यह देश के हर नागरिक के लिए गर्व की बात है कि चार बार खारिज हो चुके प्रस्ताव को आखिर अब जाकर मंजूरी मिली। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी 15 सदस्य देशों (स्थायी-अस्थायी) का समर्थन जुटाना बहुत बड़ी उपलब्धि है जो कि भारत की कूटनीतिक क्षमता को दर्शाती है।
बीते दिनों आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना और पुलवामा हमले के दोषी आतंकी मसूद अजहर को आखिरकार अब अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित कर दिया गया है। जैसे ही बुधवार को संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन ने अपना वीटो पॉवर हटाकर प्रतिबंध को समर्थन दिया, मसूद अजहर वैश्विक आतंकी घोषित हो गया। इसके साथ ही भारत को बहुत बड़ी सफलता मिल गई। इसके लिए भारत बरसों से प्रयासरत था। आखिर मोदी सरकार के कूटनीतिक प्रयास रंग लाए। जैसे ही यह खबर मीडिया में आई तो कई लोगों को आश्चर्य हुआ क्योंकि मसूद को बचाने के लिए चीन हमेशा आगे आता आया है।
निश्चित ही मसूद का अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित होना अपने आप में अहम बात है लेकिन इस पर अवश्य विचार होना चाहिये कि आखिर चीन को यह यू-टर्न क्यों लेना पड़ा और किस दबाव के चलते उसने आतंक को पोषित करने के अपने एजेंडे में बदलाव किया।
यह भारत की एक बड़ी जीत है लेकिन हमारे देश का दुर्भाग्य है कि यहां बहुतेरे दलों की राजनीतिक समझ देशहित ना होकर विचारधाराओं के चश्मे से पनपती है। मसूद के वैश्विक आतंकी घोषित होते ही सोशल मीडिया पर विपक्षियों को सांप सूंघ गया है। जैसे-तैसे हिम्मत जुटाकर इन्होंने बोलना शुरू किया तो बेतुके ढंग से इसके लिए वर्तमान सरकार की बजाय कांग्रेस सरकार को श्रेय देने लगे।
एक ओर तो यह कहा जा रहा है कि मनमोहन सरकार के समय से इस प्रतिबंध के प्रयास शुरू हो गए थे लेकिन उनसे पूछा जाना चाहिये कि कांग्रेस अध्यक्ष तो डोकलाम समस्या के समय बिना सरकार की अनुमति के स्वयं चीनी राजदूत से मिलने गए थे, तो इन “मधुर संबंधों” का उपयोग करते हुए उन्होंने चीन से बोलकर मसूद को ग्लोबल टेरेरिस्ट घोषित क्यों नहीं कराया?
निश्चित ही यह मोदी सरकार की एक और बड़ी उपलब्धि है। उनकी कुशल नीतियों और आतंक के प्रति सख्त रवैये का ही प्रभाव है कि संयुक्त राष्ट्र ने आखिर एक बड़े काम को अंजाम तक पहुंचाया। यह केंद्र सरकार की कूटनीतिक घेरेबंदी का ही असर है कि संयुक्त राष्ट्र का ऐलान सामने आते ही पाकिस्तान के स्वर बदल गए। वो अजहर पर प्रतिबन्ध लागू करने की बात करने लगा।
भले ही यह बेमन से और दिखावे के लिए किया जा रहा हो लेकिन पाकिस्तान पर इतना दबाव पहले कहां था। यूएन का निर्णय सामने आते ही पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इसे तुरंत लागू करने की बात कही है। चूंकि यह प्रतिबंध एक नियमावली के तहत लागू किया जाता है जिसके अंतर्गत संबंधित आतंकी से जुड़े बैंक खातों, संपत्तियों को जब्त करने की कार्यवाही की जाती है, ऐसे में पाकिस्तान का ऊंट अब पहाड़ के नीचे आ गया है।
जैश-ए-मोहम्मद संगठन की अब पूरी निगरानी होगी और संयुक्त राष्ट्र संघ के समस्त देशों को इसकी जानकारी भी देनी होगी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि गत 14 फरवरी को हुए पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ही नहीं, अपितु पूरे विश्व से आतंकवाद के खिलाफ कड़े स्वर उठे थे।
भारत सरकार ने एयर स्ट्राइक करके बालाकोट में जैश के आतंकी ठिकाने नष्ट करके अपने सैनिकों की शहादत का प्रतिशोध तो ले लिया लेकिन देश का मुख्य लक्ष्य मसूद की घेराबंदी करना था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार देश-विदेश में अपनी इस मंशा को जन-जन तक पहुंचाया और यह कहा भी कि आतंकवाद के खिलाफ उनकी सरकार हर संभव प्रयास करने में जुटी है।
यहां इस बात का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि एयर स्ट्राइक से बौखलाए पाकिस्तान ने जिस मसूद को संरक्षण दे रखा था, उसे दुनिया की मीडिया से बचाए रखने के लिए उसकी तबीयत खराब होने और मौत की अफवाहें उड़ा दीं, ताकि सबका ध्यान मूल विषय से भटक जाए। पाक के विदेशमंत्री ने भी एक बयान में मसूद की खराब तबीयत का हवाला दिया था। लेकिन सवाल यह है कि एक आतंकवादी के स्वास्थ्य की चिंता आखिर पाकिस्तान को क्यों हो रही है?
