आओ-आओ कहें वसंत धरती पर, लाओ कुछ गान प्रेमतान
लाओ नवयौवन की उमंग नवप्राण, उत्फुल्ल नई कामनाएं घरती पर
कालजयी रचनाकार रवींद्रनाथ टैगोर की उक्त पंक्तियां वसंत ऋतु के महत्व को दर्शाती हैं। प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में ऋतुओं का विशेष महत्व रहा है। इन ऋतुओं ने विभिन्न प्रकार से हमारे जीवन को प्रभावित किया है। ये हमारे जन-जीवन से गहरे से जुड़ी हुई हैं। इनका अपना धार्मिक और पौराणिक महत्व है। वसंत ऋतु का भी अपना ही महत्व है। भारत की संस्कृति प्रेममय रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण वसंत पंचमी का पावन-पर्व है। वसंत पंचमी को बसंतोत्सव और मदनोत्सव भी कहा जाता है। प्राचीन काल में स्त्रियां इस दिन अपने पति की कामदेव के रूप में पूजा करती थीं, क्योंकि इसी दिन कामदेव और रति ने सर्वप्रथम मानव हृदय में प्रेम और आकर्षण का संचार किया था। यही प्रेम और आकर्षण दोनों के अटूट संबंध का आधार बना; संतानोत्पत्ति का माध्यम बना।
वसंत पंचमी का पर्व माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है, इसलिए इसे वसंत पंचमी कहा जाता है। माघ माह की अनेक विशेषताएं हैं। इस माह को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। भारत सहित कई देशों में यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन घरों में पीले चावल बनाए जाते हैं, पीले फूलों से देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। महिलाएं पीले कपड़े पहनती हैं। बच्चे पीली पतंगे उड़ाते हैं। विद्या के प्रारंभ के लिए ये दिन शुभ माना जाता है। कलाकारों के लिए इस दिन का विशेष महत्व है।
प्राचीन भारत में पूरे वर्ष को जिन छह ऋतुओं में विभाजित किया जाता था, उनमें वसंत जनमानस की प्रिय ऋतु थी। इसे मधुमास भी कहा जाता है। इस दौरान सूर्य कुंभ राशि में प्रवेश कर लेता है। इस ऋतु में खेतों में फ़सलें पकने लगती हैं, वृक्षों पर नये पत्ते आ जाते हैं। आम पर की शाख़ों पर बौर आ जाता है। उपवनों में रंग-बिरंगे पुष्प खिलने लगते हैं। चारो ओर बहार ही बहार होती है। रंग-बिरंगी तितलियां वातावरण को और अधिक सुंदर बना देती हैं।
ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए उल्लेख किया गया है – प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है, उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। मान्यता है कि वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती पूजा करने और व्रत रखने से वाणी मधुर होती है, स्मरण शक्ति तीव्र होती है, प्राणियों को सौभाग्य प्राप्त होता है तथा विद्या में कुशलता प्राप्त होती है।
वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ मास के पांचवे दिन महोत्सव का आयोजन किया जाता था। इस उत्सव में भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा होती थी। शास्त्रों में वसंत पंचमी को ऋषि-पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। पौराणिक मान्यता है कि सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों की रचना की, परंतु इससे वे संतुष्ट नहीं थे। भगवान विष्णु ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, वैसे ही संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती के नाम से पुकारा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। वे विद्या और बुद्धि प्रदान करती हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वे संगीत की देवी कहलाईं। वसंत पंचमी को उनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए उल्लेख किया गया है – प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है, उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। मान्यता है कि वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती पूजा करने और व्रत रखने से वाणी मधुर होती है, स्मरण-शक्ति तीव्र होती है, प्राणियों को सौभाग्य प्राप्त होता है तथा विद्या में कुशलता प्राप्त होती है।
पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी। इस तरह भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी। त्रेता युग में जिस दिन श्रीराम शबरी मां के आश्रम में पहुंचे थे, वह वसंत पंचमी का ही दिन था। श्रीराम ने भीलनी शबरी मां के जूठे बेर खाए थे। गुजरात के डांग जिले में जिस स्थान पर शबरी मां का आश्रम था, वहां आज भी एक शिला है। लोग इस शिला की पूजा-अर्चना करते हैं। बताया जाता है कि श्रीराम यहीं आकर बैठे थे। इस स्थान पर शबरी माता का मंदिर भी है, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
वसंत पंचमी के दिन मथुरा में दुर्वासा ऋषि के मंदिर पर मेला लगता है। सभी मंदिरों में उत्सव एवं भगवान के विशेष शृंगार होते हैं। वृंदावन के श्रीबांके बिहारीजी मंदिर में बसंती कक्ष खुलता है। शाह जी के मंदिर का वसंती कमरा प्रसिद्ध है। मंदिरों में वसंती भोग रखे जाते हैं और वसंत के राग गाये जाते हैं। वसंत पंचमी से ही होली गाना शुरू हो जाता है। ब्रज का यह परम्परागत उत्सव है।
इस दिन हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के पौराणिक नगर पिहोवा में सरस्वती की विशेष पूजा-अर्चना होती है। पिहोवा को सरस्वती का नगर भी कहा जाता है, क्योंकि यहां प्राचीन समय से ही सरस्वती सरिता प्रवाहित होती रही है। सरस्वती-सरिता के तट पर इस क्षेत्र में अनेक प्राचीन तीर्थ-स्थल हैं। यहां सरस्वती-सरिता के तट पर विश्वामित्र जी ने गायत्री छंद की रचना की थी। पिहोवा का सबसे मुख्य तीर्थ सरस्वती घाट है, जहां सरस्वती नदी बहती है। यहां देवी सरस्वती का अति प्राचीन मंदिर है। इन प्राचीन मंदिरों में देशभर के श्रद्धालु आते हैं। यहां भव्य शोभा-यात्रा निकलती है।
इस ऋतुराज वसंत में प्राकृतिक सुषमा अपने चरमोत्कर्ष पर होती है। हिंदी साहित्य में छायावादी युग के महान स्तंभ सुमित्रानंदन पंत वसंत की इसी प्राकृतिक सुषमा का मनोहारी वर्णन करते हुए कहते हैं-
चंचल पग दीपशिखा के धर
गृह मग वन में आया वसंत।
सुलगा फागुन का सूनापन
सौंदर्य शिखाओं में अनंत।
सौरभ की शीतल ज्वाला से
फैला उर-उर में मधुर दाह
आया वसंत भर पृथ्वी पर
स्वर्गिक सुंदरता का प्रवाह।
वसंत पंचमी हमारे जीवन में नव ऊर्जा का संचार करती है। ये निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। जिस तरह वृक्ष पुराने पत्तों को त्याग कर नये पत्ते धारण करते हैं, ठीक उसी तरह हमें भी अपने अतीत के दुखों को त्याग कर आने वाले भविष्य के स्वप्न संजोने चाहिए। जीवन निरंतर चलते रहने का नाम है, ऋतुराज वसंत यही शिक्षा हमें देता है।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्ववद्यालय में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)