मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दो वर्षों का बड़ा हिस्सा कोरोना से जूझते हुए ही बीता है, लेकिन सरकार ने सूझबूझ और साहस के साथ महामारी से उपजे संकट से निपटने के लिये कई सुधारात्मक कदम उठाये हैं, जिसमें राहत पैकेज भी शामिल है। आज कोरोना महामारी की दूसरी लहर की वजह से अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव से निपटने के लिये भी सरकार ने सुधारात्मक कदम उठाना शुरू कर दिया है, जिससे अर्थव्यवस्था पर ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं है। सरकार के प्रयासों के कारण ही महामारी से होने वाले नुकसान को कम रखा जा सका है।
मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के 2 साल पूरे कर लिए हैं। मोदी सरकार ने पहले साल में अनुच्छेद 370 को हटाया, तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाये और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लागू किया। इस लिहाज से पहले साल को उपलब्धि भरा साल माना जा सकता है, वहीं वर्ष 2020 पूरी तरह से कोरोना वायरस से निपटते हुए बीत गया। लेकिन इसके बीच ही देश की दशकों पुरानी शिक्षा नीति की जगह नई शिक्षा नीति लाने का काम भी सरकार ने किया। अब वर्ष 2021 भी सरकार के लिये चुनौतियों भरा साल साबित हो रहा है।
मार्च 2020 से ही कोरोना महामारी भारत में पैर पसारने लगी थी, जिसपर काबू पाने के लिये मार्च के अंतिम सप्ताह में देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया। इस निर्णय से देश को कुछ आर्थिक नुकसान तो हुआ, मगर बहुत-सी जिंदगियों को बचा लिया गया। हालाँकि, मोदी सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियों की वजह से अर्थव्यवस्था को उम्मीद से कम नुकसान पहुँचा।
कोरोना वायरस की पहली लहर के दौरान ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान” पैकेज के तहत सरकार ने कारोबारियों और आमजन को कुल 29.87 लाख करोड़ रुपये की राहत दी, जो जीडीपी का 15 प्रतिशत था। आवासीय क्षेत्र को राहत देने के लिये कई कदम उठाये गये। देश की 70 प्रतिशत आबादी और 43 प्रतिशत रोजगार कृषि क्षेत्र में लोगों को मिला हुआ है। इसलिये, आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज की मदद से करोड़ों किसानों को फायदा पहुँचाया गया। प्रवासी मजदूरों को बिना कार्ड के 2 महीने तक 5 किलो प्रति व्यक्ति गेहूं या चावल और एक किलो चना प्रति परिवार मुफ्त दिया गया, जिससे करीब 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों को फायदा हुआ।
कोरोना महामारी के पहली लहर के दौरान 20.5 करोड़ महिलाओं के जनधन खातों में सरकार ने 3 महीनों तक 500 रूपये अंतरित किए। सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों (एमएसएमई), कोर्पोरेट्स और मध्यम वर्ग को राहत देने के लिये भी सरकार ने अनेकानेक कदम उठाये।
कोरोना महामारी की वजह से जून 2020 तक विकास का पहिया रुका रहा, लेकिन उसके बाद से विकास की गाड़ी फिर से आगे बढ़ने लगी। जुलाई और अगस्त महीने में आर्थिक गतिविधियों में और भी तेजी आई। सितंबर महीने में निर्यात में 5.27 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक और इंजीनियरिंग वस्तुओं की अहम भूमिका रही।
इंजीनियरिंग वस्तुओं एवं इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के निर्यात में क्रमश: 3.73 प्रतिशत और 0.04 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि दवाओं एवं दवा के उत्पादों का निर्यात 24.36 प्रतिशत बढ़ा। सितंबर महीने में कुल निर्यात 27.65 अरब डॉलर रहा, जबकि विगत वित्त वर्ष की समान अवधि में यह 26.02 अरब डॉलर रहा था।
सितंबर महीने में आयात 19.60 प्रतिशत कम होकर 30.31 अरब डॉलर रह गया। वर्ष 2019 के समान महीने में यह 37.69 अरब डॉलर रहा था। निर्यात में बढोतरी और आयात में कमी होने से भारत का व्यापार घाटा सितंबर महीने में कम होकर 2.92 अरब डॉलर रह गया। जाहिर है, आत्मनिर्भर भारत का असर दिखाई दिया।
अप्रैल महीने की तुलना में सितंबर महीने में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) वसूली, बिजली खपत, ऑटो बिक्री आदि बढ़ी। आर्थिक गतिविधियों के बढ़ने से ईंधन की खपत में भी इजाफा हुआ। अप्रैल के मुकाबले सितंबर महीने में जीएसटी वसूली में 3 गुणा वृद्धि हुई। सितंबर महीने में कुल जीएसटी वसूली 95.48 हजार करोड़ रूपये की हुई, जो अगस्त महीने के मुकाबले 10.4 प्रतिशत अधिक रहा। अगस्त महीने में जीएसटी वसूली 86.44 हजार करोड़ रूपये हुई थी।
दिसंबर के आते-आते अर्थव्यवस्था लगभग पटरी पर आ गई थी। भले ही चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23.9 प्रतिशत का संकुचन आया था, लेकिन तीसरी तिमाही में जीडीपी सकारात्मक हो गई थी, लेकिन फरवरी 2021 से कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने अपना पैर पसारना शुरू कर दिया, लेकिन यह प्रारंभिक चरण में था। इसलिये, जीएसटी संग्रह मार्च में 1.24 लाख करोड़ रुपये रहा, जो अब तक का अधिकतम संग्रह है।
