जरूरी नहीं कि हमेशा सारे युद्ध हथियारों से ही लड़े जाएं, कुछ युद्ध दिमागी भी होते हैं। मोदी सरकार ने एप बैन से चीन के खिलाफ दिमागी जंग में बढ़त बना ली है। यह एकतरफा दंभ या आत्म प्रवंचना कतई नहीं है। इस असर की तस्दीक स्वयं चीन की सरकार व मीडिया की प्रतिक्रिया से होती है। खिन्न स्वर में चीन एवं स्थानीय मीडिया ने दबी जुबान में यह स्वीकार किया कि इससे उन्हें नुकसान होगा।
चीन से तनातनी के बीच केंद्र सरकार ने 59 चाइनीज मोबाइल एपों को प्रतिबंधित कर दिया है। इन एपों में टिक टॉक, यूसी, वी चैट, हेलो जैसे कई लोकप्रिय एप थे जिनके फॉलोअर्स की संख्या भारत में लाखों में थी। सरकार ने इन एपों को ब्लॉक करने के फैसले के पीछे जो आधार लिया है, वह गौर करने योग्य है।
चीन के इन एपों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को जासूसी की आशंका थी। ये सारे एप देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा भी थे। इन कारणों को मापदंड बनाकर इन्हें प्रतिबंधित किया गया। इन्हें लेकर सरकार को लंबे समय से शिकायतें प्राप्त हो रही थीं।
गृह मंत्रालय ने भी इन पर कार्यवाही की सिफारिश की थी। इन ऐप से भारतीय यूजर्स का डेटा भी चोरी हो रहा था और मोबाइल पर मस्ती का मंत्र जपते देश के युवा को इसका भान भी नहीं था। आखिर सरकार ने बड़ा कदम उठाया और एक ही बार में 59 माध्यमों से भंग हो रही देश की सुरक्षा को बचाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
निश्चित ही एप बैन करने को इसी विषय से सीधे जोड़कर देखा जा रहा है और चीन के खिलाफ लड़ाई में भारत की यह बड़ी अर्थपूर्ण जीत है।
गलवान घाटी की हिंसा के बाद से ही सभी के मन में चीन के खिलाफ प्रतिरोध की इच्छा बलवती हो रही थी। सरकार से किसी बड़े एवं सार्थक निर्णय की सभी को अपेक्षा थी। जरूरी नहीं कि हमेशा सारे युद्ध हथियारों से ही लड़े जाएं, कुछ युद्ध दिमागी भी होते हैं।
मोदी सरकार ने एप बैन से चीन के खिलाफ दिमागी जंग में बढ़त बना ली है। यह एकतरफा दंभ या आत्म प्रवंचना कतई नहीं है। इस असर की तस्दीक स्वयं चीन की सरकार व मीडिया की प्रतिक्रिया से होती है। खिन्न स्वर में चीन एवं स्थानीय मीडिया ने दबी जुबान में यह स्वीकार किया कि इससे उन्हें नुकसान होगा।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा कि भारत द्वारा 59 चाइनीज ऐप बैन किए जाने के बाद चीन बेहद चिंतित है। अब रही बात उन सभी टिक टॉक यूजर्स, सेलिब्रिटी की जिनका पूरा दिन हायतौबा मचाने, दुहाई देने, रोने और सरकार को कोसने में बीत गया। लेकिन उनके इस व्यर्थ विलाप का अपने आप में अब कोई अर्थ नहीं है।
इसमें कोई शक नहीं कि देश की एक बड़ी आबादी इन ऐप्स में पूरी तरह रच-बस गई थी। इसका नशा दिनचर्या, करियर सब पर हावी हो रहा था। इस सस्ते मनोरंजन की खुमारी से पतली गली निकालकर कुछ संजीदा साजिशें भी आकार ले चुकी थीं, यह बात सरकार के संज्ञान में आई और बिना देर किए समुचित निर्णय ले लिया गया।
देश का एक बड़ा वर्ग इस कदम से अत्यंत संतुष्ट एवं प्रसन्न है। सरकार के इस फैसले से भारत तो ठीक, अन्य देशों को भी यह स्पष्ट संदेश मिला है, प्रेरणा मिली है कि चीन की उत्तरोत्तर विकसित होती तकनीक से लहालोट होने की नहीं, बल्कि सतर्क होने की जरूरत है।
हो सकता है कि अब जल्द ही कोई अन्य देश भी ऐसा कुछ फैसला करता दिखाई दे। 59 एप प्रतिबंधित करने से चीन को भारत की ताकत का अंदाजा तो हो ही गया होगा। लेकिन हमें यह सोचना होगा कि आखिर तकनीक के मामले में चीन पर इतनी निर्भरता क्यों है। अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर एवं स्वदेशी अभियान को धरातल पर फैलाया जाए।
लोकल के लिए वोकल होना महज जुमला नहीं होना चाहिये, इसे व्यवहारिक धरातल पर एक परिदृश्य के रूप में उभरकर आना चाहिये। देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। युग भी तकनीक प्रधान है। सो अब युवाओं को तकनीक में क्षेत्र में झंडे गाड़ना चाहिये।
देश का युवा अपनी तमाम काबिलियत देश के हितार्थ ही प्रकट करे तो श्रेयस्कर होगा। इन एपों के विकल्प ऐप्स को प्रमोट करके यूजर बेस तैयार करना और उससे देश की अर्थव्यवस्था को सुधारना ही इस निर्णय का देशहित में पूरा लाभ हो सकता है। सरकार ने अपना दायित्व निभाया है, अब नागरिकों की बारी है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)