देश की बेहतरी के लिये स्वास्थ, शिक्षा, रोजगार सृजन, आधारभूत संरचना का विकास, बिजली, पेयजल, दो वक्त की रोटी आदि की व्यवस्था करना बेहद जरूरी है, जिसे हकीकत में तब्दील करने के लिए मोदी सरकार लगातार ईमानदारी से प्रयास कर रही है, जिसकी पुष्टि विगत 3 सालों में मोदी सरकार के किसी मंत्री का भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होना करता है। इससे यह भी साबित होता है कि मोदी सरकार गत कांग्रेसी सरकारों की तरह स्वयं को लाभ पहुंचाने के लिये सत्ता में नहीं आई है।
भाजपा नीत मोदी सरकार के तीन सालों के शासन के बाद आज देश में जो राजनीतिक माहौल नज़र आ रहा उसका स्पष्ट संकेत यही है कि अगर फिर से आम चुनाव कराया जाये तो आसानी से भाजपा दोबारा सत्ता में आ जायेगी। ऐसे में इस सवाल का उठना लाजिमी है कि आखिर कौन से कारण हैं, जिनकी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पूरे देश में कायम है।
सत्ता में बने रहने के लिए सबसे जरूरी है कि आमजन की जरूरतों को समझकर कार्य किया जाये। हमारे संविधान में भारत को एक लोक-कल्याणकारी देश कहा गया है, क्योंकि यहाँ आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। वर्तमान में हमारे देश के अनेक लोग बुनियादी सुविधाओं मसलन,स्वास्थ्य, बिजली, शिक्षा, पानी, मकान आदि की दिक्कतों से जूझ रहे हैं।
देश की बेहतरी के लिये स्वास्थ, शिक्षा, रोजगार सृजन, आधारभूत संरचना का विकास, बिजली, पेयजल, दो वक्त की रोटी आदि की व्यवस्था करना बेहद जरूरी है, जिसे हकीकत में तब्दील करने के लिए मोदी सरकार लगातार ईमानदारी से प्रयास कर रही है, जिसकी पुष्टि विगत 3 सालों में मोदी सरकार के किसी मंत्री का भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होना करता है। इससे यह भी साबित होता है कि मोदी सरकार गत कांग्रेसी सरकारों की तरह स्वयं को लाभ पहुंचाने के लिये सत्ता में नहीं आई है।
भ्रष्टाचार से लड़ाई लड़ना भाजपा के वर्ष 2014 के चुनावी एजेंडे में भी शामिल था। इसलिये वह इस मुद्दे पर कुछ ज्यादा ही सख्त है। इसी क्रम में भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा की।
भारतीय जनता पार्टी बहुत पुरानी पार्टी नहीं है। जनसंघ से शुरू हुई इस पार्टी को भारतीय जनता पार्टी बनने के बाद वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में महज दो लोकसभा सीटों से संतोष करना पड़ा था। हाँ, वर्ष 1992 के बाद से राज्य चुनावों में इसके प्रदर्शन में सुधार होने लगा। वर्ष 1996 में यह संसद में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, पर इसकी सरकार केवल 13 दिनों तक ही चल सकी, लेकिन वर्ष 1998 में भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का गठन हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई में सरकार बनी, जो एक साल तक सत्ता में काबिज रही। बाद के आम चुनाव में राजग को पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग पूरे समय तक सत्ता में बनी रही।
इसके साथ ही राजग पूर्ण कार्यकाल तक शासन करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। वर्ष 2004 और 2009 के आम चुनावों में राजग को फिर से हार का सामना करना पड़ा, पर वर्ष 2014 के आम चुनाव में भाजपा नीत राजग ने जबर्दस्त जीत हासिल की और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने। इसके बाद से भाजपा मुसलसल आगे बढ़ रही है। अब भाजपा राज्यों पर भी धीरे-धीरे कब्जा कर रही है। उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, गोवा आदि राज्यों में हाल ही में भाजपा ने अपनी सरकार बनाई है। इतना ही नहीं वह पंचायत और निगम चुनावों में भी जीत हासिल कर रही है।
सच कहा जाये तो भाजपा की जीत का कारण विपक्षी पार्टियों का लगातार कमजोर होना है। कांग्रेस पार्टी का एक गौरवशाली राजनीतिक इतिहास रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह नेतृत्व के संकट से गुजर रही है। इंदिरा गांधी के मरने के बाद से ही कांग्रेस पार्टी नेतृत्व के संकट से गुजर रही है। राजीव गाँधी के सत्ता में आने का कारण सहनभूति की लहर थी। उसके बाद भले ही पामुलापति वेंकट नरसिंह राव और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चली, लेकिन उसकी स्थिति कभी भी बहुत मजबूती नहीं रही।
मौजूदा समय में कांग्रेस पार्टी अपने अस्तित्व को बचाने के लिये संघर्ष कर रही है। क्षेत्रीय दलों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। दिल्ली में आप, उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी, बसपा, बिहार में राजद, जदयू, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, ओडिसा में बीजू जनता दल आदि सभी पार्टियां अंतर्कलह से जूझ रही हैं। इन पार्टियों की ऐसी स्थिति नहीं है कि वे भाजपा से मुक़ाबला कर सकें, क्योंकि भाजपा विकास की राजनीति कर रही है, जबकि क्षेत्रीय दल सिर्फ अपने स्वार्थ की रोटी सेंकने में लगे हैं।
बिहार में लालू प्रसाद, उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह यादव का कुनबा और मायावती सभी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं। ऐसे में ठोस रणनीति के अभाव में क्षेत्रीय दलें फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री लैपटॉप, सब्सिडी जैसे लोक-लुभावने वादों के सहारे चुनाव की वैतरणी पार करना चाहते हैं।
मौजूदा समय में राजनीति की परिभाषा बदल गई है। पूर्व में दूसरों के हित के लिए राजनीति की जाती थी और अब खुद के फायदे के लिए। इस आधार पर अवसरों को अपने हक में बदलने की कला को आज राजनीति कहा जा रहा है। दल बदलना, अपने हित के लिये समय-समय पर धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित करना, जाति की राजनीति करना आदि मूल्यहीन राजनीति का मूल स्वभाव है, और आज यही संकल्पना विपक्षी दलों की राजनीति का सिरमौर बनी हुई है।
लेकिन, भाजपा इस ओछी राजनीति से दूर है। विकासपरक राजनीति उसका मूल स्वभाव है। वह कार्यकर्ताओं की मदद से योजनाबद्ध तरीके से विकास से जुड़े कार्यों को अंजाम दे रही है। भाजपा की इस रणनीति का काट फिलहाल विपक्षी दलों के पास नहीं है। लोकलुभावन नीतियों के कारण ही उत्तरप्रदेश में समाजवादी, दिल्ली एवं पंजाब में आप एवं केंद्र व कुछ राज्यों में कांग्रेस पार्टी का पतन हुआ है।
बिहार में महागठबंधन की हालात डावांडोल है। ओडिशा में भी बीजू जनता दल की हालत पतली ही है। ऐसे में कहा जा सकता है कि 2019 एवं 2024 में भाजपा का फिर से सत्ता में आना निश्चित है। इतना ही नहीं, संकेत यह भी हैं कि आगे होने वाले लगभग सभी राज्यों में भी भाजपा अपने जीत का परचम लहराने में सफल रहेगी।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। स्तंभकार हैं। ये विचार उनके निजी हैं।)