अनुपमा ऐरी
किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले भारत के बिजली क्षेत्र ने कभी ऐसे सुधार नहीं देखे थे जैसे पिछले दो सालों में देखे हैं। ऐसा नहीं है कि बिजली क्षेत्र में सुधारों पर अतीत में बात नहीं होती थी लेकिन न जाने क्यों वे उड़ान लेने में विफल रहे और सिर्फ कागज पर बेहतरीन तरीके से लिखा गया शब्दों का एक संग्रह बनकर ही रह गए। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने 26 मई, 2014 को कार्यभार ग्रहण किया और ऊर्जा क्षेत्र के गलियारों में वो चुप्पी का आखिरी दिन था। तब से ही भारतीय विद्युत क्षेत्र गतिविधियों से हलचल में है। नई सरकार के सत्ता में आने के कुछ ही दिनों में नए ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने कई सारी प्रमुख योजनाओं की घोषणा की जिन्होंने अंततः भारत में ऊर्जा क्षेत्र का चेहरा ही बदल दिया है।
वैश्विक एजेंसियों ने ऊर्जा सुधारों की प्रशंसा की
आज बिजली क्षेत्र में सुधारों को वैश्विक एजेंसियों द्वारा मान्यता दी जा रही है, चाहे वो विश्व बैंक हो या एशियाई विकास बैंक या फिर स्टैंडर्ड एंड पुअर (एस एंड पी ) और फिच जैसी अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियां। एक हाल की यात्रा के दौरान विश्व बैंक के समूह अध्यक्ष जिम योंग किम ने भारत सरकार को अपने सुधारों की पहल के लिए बधाई दी है और भारत की सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए एक अरब डॉलर के समर्थन पर घोषणा की।दो साल पहले भारत का ऊर्जा क्षेत्र न सिर्फ घरेलू बल्कि अंतरराष्ट्रीय धन और रेटिंग एजेंसियों के लिए भी मुख्य चिंता का क्षेत्र था। और अब दो साल बाद देख लीजिए, हम यहां हैं और इसी बिजली क्षेत्र और इन्हीं एजेंसियों के बारे में बात कर रहे हैं लेकिन एक अंतर के साथ। वह अंतर नेतृत्व और दृष्टिकोण का है। इस अंतर ने सभी सवालों और चिंताओं को एक आशावादी दृष्टिकोण में बदल दिया है। हालांकि यह काम आसान नहीं था। यह बहुत सारे नए सुधारों और पहलों के कारण हो पाया जिन पर हमें विस्तार से नजर डालनी चाहिए।
वर्ष 2014 तक देश की पूरा ध्यान बिजली उत्पादन पर था लेकिन इतना ही समान कार्य बिजली के पारेषण और वितरण पर नहीं किया जा रहा था। और उत्पादन पर ध्यान देते हुए भी ईंधन (कोयला और गैस दोनों) की कमी से निवेश और परियोजनाएं अधर में थीं और बैंक वित्त अटक रहा था। बैंक उधार देने के लिए तैयार नहीं थे और निवेशक बिजली क्षेत्र में निवेश नहीं करना चाहते थे। राज्य वितरण कंपनियों की खराब होती वित्तीय सेहत के परिणामस्वरूप बिजली की खरीद कमजोर रही जिससे देश भर में बिजली की भारी कटौतियां हुईं। सरल शब्दों में कहें तो बिजली क्षेत्र उथल पुथल की स्थिति में था। जब राजग सरकार ने सत्ता संभाली थी तो उसे बिजली क्षेत्र की व्याकुलता की वास्तविक स्थिति का पता चला। हालांकि ऊर्जा मंत्रालय जल्द ही हरकत में आ गया और अस्थिर ऊर्जा क्षेत्र को स्थिर करने के लए अचूक पहलों की घोषणा की। ऐसी कुछ शुरुआती पहलों में था “24×7 बिजली सब के लिए” जैसे फ्लैगशिप कार्यक्रमों की घोषणा करना। लेकिन ये रास्ता आसान न था। उनके रास्ते में पहली बाधा तब आई जब उन्हें पता चला कि उत्पादकों से बिजली खरीदने वाली भारत की ज्यादातर राज्य वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) बड़े पैमाने पर वित्तीय चुनौतियों का सामना कर रही थीं और जिन ग्राहकों की वे सेवा करती हैं उनके लिए या तो पर्याप्त बिजली की खरीद में या अपने बेहद पुराने वितरण नेटवर्क का उन्नयन करने में असमर्थ थीं जिसे आधुनिकीकरण की जरूरत थी।
