पार्टी के अंदर भी बीजेपी ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाए हैं। उत्तर प्रदेश में कमल सहेली क्लब, हिमांचल में मनस्वी कार्यक्रम, हरियाणा में पोषण अभियान, उत्तराखंड में कन्या पूजन जैसे अभियान ने पार्टी के अंदर भी महिला नेतृत्वकर्ताओं की एक नई पीढ़ी को तैयार किया है।
उत्तर प्रदेश में बीजेपी जब सभी किंतु-परन्तु को किनारे करके पुनः विधानसभा चुनाव जीत कर सत्ता में आती है, उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि हमारा सौभाग्य है कि जहां-जहां बहनों, माताएं और बेटियों ने पुरुषों के मुकाबले के ज्यादा वोट किए, वहां बीजेपी को प्रचंड जीत मिली है। उसके बाद लगभग सारे राजनीतिक विश्लेषक इस मत को समर्थन देते हैं कि भाजपा की अधिकतर चुनावी विजय में महिलाएं ही सारथी बनी हैं।
लेकिन आखिर ऐसा क्या हो गया कि लगभग एक दशक पूर्व तक पति और पिता से पूछ कर वोट देने वाली आधी आबादी अब एक स्वतंत्र वोट बैंक के तौर पर उभर आई है। हम जब 2019 यानी सत्रहवीं लोकसभा में महिला सांसदों की पिछले 70 सालों में सबसे अधिक भागीदारी का तथ्य प्रस्तुत करते हैं तो इसके पीछे के कारणों का विश्लेषण करना जरुरी है। मोदी सरकार में यदि महिलाएं विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री जैसे बड़े पदों पर आसीन हुईं तो इसके पीछे कौन सी सोच थी, इसके कारणों को जानना आवश्यक है।
वास्तविकता यही है कि पिछले 8 वर्षों के दौरान बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, फ्री सिलाई मशीन योजना, समर्थ योजना, सुरक्षित मातृत्व आश्वासन और सुमन योजना जैसी अनेक योजनाओं द्वारा मोदी सरकार ने न केवल महिलाओं को सामाजिक शक्ति प्रदान की बल्कि अनेक सम्मानों के अंतर्गत महिलाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करके उन्हें परिवार में भी नेतृत्व प्रदान किया।
देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में भी हम बीते वर्षों में महिलाओं की बढ़ती हुई भागीदारी को देख सकते हैं। उदाहरणस्वरुप 2021 में, 119 में से 29 महिलाएं और 2022 में 128 में से 34 महिलाएं पद्म पुरस्कारों से सम्मानित की गई जो आजादी के बाद से अब तक महिलाओं की इस पुरस्कार में सबसे अधिक भागीदारी की संख्या है।
पार्टी के अंदर भी बीजेपी ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए अनेक कार्यक्रमों को चलाया है। उत्तर प्रदेश में कमल सहेली क्लब, हिमांचल में मनस्वी कार्यक्रम, हरियाणा में पोषण अभियान, उत्तराखंड में कन्या पूजन जैसे अभियान ने पार्टी के अंदर भी महिला नेतृत्वकर्ताओं की एक नई पीढ़ी को तैयार किया है।
इस बार भारतीय जनता पार्टी का महिला मोर्चा एक ऐसे देशव्यापी अभियान के साथ आगे आया है जो निश्चित तौर पर सभी राजनीतिक दलों में महिलाओं की भूमिका को बदल देने वाला सिद्ध हो सकता है। भाजपा के इस अभियान का उद्देश्य है कि विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों से संपर्क किया जाए। इस संवाद और सम्पर्क को नए जमाने से कनेक्ट करते हुए पार्टी ने एक साल में लाभार्थियों के साथ एक करोड़ सेल्फी लेने का लक्ष्य रखा है। कार्यक्रम की व्यापकता का अनुमान आप इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि कार्यक्रम देश के सभी जिलों में शुरू किया जाएगा।
पार्टी की महिला शाखा की सदस्यों ने सेल्फी विद बेनिफिशियरी के अपने अभियान में देश के हर जिले में पहुँचने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस दौरान वो महिला मतदाताओं से संपर्क करेंगी और उन्हें आवास से लेकर रसोई गैस, शौचालय और बैंक खाते खोलने तक विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभों के बारे में बताएंगी। इस अभियान का एक प्रमुख चरण स्वर्गीय सुषमा स्वराज के नाम पर एक पुरस्कार प्रदान करना भी है। इस पुरस्कार के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली 10 महिलाओं को हर जिले में सम्मानित किया जाएगा।
देखने में ये भले ही किसी राजनीतिक दल के एक अभियान जैसा लगे, लेकिन चुनावों को परखने वाले सेफॉलोजिस्ट मानते हैं कि महिलाओं का इतनी बड़ी संख्या में घर से निकलकर संवाद और समन्वय के इस कार्यक्रम को करना भारतीय राजनीति में महिलाओं की भूमिका बदलने वाला सिद्ध होगा। महिला वोट बैंक घोषित होने से लेकर अब महिला सम्मान सेविंग सर्टिफिकेट पाने तक की ये यात्रा पूरे भारतीय परिवेश के लिए बदलाव की एक कहानी है।
अब महिलाएं नारों में इस्तेमाल होने मात्र के लिए नहीं हैं। महिलाएं दिख रही हैं, महिलाएं लड़ रही हैं, महिलाएं जीत रही हैं और महिलाएं दोनों भूमिकाओं को जी रही है – एक तरफ वो सरकार में रहकर लाभ को देने वाली स्थिति में है तो दूसरी तरफ किसी सीमावर्ती गाँव के आखिरी हिस्से में भी रहकर लाभ को पाने वाली स्थिति में भी हैं। वस्तुतः ये भारतीय राजनीति में महिला सशक्तिकरण का स्वर्णिम काल है।
(फीचर फोटो साभार : Aaj Tak)
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। राजनीति और संस्कृति सम्बन्धी विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)