तीन तलाक इतनी आदिम और अन्यायपूर्ण व्यवस्था है, जिसमें महिला के आत्मसम्मान के लिए कोई जगह नहीं है। महिला ना अपना पक्ष रख सकती है ना ही खुद को बचाने का ही उसके पास कोई अवसर होता है। तीन तलाक के जितने भी मामले मीडिया के माध्यम से संज्ञान में आते हैं, उन सबका केंद्रीय भाव एक जैसा ही होता है। दैनंदिनी जीवन की बहुत मामूली सी बातों पर पत्नी को तीन बार तलाक दे देने के किस्से मुस्लिम समुदाय में आम हैं।
मंगलवार का दिन देश की मुस्लिम महिलाओं के लिए अत्यंत मंगलकारी रहा। इस दिन तीन तलाक बिल पर मोदी सरकार को बड़ी सफलता मिली। लोकसभा के बाद अब यह बिल राज्यसभा से भी पारित हो गया है। अब यह कानून की शक्ल ले लेगा जिसके तहत तीन तलाक देने वाले पुरुष पर आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकेगा। इस अहम बिल को लेकर सरकार लंबे समय से मुस्लिम महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ रही थी। लोकसभा से दो बार पास होने के बाद भी यह बिल राज्यसभा में अटक जा रहा था। आश्चर्य की बात है कि खुद को मुस्लिमों का हितैषी कहने वाले कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल ही इसके पारित होने की राह में बाधा बने हुए थे। मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथी अलग इसका विरोध कर रहे थे।
साल 2017 में सायरा बानो केस पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। पांच जजों की बेंच ने 3-2 से फैसला सुनाते हुए सरकार से तीन तलाक पर 6 महीने के अंदर कानून लाने को कहा था। सरकार विधेयक लाई लेकिन विपक्षी विरोध के कारण दो बार लोकसभा से पास होकर यह राज्यसभा में अटक गया था। इसी बीच आम चुनाव आ गए तो सारी कवायद थम गई। नई सरकार बनने के बाद संसद में दोबारा यही क्रम शुरू हुआ और आखिरकार तमाम विरोधों के बीच सरकार को सफलता मिली। तीन तलाक अब संज्ञेय अपराध की श्रेणी में होगा।
मोदी सरकार शुरू से ही मुस्लिमों को पिछड़ेपन के दायरे से बाहर लाने के लिए प्रयासरत है। तीन तलाक जैसी कुप्रथाओं पर अंकुश लगाना इस क्रम में पहली प्राथमिकता थी। दो साल पहले सायरा बानो का केस अदालत तक पहुंचा तो यह विषय सुर्खियों में आया। जब इस पर बातें हो रही थीं, तभी एक के बाद एक मुस्लिम महिलाओं की हिम्मत खुलने लगी।
बारी-बारी से महिलाएं अपनी आपबीती सुनाने लगीं और बताने लगीं कि इस कुप्रथा के चलते किस प्रकार उनका जीवन तबाह हुआ। किसी मुद्दे का सामाजिक मंच पर प्रकट होना ही उसकी प्रमाणिकता का प्रतीक होता है, लेकिन यह बात विपक्षी दल शायद नहीं समझ पाए। केवल विरोध करने के लिए विरोध करने की उनकी नीति ने पीड़ितों को किसी भी बिंदु पर राहत नहीं प्रदान की।
इस भले काम में सरकार का कंधे से कंधा मिलाकर साथ देने की बजाय विपक्ष ने अपने बेतुके विरोध से इस कानून की राह में रोड़े ही अटकाए। विपक्ष ने इसे मुस्लिम परिवारों को तोड़ने वाला कानून बताया, लेकिन उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि जब कोई पुरुष मामूली सी बात पर पत्नी को तीन बार तलाक बोलकर छोड़ देता है तो इससे परिवार टूटता है या जुड़ता है।
जहां तक तीन तलाक की बात है, यह इतनी आदिम और अन्यायपूर्ण कुप्रथा है जिसमें महिला के आत्मसम्मान के लिए कोई जगह नहीं है। महिला ना अपना पक्ष रख सकती है ना ही खुद को बचाने का ही उसके पास कोई अवसर होता है। तीन तलाक के जितने भी मामले मीडिया के माध्यम से संज्ञान में आते हैं, उन सबका केंद्रीय भाव एक जैसा ही होता है। दैनंदिनी जीवन की बहुत मामूली सी बातों पर पत्नी को तीन बार तलाक दे देने के किस्से मुस्लिम समुदाय में आम हैं।