वित्त वर्ष 2020-21 में लगातार छठे महीने जीएसटी संग्रह 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा, जबकि लगातार चौथे महीने जीएसटी संग्रह 1.1 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा। वित्त वर्ष 2020 के सातवें महीने में जीएसटी संग्रह ने 1 लाख करोड़ रुपये का स्तर पार किया था।
जीएसटी को लागू करने के बाद से 6 बार जीएसटी संग्रह 1.1 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा। मार्च में जीएसटी संग्रह के 1.24 लाख करोड़ रुपए रहने से कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह वित्त वर्ष 2020-21 के संशोधित अनुमान से अधिक रहने और राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2020-21 के संशोधित अनुमान 9।5 प्रतिशत से कम रहने का अनुमान लगाया गया।
कारोबारियों को कोरोना महामारी की दूसरी लहर से उत्पन्न मुश्किलों से उबारने के लिये रिजर्व बैंक ने 5 मई 2021 को कई उपायों की घोषणा की, जिनमें कर्ज पुनगर्ठन के विकल्प को फिर से कारोबारियों के समक्ष रखना सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस योजना के तहत कंपनियों की वित्तीय देनदारियों के भुगतान की शर्तों को आसान बनाया जायेगा।
क्रिसिल मझोले आकार की करीब 6,800 कंपनियों को रेटिंग देने का काम करती है। इस एजेंसी के मुताबिक खुदरा, आतिथ्य, वाहन डीलरशिप, पर्यटन, रियल एस्टेट क्षेत्र की कंपनियों आदि पर महामारी का सबसे अधिक असर पड़ेगा। दूसरी तरफ, रसायन, दवा, डेरी, सूचना व प्रौद्योगिकी और एफएमसीजी क्षेत्र की कंपनियों पर महामार्री का कोई खास असर नहीं पड़ेगा।
रिजर्व बैंक ने लघु वित्त बैंकों (एसएफबी) के लिए हर महीने एक स्पेशल लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन (एसएलटीआरओ) के तहत 10,000 करोड़ रुपये की नीलामी करने की घोषणा की। इस योजना की मदद से महामारी के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकेगा।
रिजर्व बैंक ने 5 मई को 50,000 करोड़ रुपये के कोरोना महामारी पैकेज की भी घोषणा की है, जिसका मकसद टीका बनाने वाली कंपनियों, चिकित्सा उपकरण की आपूर्ति करने वालों, अस्पतालों तथा बीमारी का इलाज करा रहे रोगियों को रकम उपलब्ध कराना है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिये बैंकों द्वारा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत जरूरतमंद लोगों को अधिक से अधिक संख्या में ऋण दिया जा रहा है, क्योंकि कोरोना वायरस के कारण करोड़ों लोगों को अपने रोजगार गंवाने पड़े हैं।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत महिलाओं द्वारा संचालित स्व-सहायता समूह को 20 लाख रूपये का ऋण बैंकों द्वारा बड़े पैमाने पर वितरित कर रही है, ताकि अधिक से अधिक लोग आत्मनिर्भर बनकर दूसरों को भी रोजगार मुहैया करा सकें।
दिसंबर 2020 तक भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड (आईबीसी) के तहत वसूली 39.80 प्रतिशत हुई, जो राशि में 1.97 लाख करोड़ रुपए है, जबकि दावे की कुल राशि 4.96 लाख करोड़ रुपए है। आईबीसी के जरिये भी बैंक अपने एनपीए को कम करने में सफल हो रहे हैं। एनबीएफसी में तरलता को बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक ने बैंकों को 30 सितंबर, 2021 तक पंजीकृत एनबीएफसी (एमएफआई को छोड़कर) को उधार देने पर उसे प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (पीएसएल) के रूप में वर्गीकृत करने की अनुमति दी है। मामले में ऋण का प्रतिशत कुल पीएसएल का 5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए। यह ऋण सूक्ष्म, लघु एवं मझौले उद्यम (एमएसएमई), आवास, कृषि आदि क्षेत्रों को दिया जा सकेगा।
पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार ने विनियामक शर्तों के अनुपालन हेतु एवं आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए सरकारी बैंकों को विविध माध्यमों से लगभग 3,50,000 करोड़ रुपये की पूँजी मुहैया कराई है। इस क्रम में सरकार ने 10 बैंकों का विलय करके चार बैंकों के गठन को भी मंजूरी दी है। दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की घोषणा भी की गई है, ताकि उपलब्ध संसाधनों का बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा सके।
कहा जा सकता है कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दो वर्षों का बड़ा हिस्सा कोरोना से जूझते हुए ही बीता है, लेकिन सरकार ने सूझबूझ और साहस के साथ महामारी से उपजे संकट से निपटने के लिये कई सुधारात्मक कदम उठाये हैं, जिसमें राहत पैकेज भी शामिल है। आज कोरोना महामारी की दूसरी लहर की वजह से अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव से निपटने के लिये भी सरकार ने सुधारात्मक कदम उठाना शुरू कर दिया है, जिससे अर्थव्यवस्था पर ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं है। सरकार के प्रयासों के कारण ही महामारी से होने वाले नुकसान को कम रखा जा सका है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)