राफेल विमान सौदे पर कांग्रेस पार्टी की गंभीरता व समझ इसी तथ्य से उजागर हो जाती है कि इनके अध्यक्ष ने खुद राफेल विमानों की कीमत भी अलग-अलग बताई है। दिल्ली में और कर्नाटक में यह कीमत 700 करोड़ रही, इसके बाद संसद के साथ ही पूरे देश को गुमराह करते हुए इसकी कीमत को घटाकर 520 करोड़ बताया गया, इसके बाद रायपुर में यह कीमत जाने कैसे 540 करोड़ हो गई, वहीं हैदराबाद में फिर से एक नई कीमत 526 करोड़ अवतरित हुई। इन सबसे एक ही बात जाहिर होती है कि राहुल गांधी झूठ बोल रहे हैं, क्योंकि सच का केवल एक रूप होता है जबकि झूठ और फरेब के भांति-भांति के चेहरे होते हैं।
बीते कुछ दिनों में कांग्रेस पार्टी और उनके नामदार अध्यक्ष राहुल गाँधी ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर पूरे देश को गुमराह करने का अभियान चला रखा है। अपनी अज्ञानता के कारण या यूँ कहें कि अपनी परिवारवादी सोच से ग्रसित कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्र की सुरक्षा को भी दरकिनार करते हुए सर्वप्रथम अपने निजी हितों को महत्ता दी है।
कांग्रेस पार्टी का इतिहास बोफोर्स व पनडुब्बी जैसे रक्षा घोटालों से जुड़ा रहा है जो स्पष्ट करता है कि इस दल ने हमेशा सेना की जरूरतों को नज़रअंदाज़ किया है और पहले अपना नफा- नुकसान देखा है। आज जब कांग्रेस पार्टी को पूरे देश ने नकार दिया है, तब वह झूठ फैलाकर वर्तमान सरकार की छवि खराब करने की नाकामयाब कोशिश कर रही है।
वर्तमान मोदी सरकार ने पूर्व की यूपीए सरकार की तुलना में डील की कीमत 9 फीसद कम तय की है। अगर इसके इतिहास पर जाएँ तो चीजें और भी साफ़ हो जाएंगी। ज्ञात हो कि वायुसेना को अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए कम से कम 42 लड़ाकू विमानों की आवश्यकता थी, लेकिन उसकी वास्तविक क्षमता घटकर 34 पर रह गयी। जिसके बाद वायुसेना की मांग पर 126 लड़ाकू विमान खरीदने का प्रस्ताव सबसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने रखा था, जिसके बाद 2007 में तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटोनी ने इसे आगे बढ़ाया। लेकिन संप्रग सरकार के ढुलमुल रवैये के कारण एक दशक तक यह सौदा अटका रहा।
कांग्रेस पार्टी जो मौजूदा सरकार पर तथ्यहीन आरोप लगा रही है, उसे अपने इतिहास को टटोलने की आवश्यकता है कि आखिर क्यों जब देश को लड़ाकू विमानों की जरूरत थी। बावजूद इसके राष्ट्र-सुरक्षा से इतर अपने हितों को तरजीह दी गई। जहाँ तक राफेल विमानों में पहले और वर्तमान डील की बात है तो वर्तमान एनडीए सरकार ने बेसिक एयरक्राफ्ट, भविष्य की आपूर्ति व उसके रख-रखाव के साथ यह सौदा कम कीमत के साथ सुनिश्चित किया है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने राफेल डील में प्राइवेट कंपनी के शामिल होने का भी झूठ फैलाया। जबकि इस समझौते में भारत और फ्रांस सरकार के अतिरिक्त कोई थर्ड पार्टी है ही नहीं।
राफेल विमान सौदे पर कांग्रेस पार्टी की गंभीरता व समझ इसी तथ्य से उजागर हो जाती है कि इनके अध्यक्ष ने खुद राफेल विमानों की कीमत भी अलग-अलग बताई है। दिल्ली में और कर्नाटक में यह कीमत 700 करोड़ रही, इसके बाद संसद के साथ ही पूरे देश को गुमराह करते हुए इसकी कीमत को घटाकर 520 करोड़ बताया गया, इसके बाद रायपुर में यह कीमत जाने कैसे 540 करोड़ हो गई, वहीं हैदराबाद में फिर से एक नई कीमत 526 करोड़ अवतरित हुई। इन सबसे एक ही बात जाहिर होती है कि राहुल गांधी झूठ बोल रहे हैं, क्योंकि सच का केवल एक रूप होता है जबकि झूठ और फरेब के भांति-भांति के चेहरे होते हैं। राफेल पर राहुल गांधी के झूठों की पोल खुलती जा रही है।
ज्ञात हो कि यूपीए शासनकाल में लटकने व भटकने की जो भ्रष्ट शैली कामकाज में विद्यमान थी। वह अब पूरी तरह से बदल चुकी है अब सरकार द्वारा किसी भी काम को तय समयसीमा में पूर्ण करने पर जोर दिया जाता है। 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राफेल विमानों के सौदे को लेकर जो भी भ्रांतियां थीं, उसको सरकार ने दूर करते हुए राफेल समझौते को मंजूरी दी और अब यह सौदा अपनी परिणामकारी परिणति की ओर तेजी से बढ़ रहा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)