प्रधानमंत्री को पूरे देश की चिंता है एवं वे लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग के इस दौर में भावनात्मक रूप से जोड़कर रखने का काम कर रहे हैं। यूँ भी इस व्याधि से लड़ने के लिए सावधानी के साथ-साथ एकता और सकारात्मकता की भी बराबर आवश्यकता है। सकारात्मक रहते हुए लॉकडाउन का पालन करके ही इस महामारी को मात दी जा सकती है।
कोरोना की इस वैश्विक आपदा के दौर में बीते 5 अप्रैल को देश एक विराट और अनूठे आयोजन का साक्षी बना। हर वर्ष दीपावली के अवसर पर ही घरों में दीये जलते हैं, लेकिन इस बार दीपावली के पहले ही घर-घर दीयों की रोशनी नजर आई, इसलिए यह अनूठा आयोजन था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आहृवान पर देशवासियों ने अपने घरों, बालकनी, आंगन, देहरी पर दीये जलाए और कोरोना से लड़ाई के इस मुश्किल दौर में एकजुटता का संदेश दिया।
देश में कोरोना के बढ़ते खतरे को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने गत 24 मार्च को 21 दिवसीय लॉकडाउन की घोषणा की थी। इसके एक सप्ताह बाद वे टीवी पर देशवासियों के सम्मुख आए और 5 अप्रैल को रात 9 बजे से 9 मिनट तक अपने घरों की लाइटें बंद करके दीये जलाने की अपील की। यह एक प्रकार से सांकेतिक घटना है लेकिन इसके अर्थ गहरे हैं।
इस समय देश में हर व्यक्ति, हर परिवार कोरोना महामारी से भयभीत है। प्रतिदिन संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में मोदी ने सकारात्मक पहल करते हुए अवाम को एक आयोजन के बहाने एकजुट होने, आगे आने और अंधेरे के खिलाफ अपनी शक्ति दिखाने का एक मंच उपलब्ध कराया। इस गतिविधि के लिए देशवासी पूरी तरह से तैयार और उत्साहित थे। अपने वीडियो संदेश में प्रधानमंत्री ने लोगों से सहयोग मांगा था और कहा था कि इस महामारी के खिलाफ जो लड़ाई है, वह किसी देश की नहीं, बल्कि पूरी मानवता की है। सामूहिक शक्ति का अहसास कराके इस जंग को जीता जा सकता है। इसीलिए इस शक्ति को जताना जरूरी है।
समानांतर रूप से लॉकडाउन के दौरान घरों में कैद लोग मायूस और निराश न हो जाएं, इसलिए उनके उत्साहवर्धन के लिए भी इस प्रकार का आयोजन जरूरी था। इस छोटी सी गतिविधि ने देश में एक बार फिर से प्राण फूंक दिए और दिखा दिया कि बुरे समय में भी सकारात्मक सोच को बनाए रखकर उत्साह का परिचय दिया जा सकता है। इससे पहले गत 22 मार्च को भी प्रधानमंत्री की अपील पर देश में जनता कर्फ्यू लगा था। यह ऐच्छिक था लेकिन इसका पूरी अवाम ने शत-प्रतिशत पालन किया था। सड़कों पर सन्नाटा था और लोग स्वेच्छा से घरों में थे।
इसी दिन शाम को 5 बजते ही देश भर में तालियों, थालियों व घंटियों को बजाने का सामूहिक क्रम आरंभ हुआ और इसकी गूंज सभी शहरों में सुनाई दी। पूरे विश्व ने इस अनूठे प्रयोग को सराहा और इस आयेाजन में अंर्तनिहित भावना को पहचानते हुए उसकी सराहना की जो इस कठिन दौर में भी एकजुट होने का संदेश देती है।
इसी क्रम में दीये जलाने की गतिविधि को सकारात्मकता और एकजुटता के प्रकाश का पर्व कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि इसका उद्देश्य कोरोना से उपजे भय और नकारात्मकता के अंधकार से लड़ने का ही था। इस पूरे आयोजन में एक बात गौर करने योग्य रही कि घरों में अलग-थलग पड़े या नीरसता का शिकार हो चुके लोगों में भी उत्साह और उमंग का संचार हो गया। इस सूक्ष्म बात को प्रधानमंत्री मोदी ने बखूबी पहचाना।
शायद इसीलिए उन्होंने अपने वीडियो संदेश में इस बात भी जोर देकर कहा था कि कुछ लोगों को लग रहा होगा कि वे अकेले क्या करेंगे। इतनी बड़ी लड़ाई से देश कैसे लड़ेगा। आखिर इसी प्रकार और कितने दिन गुज़ारना होंगे। लेकिन सबसे बड़ी बात तो यही है कि अगर हम घरों में हैं तो सुरक्षित हैं। कोई भी खुद को अकेला ना समझे। यह देश के पूरे 130 करोड़ लोगों की सामूहिक एकजुटता को परिलक्षित करने की बेला है। उनकी मंशा के अनुरूप ही यह आयोजन सफल रहा। देश के हर आम व खास आदमी ने अपने घर पर दीप जलाए और कोरोना से लड़ाई में व्यक्तिगत भागेदारी सुनिश्चित की।
यह इस बात का भी संकेत है कि प्रधानमंत्री को पूरे देश की चिंता है एवं वे लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग के इस दौर में भावनात्मक रूप से जोड़कर रखने का काम कर रहे हैं। यूँ भी इस व्याधि से लड़ने के लिए सावधानी के साथ-साथ एकता और सकारात्मकता की भी बराबर आवश्यकता है। सकारात्मक रहते हुए लॉकडाउन का पालन करके ही इस महामारी को मात दी जा सकती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)