आज तक आतंकवाद का धर्म नहीं होता है, यह कहकर चीखने वाले लेफ्ट लिबरल पत्रकारों द्वारा कट्टा लहराने और फायर करने की घटना के तुरंत बाद हिन्दू आतंकवाद का नारा बुलंद करना बेहद शर्मनाक है। फिर उन्हें इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि देशभर में विरोध प्रदर्शन के नाम पर फैलाई जा रही हिंसा, बसों की आग के हवाले करने की घटना क्या है? उन्हें यह भी बताना चाहिए कि झारखंड के लोहरदगा में नागरिकता कानून के समर्थन में निकले गए जुलूस पर पथराव किया गया, जिससे नीरज प्रजापति नाम के युवक की मौत हो गई। क्या नीरज प्रजापति की हत्या करने वालों को यह गिरोह इस्लामी आतंकवादी कह सकता है?
देशभर में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों का अराजक स्वरूप जिस तरह सामने आया है, वह हैरान करने वाला है। ऐसा कानून जिससे देश के नागरिकों का कोई संबंध ना हो, उसपर इस तरह का वातवरण खड़ा करना, मानो एक खास समूह का सब कुछ लुट गया हो, हैरतअंगेज लगता है। समूचे देश ने देखा कि विरोध प्रदर्शन के नाम पर कैसे सुनियोजित हिंसा फैलाई गई, आगजनी की गई, बसों को आग के हवाले कर दिया गया, देश को तोड़ने की बात कही गई। यहाँ तक कि हिन्दू धर्म के विरोध में गैरवाजिब नारे उछाले गए।
यह सब मामला चल ही रहा था कि जेएनयू के छात्र शरजील इमाम का एक वीडियो सामने आया जिसमें वह असम और नार्थ ईस्ट को भारत से काटने की बात कर रहा था, वहीं गुरुवार को गोपाल नाम का एक सिरफिरा जामिया नगर इलाके में खुलेआम कट्टा लहराते हुए नजर आया। उसके फायरिंग से एक व्यक्ति घायल भी हो गया है।
हाल के कुछ दिनों में सामने आये इन दो मामलों ने वामपंथी पत्रकारों एवं बुद्धिजीवियों के पाखंड को बेनकाब कर दिया है। कैसे ये एक मामले पर ये चुप्पी साध लेते हैं अथवा उसके बचाव में बेतुका तर्क, झूठ प्रस्तुत करने लगते हैं और दूसरे मामले पर आसमान सिर पर उठा लेते हैं। इन दोनों मामलों को देखें तो स्पष्ट पता चलता है कि यह दोमुंहा गिरोह समाज के लिए कितना घातक है।
शरजील इमाम का देशद्रोही बयान
अभी कुछ दिनों पूर्व सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसें देखकर देश अवाक कर गया। इस वीडियो में शरजील इमाम यह कहता नजर आ रहा है कि ‘पांच लोख लोग हमारे पास ऑर्गनाइज हों तो हम हिंदुस्तान से नार्थ ईस्ट को परमानेंटली काट सकते हैं, परमानेंटली नहीं तो एकाध महीने के लिए तो काट ही सकते हैं, शरजील यहीं नहीं रुका उसनें आगे कहा कि असम को काटना हमारी जिम्मेदारी है, असम और भारत कट के अलग हो जाए तभी ये हमारी बात सुनेंगे।
शरजील इमाम का यह देश विरोधी भड़काऊ बयान नागरिकता कानून के विरोध में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिया गया। इस वीडियो में कही गई बातों से इनकी मानसिकता उजागर हो गई है। यह लोग इस कानून के विरोध की आड़ में देश को तोड़ने की साजिश रच रहे हैं। इस बात का भी खुलासा हो गया है कि इन प्रायोजित विरोध प्रदर्शनों की फंडिंग इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन पीएफआई द्वारा की जा रही है।
इस वीडियो के सामने आने के बाद कई प्रदेशों की पुलिस नें शरजील पर देशद्रोह की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया और उसकी तलाशी शुरू कर दी। पुलिस ने उसे बिहार के जहानाबाद से गिरफ्तार किया फ़िलहाल वह पुलिस रिमांड पर है। क्राइम ब्रांच द्वारा पूछताछ के दौरान जो बातें सामने निकल कर आ रहीं है वह वामपंथी बुद्धिजीवियों के झूठ का आवरण हटाने वाली हैं।
गौरतलब है कि जैसे ही यह वीडियो सामने आया एक तरफ जहाँ लोगों ने शरजील को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग की, तो दूसरी तरफ यह वामपंथी बौद्धिक कबीले ने पहले तो इस वीडियो को फर्जी ठहराने की कोशिश की लेकिन जब यह पता चला कि वीडियो के साथ छेड़छाड़ नहीं की गई है, तब वह इस तर्क पर उतर आए कि शरजील ने चक्का जाम करने की बात कही है।
