गोरक्षा की आड़ में निंदनीय घटनाओं को अंजाम दे रहे तथाकथित गोरक्षकों के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की टिप्पणी के गहरे निहितार्थ हैं। उतावलेपन से प्रधानमंत्री के बयान की गंभीरता को समझना मुश्किल होगा। प्रधानमंत्री के बयान के महत्त्व को समझने के लिए गंभीरता, धैर्य और वास्तविकता को स्वीकार करने का सामर्थ्य चाहिए। प्रधानमंत्री ने दो टूक कहा है कि इन दिनों कई लोगों ने गोरक्षा के नाम पर दुकानें खोल रखी हैं। दिन में यह लोग गोरक्षक का चोला पहन लेते हैं और रात में गोरखधंधा करते हैं। उन्होंने कहा कि यदि इन तथाकथित गोरक्षकों का डोजियर तैयार किया जाए, तब इनमें से तकरीबन ८० प्रतिशत असामाजिक तत्त्व निकलेंगे। प्रधानमंत्री की इस टिप्पणी पर कुछ हिंदूवादी संगठन गुस्से में हैं। उन्होंने इस बयान की निंदा की है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री ने गोरक्षकों को बदनाम किया है। लेकिन, क्या इन संगठनों ने एक बार भी सोचा है कि जिस तरह से पिछले कुछ समय में देशभर में गोरक्षा के नाम पर हत्या, मारपीट, धमकाने और धन वसूलने के मामले सामने आए हैं, उनसे गोरक्षकों का कितना मान बढ़ा है? गोरक्षा के नाम पर आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने वाले इन लोगों ने वास्तविक गोरक्षकों की प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुँचाया है। पूरी ईमानदारी से गो-सेवा में शामिल भोले-भाले लोगों को भी समाज में संदिग्ध निगाह से देखा जाने लगा है। हिंदू संगठनों को यह भी समझना चाहिए कि तथाकथित गोरक्षकों की इन हरकतों से उनकी स्वयं की प्रतिष्ठा भी धूमिल हो रही है। सच्चे गोरक्षकों की प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए इन नकली गोरक्षकों को बेनकाब किया जाना जरूरी है। प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि सच्चे गोरक्षकों को इन नकली गोरक्षकों से सजग रहना चाहिए। वरना, मुट्ठीभर गंदे लोग आपको बदनाम कर देंगे।
हिंदू समाज के लिए जमीन स्तर पर काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान का समर्थन किया है। आरएसएस ने भी कहा है कि समाज-हित में फर्जी गोरक्षकों की पहचान होना जरूरी है। संघ सर सहकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने कहा कि गोरक्षा के नाम पर कुछ लोग कानून हाथ में लेकर सामाजिक सौहार्द बिगाडऩे का काम कर रहे हैं। ऐसे लोगों को बेनकाब किए जाने की जरूरत है। आरएसएस के बयान के बाद हमें समझ लेना चाहिए कि गोरक्षा की आड़ में अनेक आपराधिक प्रवृत्ति के लोग सक्रिय हैं। यह हिंदू समाज को गंभीर क्षति पहुँचाने का षड्यंत्र भी हो सकता है। इस बात की आशंका इसलिए है, क्योंकि जैसे ही प्रधानमंत्री ने गोरक्षा के नाम पर अपराध करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की अपील सभी राज्य सरकारों से की, वैसे ही उनके धुर-विरोधी भी गो-हितैषी बन गए और तथाकथित गोरक्षकों का अपमान करने वाली टिप्पणी पर प्रधानमंत्री की निंदा करने लगे।
तथाकथित गोरक्षकों ने न केवल गो-संरक्षण के विषय को विवादास्पद बना दिया है, बल्कि समूचे हिंदू समाज के सामने गंभीर संकट भी खड़ा कर दिया है। आज गाय के विषय पर समाज में दरार पड़ रही है। गुजरात के ऊना में गोरक्षा के नाम पर मृत गाय की खाल उतारने वाले वंचित समाज के बंधुओं के साथ समाजकंटकों ने जिस बर्बर व्यवहार का प्रदर्शन किया है, वह सामाजिक समरसता पर चोट करने वाला है। एक ओर हिंदू समाज को एकजुट करने के तमाम प्रयास किए जा रहे हैं, तब समाज को तोड़ने वाली इस तरह की घटनाओं में शामिल लोगों पर प्रश्न खड़े क्यों नहीं होने चाहिए? गाय समाज को जोड़ने का विषय बननी चाहिए, न कि समाज में फूट पैदा करने का कारण। गाय प्रत्येक हिंदू के लिए स्वाभिमान का प्रश्न है, लेकिन गाय की कीमत पर मनुष्यों की हत्या और उनके साथ अमानुष व्यवहार की स्वीकृति कदापि नहीं दी जा सकती। प्रधानमंत्री मोदी का विरोध कर रहे तथाकथित गोरक्षक क्या इस प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं- वंचित समाज में गाय की प्रतिष्ठा कम है क्या? क्या वंचित समाज गाय को अपनी माँ नहीं मानता? जाहिर तौर पर हिंदूधर्म के सभी प्रतिष्ठानों के प्रति वंचित समाज की आस्थाएँ अधिक गहरी हैं। फिर, गाय के नाम पर गुंडागर्दी किसलिए? हमें फिर से इस संबंध में सोचना चाहिए कि गाय के नाम पर गुंदागर्दी से कितना गो-संरक्षण हो रहा है और हिंदू समाज का कितना भला हो रहा है?