इन डिस्कॉम का बकाया ऋण 2011-12 के 2.4 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2014-15 में करीब 4.3 लाख करोड़ रुपये तक होने का अनुमान था जिसमें 14-15 प्रतिशत की ऊंची ब्याज दरें भी शामिल थीं। यह भी अनुमान लगाया गया था कि डिस्कॉम हर साल 60,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान झेलती हैं। इसलिए मिशन 24×7 ‘सभी के लिए किफायती बिजली’ के अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने के लिए सबसे पहला और जरूरी काम था इन डिस्कॉम में सुधार करना जो पूरी ऊर्जा मूल्य श्रंखला में सबसे कमजोर कड़ी के रूप में पहचानी गई हैं। ठीक उसी समय यह भी महसूस किया गया कि बिजली चूंकि एक समवर्ती विषय है इसलिए किसी भी योजना को किसी राज्य पर थोपा नहीं जा सकता है और यह वैकल्पिक होनी है। लेकिन इसी दौरान इसे काफी फायदेमंद बना दिया जाए तो इनमें राज्यों की सक्रिय भागीदारी दिखेगी।इसके परिणामस्वरूप नवंबर 2015 में राज्य वितरण कंपनियों में वित्तीय और परिचालन बदलाव के लिए‘उदय’ या ‘उज्जवल डिस्कॉम आश्वासन योजना’ का शुभारंभ हुआ। उदय योजना इन बीमार डिस्कॉम को अगले तीन साल में लाभदायक बनने के लिए एक स्पष्ट रूपरेखा और अवसर प्रदान करती है। वर्तमान में इस योजना के वैकल्पिक होने के बावजूद 20 राज्यों ने इसमें शामिल होने की सहमति दे दी है। इनमें से राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ , झारखंड, पंजाब, बिहार , हरियाणा, गुजरात , उत्तराखंड, कर्नाटक, गोवा, जम्मू एवं कश्मीर और आंध्र प्रदेश जैसे 13 राज्यों ने पहले से ही केन्द्र सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर लिए हैं।वर्ष 2015-16 में 99,541 करोड़ रुपये मूल्य के बॉन्ड भागीदार राज्यों ने जारी किए थे ताकि राज्यों के बकाया ऋण और झारखंड व जम्मू एवं कश्मीर की बकाया सीपीएसयू देय राशि का 50 प्रतिशत कम किया जा सके। इसके अलावा 11,524 करोड़ रुपये मूल्य के डिस्कॉम बॉन्ड भी जारी किए गए थे। वर्ष 2016-17 में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पंजाब द्वारा 48,391 करोड़ रुपये मूल्य के बॉन्ड जारी किए गए हैं।
इसके साथ ही आर्थिक और संचालन के लिहाज से स्वस्थ डिस्कॉम अधिक बिजली की आपूर्ति करने की स्थिति में होंगी। बिजली की ऊंची मांग का मतलब होगा बिजली की प्रति यूनिट कम लागत जिसका अर्थ होगा उपभोक्ताओं के लिए प्रति यूनिट बिजली की कम लागत।एक ओर जहां उदय योजना के परिणामों को देखने में कुछ समय लगेगा, सरकार समानांतर रूप से ईंधन की कमी को दूर करती दिख रही है ताकि अटके गैस आधारित संयंत्रों को पुनर्जीवित किया जा सके। बैंकों से भी संपर्क किया गया है कि वे इन संयंत्रों को पुनर्जीवित करने के लिए इक्विटी ला सकें।
ऊर्जा दक्षता के उपाय