कभी सब्जी के लिए 30 रुपए मांगे तो तीन तलाक दे दिया, कभी खाना अच्छा नहीं लगा तो तीन तलाक दे दिया। कभी पैसे की मांग पूरी नहीं तो और कभी दैहिक शोषण से इंकार किया तो तलाक हो गया। तीन तलाक देने के तरीके तो और भी हास्यास्पद और अनर्गल हैं। कभी दरवाजे पर ही तीन बार तलाक बोल दिया गया तो कभी मोबाइल पर एसएमएस या व्हाट्सऐप पर संदेश भेजकर ही तलाक दे दिया। तलाक देने वाले कभी नहीं सोचते कि उनकी इस सनक के बाद पत्नी कहां जाएगी, किस हाल में रहेगी।
इस अमानवीय कुप्रथा का उन्मूलन तो बहुत पहले ही हो जाना चाहिये था। मगर अफसोस की बात है कि पिछली कांग्रेसी सरकारों ने वोट बैंक के लोभ में इस जरूरी मुद्दे को छूने की हिम्मत नहीं दिखाई। आखिर मोदी सरकार ने ही इसे संज्ञान में लिया और इसे खत्म करने का बीड़ा उठाया। यह हाल तब है जब कांग्रेस खुलेआम घोषित रूप से स्वयं को मुस्लिमों का हितैषी बताते नहीं थकती।
जब मोदी सरकार ने यह कदम उठाया तो समर्थन देना तो दूर, कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने अड़चनें पैदा कीं। सदन में यह तर्क दिया गया कि इस कानून के लागू होने के बाद मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ दुरुपयोग होने की आशंका है। लेकिन सरकार ने सटीक तर्क देते हुए इसे खारिज कर दिया कि तीन तलाक बिल केवल मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के मकसद से लाया गया है।
सांसद अससुद्दीन औवेसी ने लोकसभा में कुतर्क प्रस्तुत करते हुए कहा था कि इस्लाम में शादी को एक करार माना गया है और इसमें सात जन्म का रिश्ता नहीं होता। प्रश्न सात अथवा एक जन्म का नहीं है, प्रश्न केवल न्याय या अन्याय का है। यदि एक जन्म में भी नारी पर अत्याचार किया जा रहा है, तो वह पूरी तरह से अपराध है। और अपराध पर सरकार को संज्ञान लेना ही होगा।
स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार साक्षात्कारों में यह बात बोल चुके हैं कि तीन तलाक एक अमानवीय प्रथा है, जिससे नारी का सम्मान और न्याय जुड़ा है। मोदी ने यह भी कहा है कि इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं, बल्कि निष्पक्ष दृष्टि से देखे जाने की आवश्यक्ता है। इस्लामिक सहित दुनिया के करीब 20 अन्य देशों में तीन तलाक का वजूद नहीं है और यह गैर-कानूनी है, तो भारत में भला इसे क्यों ढोया जा रहा है?
तीन तलाक बिल राज्यसभा से पास होने के बाद देश के कई क्षेत्रों में मुस्लिम महिलाओं ने जमकर जश्न मनाया। मिठाई बांटी और सरकार के ऐतिहासिक कदम का तहेदिल से स्वागत किया। इस बिल पर कानून मंत्री ने रविशंकर प्रसाद ने बताया कि तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद से 24 जुलाई तक इस तरह के 345 मामले आ चुके हैं। उन्होंने पूछा कि क्या इन महिलाओं को सरकार ऐसे ही सड़क पर छोड़ दे।
गत 25 जुलाई को यह बिल लोकसभा में पास हुआ था। अब राज्यसभा से भी पास हो गया है। निश्चित ही यह प्रत्येक देशवासी के लिए गर्व का विषय है कि एक संवदेनशील मुद्दे को सरकार ने कितनी गंभीरता से संभाला और सकारात्मक परिणाम लाकर दिया। उम्मीद है कि तीन तलाक के बाद निकाह, हलाला जैसी कुप्रथाओं पर भी लगाम लग सकेगी और ये आदिम कुप्रथाएं भी जल्दी-ही समाप्त हो जाएंगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)