इन तीन वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा उठाए गए छोटे-बड़े तमाम क़दमों का लक्ष्य अंततः भारत को विश्व का सिरमौर बनाना, इक्कीसवीं सदी को भारत की सदी बना कर देश को फिर से विश्व गुरु के आसन पर विराजमान कराना और माँ भारती के पुरा-वैभव की पुनर्स्थापना करना है। और ऐसा करते हुए मन में लेशमात्र भी अभिमान को जगह नहीं देते हुए, यथासंभव सर्वानुमति से सरकार चलाते हुए प्रधानमंत्री मोदी एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। लोकतंत्र निश्चय ही संख्याबल का खेल है। संख्या में अन्य दलों से मीलों आगे रहते हुए भी समूची विनम्रता के साथ काम करते जाना भाजपा सरकारों की हमेशा खासियत रही है। जैसा कि हाल के एक उद्बोधन में नरेंद्र मोदी ने कहा भी कि उन्हें ‘संख्याबल पर नहीं बल्कि सामूहिकता के बल पर चलना है।’
आज से तीन वर्ष पहले 16 मई, 2014 का दृश्य मानस पटल पर किसी चलचित्र की भांति रंग बिखेर रहा है। लग रहा मानो परसों की ही बात हो। सारा भारत झूम रहा था, अच्छे दिन की सुगबुगाहट के साथ। हर भारतीय की आंखों में आशाओं-आकांक्षाओं-अभिलाषाओं-उम्मीदों-अपेक्षाओं-विश्वासों-भरोसों का समुद्र-सा उछालें मार रहा था। हर व्यक्ति आने वाले कल के सपनों के साथ टीवी चैनलों से चिपका भाजपा के ग्राफ को लगातार बढ़ता देख रहा था। देखते ही देखते भाजपा नीत सांसदों के आंकड़े तीन सौ से ऊपर पहुंच चुके थे। तीस वर्ष के बाद किसी भी दल को देश में स्पष्ट बहुमत मिला था, आज़ादी के बाद पहली बार किसी गैर कांग्रेस दल ने बहुमत के आंकड़े को पार किया था, पहली बार भाजपा अभूतपूर्व जनादेश के साथ सत्ता में आ रही थी।
डॉ. मुखर्जी का बलिदान, पंडित दीनदयाल उपाध्याय का तप सुफल को प्राप्त हो रहा था; अंधेरा छंटने-कमल खिलने की अटल बिहारी वाजपेयी की भविष्यवाणी फिर सच हो रही थी; और लाल कृष्ण आडवाणी की यात्रा अपनी मंजिल तक पहुँच रही थी। तब के भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह भाजपा के सफलतम अध्यक्षों में अपना नाम दर्ज करा चुके थे। भाजपा के कार्यालयों में तो खैर दिन में ही दीवाली मनने लगी थी और असमय ही होली के रंग-गुलाल उड़ने शुरू हुए थे, लड्डूओं और मिठाइयों के साथ।
शाम से पहले ही सारा देश विजय के उल्लास में डूब चुका था, लेकिन अपने मनीषियों के विचार श्रृंखला के अनुरूप भाजपा विजय को विश्राम नहीं समझते हुए जुट गयी थी समर्थन को साफल्य तक पहुचाने के यज्ञ में प्रस्तुत कर चुकी थी खुद को, समिधा के तौर पर। अगले हफ्ते में ही गुजरात के दशक भर से अधिक समय से यशस्वी मुख्यमंत्री रहे, भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेकर ‘विकास यात्रा’ पर निकल पड़ना था।
देखते ही देखते तीन साल गुजर गए। आज इस मौके पर अगर आप पीछे मुड़ कर देखेंगे तो लगेगा कि सच में भाजपा ने जो वादे जनता से किये थे, उन्हें पूरा करने की तरफ द्रुत गति से नरेंद्र मोदी की सरकार आगे बढ़ रही है। हर दिन दुनी-रात चौगुनी रफ़्तार से काम करते हुए, लगातार तेज़ी से फैसले लेते हुए देश का चेहरा बदलने के महा-अभियान में, हर पेट को रोटी, हर छात्र को शिक्षा, हर मरीज़ को स्वास्थ्य, हर किसान को समृद्धि, माताओं-बहनों को सम्मान, हर युवा को काम, हर बाहरी-भीतरी दुश्मनों के अंजाम और हर भ्रष्टाचारी-अपराधियों का काम तमाम करने की जुगत में भी जी जान से जुटी हुई है अपनी सरकार।
नरेंद्र मोदी और अमित शाह को अपने इन कार्यों का प्रतिसाद भी जनता दोनों हाथों से दे रही है। न भूतो-न भविष्यति, आज़ादी के बाद अस्तित्व में आये किसी भी दल को ऐसा समर्थन मिलता हुआ देश ने कभी नहीं देखा है। नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण के बाद हुए पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक के लगभग सभी चुनावों में भाजपा को इकतरफा विजय मिली है।
असम, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, मणिपुर और गोवा में पार्टी की सरकार बन चुकी है। भाजपा के विधायकों की संख्या में जहां तीन सौ से ज्यादा का इजाफा हुआ, वहीं हज़ारों की संख्या में ग्राम पंचायत से लेकर निगम आदि के प्रतिनिधि चुन कर आये हैं। मुंबई-दिल्ली समेत तमाम स्थानीय निकायों में भी भाजपा का शासन आया है। उड़ीसा के पंचायत चुनाव में तो भाजपा की सीटें दस गुना बढ़ चुकी है।