सरकार द्वारा शुरू किए गए सुधारों की कहानी अधूरी ही रहेगी अगर हम ऊर्जा दक्षता उपायों की सफलता पर बात नहीं करेंगे। जितनी बिजली हम बचाते हैं, वो उतनी ही उत्पन्न करने के समान है, ऐसे में इस सरकार ने ऊर्जादक्षता उपायों के माध्यम से जो उल्लेखनीय प्रगति की है उसका कोई भी अनुमान लगा सकता है।सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी एनर्जी एफिशियंसी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएसएल) जो पहले करीब 6 लाख एलईडी बल्ब हर साल उपलब्ध करवाती थी वो अब 8 लाख बल्ब रोज उपलब्ध कर रही है जो हर मानक के लिहाज से एक कीर्तिमान है। ईईएसएल के नेतृत्व वाले ‘सभी के लिए सस्ती एलईडी ‘ कार्यक्रम में सीएफएल बल्ब/लैंप के स्थान पर एलईडी बल्ब लगाने का काम शामिल है ताकि ऊर्जा बचे और ग्राहकों के बिल को कम किया जा सके।
ग्रामीण क्षेत्रों का सशक्तिकरण
इस सरकार की एक और अभिनव योजना है सिम सक्षम, मोबाइल फोन से जुड़े स्मार्ट ऊर्जा कुशल कृषि पंपोंका किसानों में वितरण जो पुराने कृषि पंपों का स्थान ले सकें।ये स्मार्ट कृषि पंप भारतीय किसान को यह लाभ देते हैं कि वे अपने घरों में आराम में बैठ सकते हैं और वहीं से मोबाइल फोन के माध्यम से पंप संचालित कर सकते हैं। ईईएसएल द्वारा शुरू की गई अन्य पहल हैं ऊर्जा कुशलपंखे, ट्यूब लाइट और एयर कंडीशनर का वितरण। अपने लोगों और खासकर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के सशक्तिकरण के काम को प्रधानमंत्री द्वारा अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में पहचाना गया है। स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने1000 दिन के भीतर यानी 1 मई 2018 तक भारत के शेष 18,452 अविद्युतीकृत गांवों का विद्युतीकरण करने की योजना की घोषणा की थी। ऊर्जा मंत्रालय ने इस परियोजना को मिशन मोड में लेने और प्रधानमंत्री द्वारा तय की गई समय सीमा से एक साल पहले ही गावों के विद्युतीकरण के लिए एक रणनीति निर्धारित करने का फैसला लिया है।
कुल 8,681 गांवों का आज तक (3 जुलाई, 2016) विद्युतीकरण किया जा चुका है और बाकी बचे 9,771 गांवोंमें से 479 गांव निर्जन हैं, 6,241 गांवों का विद्युतीकरण ग्रिड के माध्यम से किया जाना है, 2,727 गांवों का विद्युतीकरण बिना ग्रिड के जरिए किया जाना है जहां भौगोलिक बाधाओं के कारण ग्रिड उपाय पहुंच से परे हैं और 324 गांवों का विद्युतीकरण राज्य सरकारों द्वारा किया जाना है। इस प्रगति को और तेज करने के लिए ग्राम विद्युत अभियंता (जीवीए) के माध्यम से करीबी निगरानी की जा रही है और ऐसे गांवों की पहचान करते हुए जहां प्रगति में देरी हो रही है राज्य डिस्कॉम में कई कार्यवाहियां की जा रही हैं।
शुरू में इस सरकार के विचार, पहल और वायदे सच होने से ज्यादा कल्पना ही लग रहे थे लेकिन जैसे-जैसे समय बीता है ये सपने वास्तविकता में परिवर्तित हो चुके हैं और अगर चीजें अभी ऐसी दिख रही हैं तो लेखिका कल्पना ही कर सकती है कि अंतिम परिणाम कैसा होगा और वह बस इतना ही कह सकती है, “मैं जो देख रही हूं मुझे अच्छा लग रहा है।”
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, यह लेख पी आई बी की वेब साईट पर 19 जुलाई को प्रकाशित हुआ था)