चीन लंबे अरसे से भारत के बांस उत्पादन और बांस आधारित उद्यमों को तहस-नहस करने का ख्वाब देख रहा था, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिल रही थी। इस कठिन काम को चीन ने राजीव गांधी फाउंडेशन को चंदा देकर आसानी से कर लिया। जिस दिन चीन ने राजीव गांधी फाउंडेशन को चंदा दिया उसके ठीक दस दिन बाद तत्कालीन वाणिज्य और उद्योग मंत्री कमल नाथ चीन की यात्रा पर गए। करोड़ों रूपये के चंदे के अहसानों के तले दबी कांग्रेस नीति यूपीए सरकार के मंत्री ने बांस के आयात पर लगने वाले शुल्क को खत्म कर दिया।
चीन से टकराव के बीच गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी चीनी आक्रामकता और वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रति नरम रवैया क्यों अपनाए है, यह सवाल सबके ज़ेहन में था। लेकिन अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा द्वारा जिस तरह से यह जानकारी सामने लाई गयी है कि चीन द्वारा कांग्रेस के पारिवारिक ट्रस्ट राजीव गांधी फाउंडेशन को भारी-भरकम राशि चंदे में दी गयी थी, उससे लगता है कि यही चंदा चीन पर कांग्रेस का मुंह सिले हुए है।
वैसे चीन के इस चंदे से कांग्रेस की भले ही बल्ले-बल्ले हुई हो लेकिन इसका खामियाजा देश के करोड़ों किसानों और उद्यमियों को भुगतना पड़ रहा है। 2005-06 में चीन से राजीव गांधी फाउंडेशन को 2.26 करोड़ रूपये चंदे के रूप में मिले।
इसके तुरंत बाद राजीव गांधी फाउंडेशन ने भारत और चीन के बीच मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) की संभावना तलाशने के लिए दो–दो बार अध्ययन कराया। स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी चीन के लिए लाबिइंग कर रही थी जबकि राजीव गांधी फाउंडेशन या कांग्रेस पार्टी को इसका कोई अधिकार नहीं है।
यह चीन से कांग्रेस पार्टी को मिले चंदे की करामात है कि यूपीए सरकार ने चीन से आयातित वस्तुओं पर आयात शुल्क में लगातार कमी की। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि 2004 से 2014 के बीच चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 33 गुना बढ़ गया।
चीन से होने वाले सस्ते आयात का खामियाजा देश भर में फैले करोड़ों कुटीर उद्योगों को उठाना पड़ा। इन कुटीर उद्योगों में जो कच्ची सामग्री इस्तेमाल होती थी, वह स्थानीय स्तर पर कृषि क्षेत्र से मिल जाती थी, लेकिन सस्ते आयात बढ़ने से इन कृषि उपजों की बिक्री घटी जिससे किसानों की बदहाली बढ़ी।
यूपीए सरकार की चीन परस्त व्यापारिक नीतियों को बांस और अगरबत्ती के उदाहरण से समझा जा सकता है। पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों में बांस की खेती प्रचुरता से होती है। बांस से खिलौने, अगरबत्ती जैसी सैकड़ों वस्तुएं कुटीर उद्योगों में बनाई जाती हैं। दूसरे शब्दों में पूर्वी भारत में यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था का रीढ़ है।
चीन लंबे अरसे से भारत के बांस उत्पादन और बांस आधारित उद्यमों को तहस-नहस करने का ख्वाब देख रहा था, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिल रही थी। इस कठिन काम को चीन ने राजीव गांधी फाउंडेशन को चंदा देकर आसानी से कर लिया।
जिस दिन चीन ने राजीव गांधी फाउंडेशन को चंदा दिया उसके ठीक दस दिन बाद तत्कालीन वाणिज्य और उद्योग मंत्री कमल नाथ चीन की यात्रा पर गए। करोड़ों रूपये के चंदे के अहसानों के तले दबी कांग्रेस नीति यूपीए सरकार के मंत्री ने बांस के आयात पर लगने वाले शुल्क को खत्म कर दिया।
इतना ही नहीं, कांग्रेस पार्टी के दबाव में आकर भारत सरकार ने बांस को वृक्ष की श्रेणी में ला दिया। इसका नतीजा हुआ कि अब किसानों को अपना बांस काटने के लिए वन विभाग और दूसरे सरकारी विभागों से मंजूरी लेना जरूरी हो गया। सरकार के इस आत्मघाती कदम से देश में बांस उगा कर गुजारा करने वाले किसान और बांस आधारित तमाम कुटीर उद्योग नष्ट हो गए। जो कुटीर उद्योग बचे रह गए वे अब चीन से बांस और अगरबत्ती की कच्ची सामग्री आयात करने लगे।
इसे चीन के चंदे की कृपा ही कहेंगे कि 2011 में यूपीए सरकार ने अगरबत्ती पर आयात शुल्क को 30 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ चीन और वियतनाम से अगरबत्ती आयात तेजी से बढ़ा।
गौरतलब है कि भारत में अगरबत्ती की खपत 1,490 टन की है, लेकिन स्थानीय स्तर पर इसका उत्पादन केवल 760 टन का ही होता है। मांग और आपूर्ति के बीच इस अंतर को आयात से पूरा किया जाता है।
देश को अगरबत्ती के मामले में आत्मनिर्भर बनाने, बांस की खेती को लाभकारी बनाने और बांस आधारित उद्योगों के पुनर्जीवन के लिए मोदी सरकार ने दो अहम फैसले किए। सबसे पहले बांस को वृक्ष की श्रेणी से निकालकर फसल व घास की श्रेणी में रख दिया।
अब बांस काटने और उसके देश भर में परिवहन के लिए किसी विभाग से प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं रह गई। दूसरा कदम उठाते हुए मोदी सरकार ने बांस पर आयात शुल्क को 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया। इससे अगरबत्ती निर्माता आयात के बजाए घरेलू कच्चे माल का इस्तेमाल करेंगे और देश के अगरबत्ती निर्माण में तेजी आएगी।
बांस और अगरबत्ती के उदाहरण से प्रतीत होता है कि कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के लिए देश से बड़ा उनका अपना आर्थिक हित है। कांग्रेस को इस विषय में अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए, अन्यथा कहा तो यही जाएगा कि अपनी तिजोरी भरने के लिए कांग्रेस ने करोड़ों किसानों, उद्यमियों और देश के आर्थिक हितों की बलि चढ़ा दी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)