केंद्र और यूपी सरकार के बीच हुए ‘पॉवर फॉर आल’ समझौते से ख़त्म होगा यूपी का बिजली संकट

सत्‍ता संभालने के बाद मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने जिला मुख्‍यालयों में 24 घंटे, तहसील में 20 घंटे और ग्रामीण क्षेत्रों में 18 घंटे बिजली आपूर्ति का आदेश दिया। 100 दिनों में 5 लाख नए कनेक्‍शन देने के साथ-साथ जले हुए ट्रांसफार्मर को बदलने के लिए 48 घटे का समय दिया है। बिजली की मांग-आपूर्ति की खाई को बिडिंग के जरिए बिजली खरीद कर पूरा करने के साथ-साथ प्रदेश के बिजली से वंचित 1.84 करोड़ घरों तक बिजली पहुंचाने का अभियान युद्धस्‍तर पर चलाया जाएगा।

जिस प्रकार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही नरेंद्र मोदी ने बिजली सुविधा से वंचित सभी 18475 गांवों में 1000 दिनों के भीतर बिजली पहुंचाने का लक्ष्‍य रखा था, उसी प्रकार का समयबद्ध लक्ष्‍य मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने उत्‍तर प्रदेश के लिए तय किया है। केंद्र सरकार के साथ हुए “पॉवर फॉर ऑल” समझौते के तहत नवंबर 2018 तक प्रदेश के लोगों को बिजली कटौती से मुक्‍ति मिल जाएगी।  गौरतलब है कि प्रधानमंत्री का 1000 दिनों में सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने की महत्‍वाकांक्षी योजना कामयाबी की राह पर है। 

3 अप्रैल 2017 तक 18475 गांवों में से 13134 गांवों में बिजली पहुंचा दी गई है अर्थात लक्ष्‍य का 71 फीसदी काम पूरा हो चुका है। मई तक बाकी 4481 गांवों तक बिजली पहुंचा दी जाएगी। अविद्युतीकृत गांवों में बिजली पहुंचाने के साथ-साथ बिजली उत्‍पादन, वितरण, भुगतान, घाटे की भरपाई आदि के लिए कई अनूठे उपाय किए गए। सौर व पवन ऊर्जा का उत्‍पादन लक्ष्‍य से ज्‍यादा रहा है। रूफ टॉप की क्षमता 3 वर्ष में 40मेगावाट से बढ़कर 650 मेगावाट हो गई। बिजली की उपलब्‍धता आदि की जानकारी देने हेतु विद्युत प्रवाह और उपभोक्‍ताओं को बिजली कटौती की सूचना देने के लिए ऊर्जा मित्र एप शुरू किए गए हैं। इनका परिणाम यह हुआ कि अगस्‍त 2016में जहां पॉवर कट का मासिक औसत 13 घंटे था, वहीं दिसंबर तक यह घटकर 6.4 घंटे रह गया।

केंद्र और यूपी सरकार के बीच हुआ पॉवर फॉर आल समझौता (साभार : गूगल)

इतना ही नहीं, भारत पहली बार बिजली के आयातक से निर्यातक बना। 2016-17 में भारत ने 5798 मिलियन यूनिट बिजली नेपाल,  बांग्‍लादेश, म्‍यांमार को निर्यात की। यह भूटान से आयात की गई 5585 मिलियन यूनिट से 213 मिलियन यूनिट ज्‍यादा है। 2014 के लोक सभा चुनाव के दौरान भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में नरेंद्र मोदी ने 2019 तक सभी को सातों दिन-चौबीसों घंटे बिजली देने का वादा किया था जिसे जनता का भरपूर समर्थन मिला।

देखा जाए तो मोदी की अंधेरा मिटाओ मुहिम अकारण नहीं है। उन्‍नत आधारभूत ढांचा विशेषकर ग्रामीण विद्युतीकरण का बहुआयामी असर होता है। ग्रामीण विद्युतीकरण में उपभोग प्रवृत्‍ति व आमदनी बदलने की क्षमता होती है। विद्युतीकृत परिवारों की आमदनी अविद्युतीकृत परिवारों से ज्‍यादा होती है। उत्‍तर प्रदेश आर्थिक विकास की दौड़ में पिछड़ रहा है, तो इसका एक कारण बिजली की कमी भी है। इसे राज्‍यों के तुलनात्‍मक उदाहरण से समझा जा सकता है। 2015-16 में उत्‍तर प्रदेश में 1000 ग्रामीण लोगों पर 56 बेरोजगार युवा थे तो राष्‍ट्रीय स्‍तर पर यह औसत 34 था। दूसरी ओर बिजली की भरपूर आपूर्ति वाले राज्‍य गुजरात में 1000 ग्रामीण लोगों पर महज 6 बेरोजगार युवा थे।  

