा है।
ये तथा ऐसी ही और भी तमाम बातें हैं जिन्होंने आम जनमानस में सरकार की मजबूत और निर्णायक छवि को को स्थापित किया है। इनसे साबित होता है कि देश में एक फौलादी इरादों वाली निर्णायक सरकार है। लोगों में विश्वास है कि ऐसी मजबूत नेतृत्व वाली सरकार के हाथों में देश एकता, अखंडता और सम्प्रभुता पूर्णतः सुरक्षित है। लोक का तंत्र के प्रति ऐसा विश्वास भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा ही कहा जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)