वाम समर्थक मीडिया संस्थानों द्वारा बड़े-बड़े लेख लिखे जाने लगे, प्राइम टाइम पर यह बताया जाने लगा कि वह संविधान को मानने वाला है और जाट आन्दोलन से उसकी तुलना की जाने लगी। यह सब झूठ चल ही रहा था कि क्राइम ब्रांच की पूछताछ में शरजील के कबूलनामे ने मीडिया के एक कबीले के झूठ को बेनकाब कर दिया है।
शरजील ने यह स्वीकार किया है कि उसके वीडियो से कोई छेड़छाड़ नहीं गई है और उसने जोश में आकर देश तोड़ने की बातें कही। इस सब के अतिरिक्त उसके खतरनाक मंसूबों को इस बात से भी समझा जा सकता है कि वह भारत को इस्लामिक स्टेट के रूप में देखना चाहता है। वामपंथी कबीला यह बात भी बड़ी जोर-शोर से कहता रहता है कि शरजील का शाहीनबाग़ से कोई लेना देना नहीं हैं। वहीं कुछेक का मानना है कि वह वालेंटियर के तौर पर इस प्रदर्शन से जुड़ा हुआ है।
लेकिन पुलिस की जाँच में उनकी यह बात भी झूठी साबित हुई है। जांच में यह बात सामने आई है कि वह वहां भाषण देने के लिए बुलाया जाता है तथा वह पीएफआई के भी सम्पर्क में है। इस घटना पर वामपंथियों ने जैसा झूठ और देशद्रोह कृत्य का समर्थन किया, उससे उनकी मानसिकता को सहजता से समझा जा सकता है। शरजील के बयान ने बौद्धिकता का लबादा ओढ़ी इस गैंग के स्याह सच को देश के सामने रख दिया है।
जामिया मार्च के दौरान गोलीकांड
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में निकाले जा रहे पैदल मार्च के दौरान एक युवक अचानक कट्टा निकालता और लहराते हुए फायरिंग कर देता है। यह बेहद गंभीर और निंदनीय घटना है। उस लड़के की उम्र नाबालिग बताई जा रही है, लेकिन ऐसी घटनाओं पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए। गृहमंत्री ने इस घटना के जांच के आदेश दे दिए हैं।
लेकिन चूंकि, यह लड़का हिन्दू समुदाय से आता है, इसलिए बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रिया देखकर लगा कि जैसे भूखे गिद्ध को मांस मिल गया हो। वह पूरी तरह से इस घटना पर टूट पड़े। यहाँ तक कि वर्षों से चले आ रहे अपने हिन्दू आतंकवाद के फेक नैरेटिव को पुनर्जीवित कर लिया और सोशल मीडिया पर यह ट्रेंड चलने लगा।
इसी जमात के लोगों ने यह भी कहना शुरू कर दिया कि यह घटना अनुराग ठाकुर के भाषण के चलते हुई। उनके भाषण पर गौर करें तो उन्होंने ने कहा था – ‘देश के गद्दारों को’ तब जनता की तरफ से आवाज आई ‘गोली मारों…को’, तो क्या इस बयान को गोलीबारी के लिए आधार बनाने वाले लोग यह स्वीकार कर रहे हैं कि शाहीनबाग़ में बैठे अथवा बाकी जगह नागरिकता कानून का विरोध करने वाले गद्दार हैं?
दूसरी बात आज तक आतंकवाद का धर्म नहीं होता है, यह कहकर चीखने वाले लेफ्ट लिबरल पत्रकारों द्वारा कट्टा लहराने और फायर करने की घटना के तुरंत बाद हिन्दू आतंकवाद का नारा बुलंद करना बेहद शर्मनाक है। फिर उन्हें इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि देशभर में विरोध प्रदर्शन के नाम पर फैलाई जा रही हिंसा, बसों को आग के हवाले करने की घटना क्या है?
झारखंड के लोहरदगा में नागरिकता कानून के समर्थन में निकले गए जुलूस पर पथराव किया गया, जिससे नीरज प्रजापति नाम के युवक की मौत हो गई। क्या नीरज प्रजापति की हत्या करने वालों को यह गिरोह इस्लामी आतंकवादी कह सकता है? फिर दुनिया भर में फैले आतंकवाद को भी क्या वे इस्लामी आतंकवाद कह सकते हैं?
इन दोनों मामलों में जो तथ्य सामने निकलकर आये हैं, उससे स्पष्ट है कि वामपंथी गैंग अपने झूठ और अफवाह के बल पर देश का माहौल खराब करने की गहरी साजिश रच रहा है, किन्तु ये लोग हर बार असफल हो रहे हैं। जामिया नगर गोली काण्ड के वीडियो को देखकर सबसे पहले यही लगता है कि यह गोली काण्ड शरजील मामले से ध्यान भटकाने के लिए किया गया है। बहरहाल, शरजील मामलें में पुलिस की जांच से झूठ की दिवार जमींदोज हो गई है। हैरत नहीं होनी चाहिए, अगर जामिया नगर गोली कांड भी जाँच के दौरान प्रायोजित नजर आए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)