ये तथ्य बताते हैं कि एनडीटीवी कौन-सी ‘निष्पक्ष’ पत्रकारिता करता है!

अब जो मीडिया संस्थान निष्पक्षता के साथ मोदी सरकार के हर निर्णय का विश्लेषण करते हैं और अंधविरोध में नहीं लगे रहते, वे रवीश कुमार की नज़र में ‘गोदी मीडिया’ हो जाते हैं। दरअसल उनकी नज़र में निष्पक्ष पत्रकार वही हो सकता है, जो आँख मूंदकर सरकार की निंदा (आलोचना नहीं) करता रहे। रवीश जुमलों व नाटकों के जरिये मूल मुद्दे से ध्यान भटकाने की कला में माहिर हैं। कभी स्क्रीन काली करके, तो कभी ‘माइम नौटंकी’ दिखाकर तो कभी भावुक भाषण देकर वे मुख्य मुद्दे से ध्यान भटकाते रहे हैं। इस मामले में भी ‘गोदी मीडिया’ का जुमला उछाल उन्होंने ऐसी ही मुद्दांतरण की एक कोशिश की है।

एनडीटीवी के सर्वेसर्वा प्रणव रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय पर एक पुराने मामले में सीबीआई की छापेमारी को जिस तरह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संकट के रूप में कुप्रचारित किया जा रहा है, वो अपने आप में बेहद विचित्र है। ऐसा लग रहा जैसे कि पहली बार किसी व्यक्ति पर छापेमारी हुई है। ऐसा करने में सबसे आगे खुद ये चैनल और इसके स्वनामधन्य एंकर रवीश कुमार हैं। सवाल उठता है कि किसी चैनल के मालिक पर हुई छापेमारी से पूरी मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संकट कैसे आ गया ?

बहरहाल, इस छापेमारी के बाद रवीश कुमार फेसबुक पर एक पोस्ट के साथ प्रकट हुए, जिसका मज़मून यह था कि देश की पूरी मीडिया बिरादरी सरकार की गोद (गोदी मीडिया) में बैठ गयी है और केवल एक उनका चैनल है जो सरकार के खिलाफ खड़ा है; इसलिए सरकार सीबीआई, आयकर विभाग जैसी अपनी संस्थाओं के माध्यम से चैनल को डराने की कोशिश कर रही है। रात के अपने प्राइम टाइम कार्यक्रम में भी रवीश इसी तरह की कुछ भावुक भाषणबाजी करते नज़र आए।

सवाल यह है कि रवीश आखिर किस आधार पर देश की पूरी मीडिया को सरकार की गोद में बैठी और खुद को एकदम निडर व निष्पक्ष बता रहे हैं? ऐसा कहने का अधिकार उन्हें किसने दिया? अगर उन्हें अपने चैनल मालिक की पैरवी का इतना ही शौक था, तो उनको पाक साफ़ साबित करने वाले कुछ तथ्यों के साथ सामने आते बजाय कि इन भावुक और निराधार दलीलों के। मगर, तथ्यों पर तो शायद उन्हें बात करनी ही नहीं थी, क्योंकि यहाँ उनकी दलीलें कमजोर पड़ने की पूरी संभावना थी। इसलिए भावुक प्रलाप करके चले गए, जिसे उनके कुछ समर्थकों ने सोशल मीडिया पर लपक भी लिया है।

बहरहाल, इसी संदर्भ में अगर एनडीटीवी की निष्पक्ष पत्रकारिता पर एक दृष्टि डालें तो उसकी पत्रकारिता सत्ता-विरोधी कम, दल-विशेष की विरोधी अधिक प्रतीत होती है। गौरतलब है कि कांग्रेस सत्ता में थी, तब एनडीटीवी का सत्ता-विरोध ऐसा था कि इनके एक वरिष्ठ पत्रकार तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार बन गए थे।

रवीश कुमार के बड़े भाई बिहार में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हैं और फिलहाल वे बलात्कार मामले में फरार चल रहे हैं। कांग्रेस नेताओं व राज्य सरकारों एवं आप सरकार की किसी गड़बड़ी पर रवीश या एनडीटीवी कभी मुखर ढंग से विरोध करते नज़र नहीं आते। इन तथ्यों के आईने में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि एनडीटीवी और रवीश कुमार की सत्ता-विरोधी निष्पक्ष पत्रकारिता किस किस्म की है।

भाजपा हमेशा से एनडीटीवी और रवीश कुमार के निशाने पर रहती है; जबकि कांग्रेस के प्रति उनके प्रेम की कहानी उपर्युक्त बातों से स्पष्ट हो जाती है। स्पष्ट है कि एनडीटीवी भाजपा विरोध के एजेंडे की पत्रकारिता करती है। पिछले दिनों भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने एनडीटीवी पर बहस के दौरान किसी संदर्भ में यही बात कह दी थी, तो उन्हें इस चैनल ने अपने अनोखे लोकतान्त्रिक आचरण का परिचय देते हुए बहस से बाहर कर दिया था।

अब जो मीडिया संस्थान निष्पक्षता के साथ सरकार के हर निर्णय का विश्लेषण करते हैं और केवल अंधविरोध में नहीं लगे रहते, वे रवीश कुमार की नज़र में ‘गोदी मीडिया’ हो जाते हैं। उनकी नज़र में निष्पक्ष पत्रकार वही हो सकता है, जो आँख मूंदकर सरकार की निंदा (आलोचना नहीं) करता रहे। दरअसल रवीश जुमलों व नाटकों के जरिये मूल मुद्दे से ध्यान भटकाने की कला में माहिर हैं। कभी स्क्रीन काली करके, तो कभी ‘माइम नौटंकी’ दिखाकर तो कभी भावुक भाषण देकर वे मूल मुद्दे से ध्यान भटकाते रहे हैं। इस मामले में भी ‘गोदी मीडिया’ का जुमला उछाल उन्होंने ऐसी ही मुद्दांतरण की एक कोशिश की है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)