अब तक गरीबी मिटाने के लिए सरकारों का पूरा जोर आरक्षण, रियायती अनाज, मनरेगा जैसे दान-दक्षिणा वाले उपायों पर रहता था लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इनके साथ-साथ दूरगामी उपाय भी कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जन-धन, सिंचाई, फसल बीमा, मुद्रा बैंक, सौर ऊर्जा, गांवों को रोशन करने, ई मंडी जैसी जनोपयोगी योजनाओं के बाद मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री उज्जवला योजना का आगाज किया। इससे महिलाओं को न सिर्फ चूल्हे के धुंए से बल्कि धुंए से होने वाली बीमारियों से भी मुक्ति मिल जाएगी। इसके तहत अगले तीन वर्षों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले (बीपीएल) पांच करोड़ परिवारों को मुफ्त में एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराया जाएगा। गौरतलब है कि अभी तक एलपीजी का दायरा शहरी व कस्बाई इलाकों तथा गांवों के समृद्ध वर्गों तक सिमटा हुआ है। यह स्थिति तब है जब चूल्हे के धुंए से होने वाली बीमारियों के चलते हर साल पांच लाख से ज्यादा लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं। इनमें से अधिकतर की मृत्यु गैर संचारी जैसे हृदय रोग, आघात, फेफड़े संबंधी बीमारियों के कारण होती है। इतना ही नहीं बच्चों को होने वाली सांस संबंधी बीमारियों के लिए भी घरेलू वायु प्रदूषण जिम्मेदार है। विशेषज्ञों के मुताबिक रसोई में खुली आग के धुंए में एक घंटे बैठने का मतलब 400 सिगरेट के बराबर धुंआ सूंघना है। इससे चूल्हे के धुंए से होने वाले प्रदूषण का अंदाजा लगाया जा सकता है। स्पष्ट है कि एलपीजी गैस से न सिर्फ महिलाओं का सशक्तीकरण होगा बल्कि उनके स्वास्थ्य की रक्षा भी होगी। इससे खाना बनाने में लगने वाले समय व श्रम में कमी आएगी। योजना से गैस वितरण में कार्यरत ग्रामीण युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। इतना ही नहीं इस योजना से पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री जन-धन, सिंचाई, फसल बीमा, मुद्रा बैंक, सौर ऊर्जा, गांवों को रोशन करने, ई मंडी जैसी जनोपयोगी योजनाओं के बाद मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री उज्जवला योजना का आगाज किया। इससे महिलाओं को न सिर्फ चूल्हे के धुंए से बल्कि धुंए से होने वाली बीमारियों से भी मुक्ति मिल जाएगी। इसके तहत अगले तीन वर्षों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले (बीपीएल) पांच करोड़ परिवारों को मुफ्त में एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराया जाएगा। गौरतलब है कि अभी तक एलपीजी का दायरा शहरी व कस्बाई इलाकों तथा गांवों के समृद्ध वर्गों तक सिमटा हुआ है। यह स्थिति तब है जब चूल्हे के धुंए से होने वाली बीमारियों के चलते हर साल पांच लाख से ज्यादा लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं। इनमें से अधिकतर की मृत्यु गैर-संचारी जैसे हृदय रोग, आघात, फेफड़े संबंधी बीमारियों के कारण होती है। स्पष्ट है कि एलपीजी गैस से न सिर्फ महिलाओं का सशक्तीकरण होगा बल्कि उनके स्वास्थ्य की रक्षा भी होगी।
देखा जाए तो रसोईघर का धुंआ पूरी दुनिया में बीमारी का कारण बना हुआ है। वैश्विक स्तर पर देखें तो इससे 20 लाख लोग असमय मौत के मुंह में धकेल दिए जाते है। यह संख्या हर साल मलेरिया से होने वाली कुल मौतों से ज्यादा है। लेकिन विडंबना यह है कि जहां मलेरिया की रोकथाम के लिए बचाव से लेकर इलाज तक हर स्तर पर कोशिशें जारी हैं वहीं रसोईघर के हत्यारे को काबू करने के लिए बहुत कम प्रयास हुए हैं। इस घरेलू प्रदूषण के शिकार ज्यादातर गरीब लोग होते हैं। यह भी देखने में आया है कि जैसे ही गरीबों की आर्थिक स्थिति में सुधार आता है वैसे ही वे स्वच्छ ऊर्जा जैसे केरोसिन, गैस, बिजली आदि को इस्तेमाल करने लगते हैं। लेकिन समस्या यह है कि गरीबों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाकर इस लक्ष्य को हासिल करने में दशकों लग जाएंगे। इसीलिए प्रधानमंत्री उज्जवला योजना जैसी सीधे हस्तक्षेप वाली योजना वक्त की मांग है तथा प्रधानमंत्री मोदी का यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है।
प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के लिए एलपीजी सब्सिडी छोड़ने की योजना (गिव इट अप) ने प्रेरणा का काम किया है। इस योजना के तहत अब तक एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने एलपीजी सब्सिडी स्वेच्छा से त्याग दिया है। इससे पहले सरकार ने फर्जी एलपीजी कनेक्शन के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी जिसके परिणामस्वरूप एलपीजी कनेक्शन की तादाद 18.2 करोड़ से घटकर 14.9 करोड़ रह गई। इससे 2014-15 में सरकार को 14,762 करोड़ रूपये की बचत हुई। यदि इसे जोड़ दिया जाए तो गिव इट अप योजना और कामयाब लगेगी। इतना ही नहीं मोदी सरकार पाइपलाइन से प्राकृतिक गैस आपूर्ति की योजना पर काम कर रही है जो एलपीजी से सस्ती पड़ती है। स्पष्ट है आने वाले दिनों में रसोईघरों के लिए और सस्ता ईंधन मिलेगा।
प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के लिए एलपीजी सब्सिडी छोड़ने की योजना (गिव इट अप) ने प्रेरणा का काम किया है। अमीरों द्वारा सब्सिडी त्यागने की यह अनूठी मुहिम कई नए आयाम गढ़ रही है। इस योजना की कामयाबी को देखते हुए लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने संपन्न दलितों से आरक्षण त्यागने की अपील की। टाटा समूह ने भी अपने कर्मचारियों से कहा कि वे स्वैच्छिक तौर पर एलपीजी सब्सिडी छोड़ने पर विचार करें। स्पष्ट यदि संपन्न वर्ग एलपीजी की भांति बिजली, पानी, उर्वरक, मिट्टी का तेल आदि पर मिलने वाली सब्सिडी का त्याग करने लगे तो न केवल संसाधनों की बरबादी थमेगी बल्कि गरीबी उन्मूलन की राह आसान भी हो जाएगी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)