हिंदू समाज के लिए जमीन स्तर पर काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान का समर्थन किया है। आरएसएस ने भी कहा है कि समाज-हित में फर्जी गोरक्षकों की पहचान होना जरूरी है। संघ सर सहकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने कहा कि गोरक्षा के नाम पर कुछ लोग कानून हाथ में लेकर सामाजिक सौहार्द बिगाडऩे का काम कर रहे हैं। ऐसे लोगों को बेनकाब किए जाने की जरूरत है। आरएसएस के बयान के बाद हमें समझ लेना चाहिए कि गोरक्षा की आड़ में अनेक आपराधिक प्रवृत्ति के लोग सक्रिय हैं। यह हिंदू समाज को गंभीर क्षति पहुँचाने का षड्यंत्र भी हो सकता है। इस बात की आशंका इसलिए है, क्योंकि जैसे ही प्रधानमंत्री ने गोरक्षा के नाम पर अपराध करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की अपील सभी राज्य सरकारों से की, वैसे ही उनके धुर-विरोधी भी गो-हितैषी बन गए और तथाकथित गोरक्षकों का अपमान करने वाली टिप्पणी पर प्रधानमंत्री की निंदा करने लगे।
प्रधानमंत्री ने कड़ा बयान इसलिए भी दिया है, क्योंकि गोरक्षा के नाम पर मारपीट की घटनाओं से केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों की सरकारें भी कठघरे में खड़ी हो रही हैं। हालांकि, सरकारों ने सभी मामलों में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की है। इसके बावजूद भाजपा और उसकी विचारधारा के विरोधी अधिक मुखर होकर सरकार को घेर लेते हैं। उस पर कुछेक विधायक-सांसद उटपटांग बयान देकर सरकारों की मुसीबत और बढ़ा देते हैं। भाजपा सरकारों पर इन घटनाओं में शामिल लोगों को प्रश्रय देने का आरोप लगाया जाता है। इस आरोप को सच की तरह प्रस्तुत करने में भाजपा विरोधी इसलिए भी कामयाब हो जाते हैं, क्योंकि भाजपा गो-संरक्षण का मामला जोर-शोर से उठाती रही है। इन घटनाओं को आधार बनाकर भाजपा विरोधी ताकतें समाज के मन में यह बात बैठाने का प्रयत्न कर रही हैं कि गाय के नाम पर मारपीट ही भाजपा का गो-संरक्षण है। यही कारण है कि तथाकथित गोरक्षा के नाम पर मारपीट की घटनाएं गैर-भाजपा शासित राज्यों में भी हो रही हैं, लेकिन उन घटनाओं पर अजीब-सी चुप्पी कायम रहती है, जबकि भाजपा शासित राज्य की किसी भी घटना पर हंगामा खड़ा कर दिया जाता है। अर्थात् गोरक्षा की आड़ में होने वाले उत्पात पर हंगामा सिर्फ भाजपा विरोध की राजनीति है। प्रधानमंत्री के बयान ने इस राजनीति पर भी चोट की है। स्थिर मन से विचार करें तब हम समझ सकेंगे कि प्रधानमंत्री ने सच्चे गोरक्षकों, गो-संरक्षण तथा हिंदू समाज के साथ-साथ अपने दल भाजपा की प्रतिष्ठा बचाने के लिए भी यह आह्वान किया है।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार है।)