इसे विडंबना ही कहेंगे कि एक ओर देश बिजली निर्यात कर रहा है, तो दूसरी उत्‍तर प्रदेश में बिजली कटौती बदस्‍तूर जारी है। इसका कारण है कि बिजली उत्‍पादन से लेकर वितरण तक जितने भी प्रगतिशील उपाय मोदी सरकार ने पिछले तीन वर्षों में किए हैं उनका बहुत कम असर यहां पहुंचा है। प्रदेश सरकार ने बिजली के उत्‍पादन व वितरण में सुधार के जो छिटपुट प्रयास किए वे  सभी  जातिवादी  राजनीति की भेंट चढ़ गए। दरअसल उत्‍तर प्रदेश में बिजली का जबर्दस्‍त राजनीतिकरण हुआ है।

साभार : गूगल

यूँ तो  उत्तर प्रदेश का हर मुख्‍यमंत्री यही चाहता हैं कि विधान सभा चुनाव में जाने से पहले सातों दिन-चौबीसों घंटे (24*7) बिजली आपूर्ति होने लगे लेकिन इसके लिए जिन कठोर सुधारों की जरूरत होती है उन्‍हें लागू करने से वे कतराते हैं। यही कारण है कि पिछले 20 वर्षों से प्रदेश में बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच 10 से 15 फीसदी का अंतर बना हुआ। जब बिजली की मांग चरम पर होती है तब यह अंतर और ज्‍यादा हो जाता है। 2013 में यह खाई 43 फीसद तक पहुंच गई थी। इसका नतीजा बिजली कटौती और लो वोल्‍टेज के रूप में सामने आता है। संसाधनों की कमी और राजनीतिक इच्‍छाशक्‍ति न होने के कारण ही अब तक सूबे के 1.83 करोड़ घरों में बिजली नहीं पहुंच पाई है।

मोदी सरकार 2019 तक बिजली आपूर्ति के जिस लक्ष्‍य (सातों दिन-चौबीसों घंटे) को पाने के लिए दिन-रात एक किए हुए है, वह उत्‍तर प्रदेश में राजनीतिक कारणों से दम तोड़ चुका है। अखिलेश सरकार ने प्रदेश के जिन चुनिंदा जिलों में सातों दिन-चौबीसों घंटे बिजली आपूर्ति शुरू की थी, वहां कटियामारों ने इसका भरपूर लाभ उठाया जिससे बिजली हानि बढ़ गई। उदाहरण के लिए वाराणसी को बिजली कटौती मुक्‍त घोषित करने से पहले बिजली हानि 43.18 फीसद थी, लेकिन बाद में यह अनुपात बढ़कर 50.13 फीसद हो गया।

साभार : गूगल

मुलायम सिंह यादव के निर्वाचन क्षेत्र आजमगढ़ का तो और बुरा हाल हुआ जहां यह अनुपात 56.8 से बढ़कर 63.7 फीसद हो गया। इसी तरह 2013 में उत्‍तर प्रदेश में बिजली की 78 फीसदी वसूली हो रही थी जबकि राष्‍ट्रीय औसत 94 फीसदी है। प्रदेश में तकनीकी एवं वाणिज्यिक नुकसान (एटी एंड सी) का औसत 37 प्रतिशत है जबकि राष्‍ट्रीय स्‍तर पर यह 25.4 फीसद है। स्‍पष्‍ट है, उत्‍तर प्रदेश का अंधियारा तभी मिटेगा जब बिजली क्षेत्र में कठोर सुधारों को लागू किया जाए। इसकी शुरूआत प्रदेश की नई सरकार कर चुकी है।

सत्‍ता संभालने के बाद मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने जिला मुख्‍यालयों में 24 घंटे, तहसील में 20 घंटे और ग्रामीण क्षेत्रों में 18 घंटे बिजली आपूर्ति का आदेश दिया। 100 दिनों में 5 लाख नए कनेक्‍शन देने के साथ-साथ जले हुए ट्रांसफार्मर को बदलने के लिए 48 घटे का समय दिया है। बिजली की मांग-आपूर्ति की खाई को बिडिंग के जरिए बिजली खरीद कर पूरा करने के साथ-साथ प्रदेश के बिजली से वंचित 1.84 करोड़ घरों तक बिजली पहुंचाने का अभियान युद्धस्‍तर पर चलाया जाएगा। सरकार कम बिजली खपत वाले उपकरणों की बिक्री रियायती मूल्‍य पर कर रही है ताकि फिजूलखर्ची न हो। योगी सरकार जानती है कि बिजली चोरी रोके बिना “पॉवर फॉर ऑल” का लक्ष्‍य हासिल नहीं होगा इसीलिए प्रदेश में गुजरात की भांति बिजली चोरी रोकने के लिए विशेष थाने बनाए जाएंगे। स्‍पष्‍ट है कि अंधेरा मिटाने की मोदी की मुहिम में अब उत्‍तर प्रदेश भी कदमताल करने लगा है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)