यह तमाम समर्थन, ये सभी उपलब्धियां केंद्र सरकार के कामों पर जनता की मुहर ही हैं। नोटबंदी कर मोदी सरकार ने गरीबों के हित में और काला धन वालों के खिलाफ सबसे बड़ा कदम उठाया, इसे उचित ही देश में आर्थिक सुधारों के मामले में सबसे बड़ा कदम बताया गया था। वहीं सर्जिकल स्ट्राइक से देश भर में सुरक्षा के प्रति एक आश्वस्ति पैदा हुई थी। इस कदम से दुनिया भर में भारत की छवि एक मज़बूत राष्ट्र के रूप में उभरी है। मुस्लिम महिलाओं के हित में ट्रिपल तलाक पर सरकार का रुख, समान नागरिक संहिता की तरफ उठे कदम, लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के चुनाव सुधार अभियान जिसमें सरकार एक सर्वानुमति बनाने की तरफ अग्रसर है।
मुद्रा योजना के द्वारा करोड़ से अधिक लोगों को स्वरोजगार के लिए मदद देना और प्रेरित करना, 20 लाख से ज्यादा लोगों को कौशल विकास का प्रशिक्षण देकर काम में लगाना, आधार कार्ड से अभी तक 111 करोड़ लोगों को जोड़ना, करोड़ों जनधन खाते, स्वच्छ भारत अभियान के द्वारा एक लाख बहत्तर हज़ार चार सौ से अधिक गांव और 515 शहरों को भी खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित करना, बड़ी संख्या में अप्रवासियों के विदेश के मुश्किल हालातों से निकालना जिनमें अकेले यमन से सात हज़ार लोगों को बाहर निकालना शामिल है। इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 175 देशों के समर्थन से ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ को मान्यता मिलने से देश का गौरव निस्संदेह बढ़ा है।
सरकारी अनुदानों के लिए डाइरेक्ट ट्रांसफर स्कीम, उज्ज्वला योजना के द्वारा माताओं को मुफ्त गैस कनेक्शन उपलब्ध करा कर 54 प्रतिशत से बढ़ाकर 72 प्रतिशत लोगों तक गैस कनेक्शन पहुचाना, एक करोड़ बीस लाख लोगों द्वारा गैस सब्सिडी छोड़ना, करीब 15 हज़ार गावों का बिजलीकरण, बजट एक महीने पहले पेश कर विकास कार्यों के लिए ज्यादा समय उपलब्ध कराना, रेल बजट ख़त्म कर दस हज़ार करोड़ रुपया बचाना आदि भी उल्लेखनीय कदम हैं।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में 65 हज़ार किलोमीटर से अधिक की सड़क अब 130 किलोमीटर प्रतिदिन की रफ़्तार से बनाना, 33 हज़ार करोड़ से अधिक की अघोषित आय सामने लाना, महंगाई दर तीन प्रतिशत से कम तक पहुँचाना, जीडीपी 7 प्रतिशत तक लाना, विदेशी मुद्रा भण्डार को 24 लाख करोड़ डॉलर तक पहुँचाना और इन तमाम कार्यों से अन्य फायदों के अलावा देश के प्रति व्यक्ति आय को इन तीन वर्षों में 74 हज़ार प्रति वर्ष से बढ़ा कर एक लाख से ज्यादा कर देना केंद्र की भाजपा नीत सरकार के विकास कार्यों की एक झलक देता है।
ये तमाम बड़े माने जाने वाले छोटे-छोटे कदम हैं, जिनका लक्ष्य अंततः भारत को विश्व का सिरमौर बनाना, इक्कीसवीं सदी को भारत की सदी बना कर देश को फिर से विश्व गुरु के आसन पर विराजमान कराना और माँ भारती के पुरा-वैभव की पुनर्स्थापना करना है। और ऐसा करते हुए मन में लेशमात्र भी अभिमान को जगह नहीं देते हुए, यथासंभव सर्वानुमति से सरकार चलाते हुए प्रधानमंत्री मोदी एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। लोकतंत्र निश्चय ही संख्याबल का खेल है। संख्या में अन्य दलों से मीलों आगे रहते हुए भी समूची विनम्रता के साथ काम करते जाना भाजपा सरकारों की हमेशा खासियत रही है। जैसा कि हाल के एक उद्बोधन में नरेंद्र मोदी ने कहा भी कि उन्हें ‘संख्याबल पर नहीं बल्कि सामूहिकता के बल पर चलना है।’
निश्चय ही देश के जीवन में तीन वर्ष कोई ख़ास मायने नहीं रखते। साथ ही, निर्माण हमेशा समय लेता है, जबकि ध्वंस पल में होना संभव है। ऐसे में सत्तर सालों की विसंगतियों को ख़त्म करना इतनी जल्दी संभव तो नहीं है। फिर भी, सरकार के ऊपर वर्णित क़दमों से राष्ट्र अपने निर्माण की दिशा में आगे तो बढ़ ही रहा है। ये तीन साल सृजन की इस यात्रा के मील के महत्वपूर्ण पत्थर तो माने ही जायेंगे हमेशा।
(यह लेख छतीसगढ़ भाजपा के मुखपत्र ‘दीपकमल’ का सम्पादकीय है।)