लंबे अरसे के बाद मोदी सरकार सबका साथ, सबका विकास की ओर आगे बढ़ते हुए खेती-किसानी संबंधी आधारभूत ढांचा बनाने में जुटी है ताकि 2022 तक किसानों की आमदनी दो गुनी करने का लक्ष्य हासिल किया जा सके। कांग्रेस समेत सभी विरोधी दल इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि एक बार खेती का फायदे का सौदा बन गई तो किसानों के हितैषी बनने और वोट बैंक की राजनीति करने का दौर खत्म हो जाएगा। किसान आंदोलन की असली वजह यही है। यह पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित आन्दोलन हैं।
यह एक हद तक सही है कि देश में किसानों की माली हालत ठीक नहीं है, लेकिन पिछले दिनों जिस तरह अचानक देश के कई हिस्सों में किसानों का आंदोलन उठ खड़ा हुआ, उससे 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सक्रिय हुए पुरस्कार वापसी गिरोह की याद ताजा हो उठी। बाद में किसानों को आंदोलन के लिए भड़काने, सड़कों पर दूध बहाने से लेकर सब्जी फेंकने तक में कांग्रेसी नेताओं की संलिप्तता के ऑडियो-वीडियो सामने आने के बाद यह प्रमाणित भी हो गया।
दरअसल आंदोलन शुरू होते ही यह लगने लगा था कि यह असहिष्णुता और पुरस्कार वापसी गिरोह जैसी ही साजिश है। इसका कारण है कि जिस मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन हिंसक हुआ, वहां पिछले पंद्रह वर्षों में कृषि के सकल घरेलू उत्पाद में 9.4 फीसदी सालाना की रफ्तार से बढ़ोत्तरी हुई। यह वृद्धि दर गुजरात की (9.5 फीसदी) के बाद देश में दूसरी सबसे ज्यादा वृद्धि दर है। इस दौरान राष्ट्रीय स्तर पर इस वृद्धि दर का औसत 3.3 फीसदी रहा।
मध्य प्रदेश में हुई इस ऊंची कृषि विकास दर का सकारात्मक परिणाम किसानों की आदमनी पर पड़ा और 2002-03 से 20012-13 के बीच प्रदेश में किसानों की पारिवारिक आमदनी 15 फीसदी सालाना की रफ्तार से बढ़ी। इस विकास दर में सरकारी खरीद की ई-उपार्जन नीति, ब्याज मुक्त कृषि ऋण, सड़क संपर्क व सिंचाई सुविधा के विस्तार आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा खेती को फायदे का सौदा बनाने की कोशिशों को एसोचैम की रिपोर्ट में भी सराहा गया है। इनमें उल्लेखनीय हैं – कृषि से जुड़े मुद्दों पर नीतिगत निर्णय लेने के लिए कृषि कैबिनेट का गठन, सहकारी समितियों द्वारा किसानों को शून्य ब्याज दर पर ऋण उपलबध कराना, बलराम तालाब योजना के तहत एक लाख रूपये की सहायता राशि, किसानों के लिए बिजली का अलग फीडर आदि।
रिपोर्ट में 2004-05 से 2013-14 के बीच देश के सभी राज्यों के प्रदर्शन का आकलन करते हुए मध्य प्रदेश को कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों में पिछले एक दशक में सबसे अधिक विकास दर हासिल करने वाला राज्य बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2013-14 के दौरान प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान 29 फीसदी रहा। देश के कृषि उत्पादन में 9 फीसदी योगदान के साथ मध्य प्रदेश अब उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर है।
राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो खेती-किसानी की बदहाली की वजह यह है कि उदारीकरण का रथ महानगरों और हाईवे से उतरकर अभी गांव की पगडंडी तक नहीं पहुंचा है। इसके लिए यूपीए सरकार की एकांगी नीतियां जिम्मेदार हैं, जिसमें यह मान लिया गया कि विनिर्माण और सेवा क्षेत्र की ऊंची विकास दर के बल पर देश का सर्वांगीण विकास किया जा सकता है। इसी एकांगी नीति का नतीजा रहा कि ऊंची विकास दर के बावजूद खेती-किसानी की बदहाली बढ़ती गई। इस दौरान नारा तो सत्ता के विकेंद्रीकरण का लगाया गया, लेकिन सत्ता का केंद्रीकरण भ्रष्टाचार में लिप्त पारिवारिक सत्ता तक सिमटा रहा।
यूपीए काल की अदूरदर्शी नीतियों का ही नतीजा है कि कृषि ऋणों में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी के बावजूद किसानों की बदहाली बढ़ती गई। गौरतलब है कि जहां 2004 में 86,000 करोड़ रूपये का कृषि ऋण आवंटित किया गया वहीं 2014-15 में यह बढ़कर आठ लाख करोड़ रूपये हो गया। लेकिन कृषिगत आधारभूत ढांचा निर्माण पर ध्यान न दिए जाने का फल यह हुआ कि जितना अधिक कर्ज बंटा किसान उतने ही ज्यादा कर्ज में डूबते गए। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के 59वें सर्वे के मुताबिक 2003 में देश के 48 फीसदी किसान ऋणग्रस्त थे। एक दशक बाद 2014 में आई एनएसएसओ की 70वीं रिपोर्ट में यह अनुपात बढ़कर 52 फीसदी हो गया।
लंबे अरसे के बाद मोदी सरकार सबका साथ, सबका विकास की ओर आगे बढ़ते हुए खेती-किसानी संबंधी आधारभूत ढांचा बनाने में जुटी है ताकि 2022 तक किसानों की आमदनी दो गुनी करने का लक्ष्य हासिल किया जा सके। मोदी सरकार कृषिगत विकास नीति को दूरगामी नतीजे देने वाले सड़क, सिंचाई और सरकारी खरीद पर केंद्रित कर रही है।
उल्लेखनीय है कि सिंचित रकबे और सड़कों की लंबाई में एक-एक फीसदी की बढ़ोत्तरी से कृषि विकास दर में क्रमश: 0.98 फीसदी और 0.94 फीसदी की बढ़ोत्तरी होती है। कृषि उपज के कारोबार में एक फीसदी के इजाफे से कृषि विकास दर में 1.7 फीसदी का इजाफा होता है। इन्हीं सुविधाओं के बल पर गुजरात ने एक दशक से अधिक समय तक 10 फीसदी से अधिक कृषि विकास दर हासिल की। अब मोदी सरकार गुजरात की इस चमत्कृत करने वाली कृषि क्रांति को देश भर में दुहराने में जुटी है। कांग्रेस समेत सभी विरोधी दल इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि एक बार खेती का फायदे का सौदा बन गई तो किसानों के हितैषी बनने और वोट बैंक की राजनीति करने का दौर खत्म हो जाएगा। किसान आंदोलन की असली वजह यही है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)