पाकिस्तान ने बकायदा मसूद अजहर को छुपाकर रखा था और सरकारी सुरक्षाकर्मी भी उसकी सुरक्षा के लिए तैनात किए गए थे, मानो वो कोई सरकारी मेहमान हो। ये सारी बातें मीडिया के माध्यम से बाहर आती रहीं और पाकिस्तान का दोहरा चरित्र स्वयं उजागर हो गया। एक तरफ तो पाक पीएम इमरान खान आतंकवाद को बुराई बताते हैं, दूसरी तरफ वे खुद मसूद को पनाह देते हैं। यूएन के सामने यह आखिर कब तक छिपा रहता। भारत का चौतरफा दबाव रंग लाया और मसूद को बचाने वाले चीन ने प्रस्ताव पफर से अपनी रोक हटा दी। निश्चित ही यह देश के लिए एक अभूतपूर्व व गौरव करने योग्य क्षण है, जिसके लिए मोदी सरकार का स्वागत किया जाना चाहिये।
चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ कूटनीतिक संबंधों, वार्ताओं का मजाक बनाकर पीएम मोदी पर अनर्गल कटाक्ष करने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब कुछ भी नहीं बोल रहे हैं। मानो उन्हें मन ही मन दुख हो रहा हो कि मसूद पर प्रतिबंध क्यों लग गया। हो भी क्यों ना, आखिर एक मंच पर तो वे सार्वजनिक रूप से आतंकवादी मसूद को “जी” का संबोधन दे ही चुके हैं। इसी बिंदु पर आकर कांग्रेस का विकृत चेहरा उजागर हो जाता है।
आंतरिक सुरक्षा के मसले प्रत्येक राष्ट्र के लिए अहम होते हैं, लेकिन कांग्रेस को यह भी मजाक लगता है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत एवं स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरूद्दीन के हवाले से जिस समय इस प्रतिबंध की सूचना सामने आई, पीएम मोदी राजस्थान में एक सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यह अभी शुरुआत ही है। इस प्रतिबंध के माध्यम से अब आतंकवाद को जड़ से मिटाने में मदद मिलेगी। उन्होंने सहयोग के लिए सभी छोटे-बड़े देशों को भी धन्यवाद ज्ञापित किया।
यह शर्मनाक बात है कि देश हित के हर फैसले को विपक्षी चुनावी राजनीति से जोड़कर देखते आए हैं और चुनाव आयोग जैसी स्वायत्त संस्था पर भी आक्षेप करने से बाज नहीं आते, ऐसे में यूएन से यह फैसला आना उन तमाम विपक्षियों के मुंह पर करारा तमाचा है। निसंदेह यह देश के हर नागरिक के लिए गर्व की बात है कि चार बार खारिज हो चुके प्रस्ताव को आखिर अब जाकर मंजूरी मिली। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी 15 सदस्य देशों (स्थायी-अस्थायी) का समर्थन जुटाना बहुत बड़ी उपलब्धि है जो कि भारत की कूटनीतिक क्षमता को दर्शाती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)