विगत दिनों वरिष्ठ टीवी पत्रकार अर्नब गोस्वामी द्वारा मीडिया के एक धड़े को ‘एंटी नेशनल’ कहा गया था, जिसके बाद बरखा दत्त आदि कई बड़े पत्रकार अर्नब के खिलाफ लामबंद नज़र आए। अर्नब ने किसीका नाम नहीं लिया था, लेकिन जिस तरह से उनके खिलाफ ये पत्रकार खड़े दिखे, उससे सवाल उठता है कि क्या ये स्वयं को एंटी नेशनल’ मानते हैं? इसी संदर्भ में युवा पत्रकार विश्व गौरव ने बरखा दत्त के नाम एक खुला ख़त लिखते हुए उनसे कुछ सवाल पूछे हैं: सम्पादक
बरखा जी, आशा है राष्ट्रवाद और निष्पक्षता की बहस को नए आयाम देने के लिए आपका अध्ययन जारी होगा। मैडम, हाल ही में आपके द्वारा की गई फेसबुक पोस्ट को पढ़ा। उसे पढ़कर मन में एक सवाल उठा कि आप और आपके कुनबे के लोग पहले भारतीय हैं या पत्रकार? आपको शर्म आती है, क्योंकि एक पत्रकार स्वयं को पहले भारतीय कहता है। लेकिन आपको पता है, मुझे गर्व होता है कि मैं उस पेशे से जुड़ा हूं जहां ऐसे लोग हैं जो राष्ट्र को सर्वोपरि मानते हैं। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है और वह लोकतंत्र, भारत का लोकतंत्र है। फिर आखिर क्यों हम ‘भारतीय पत्रकार’ नहीं हो सकते?
मोहतरमा, समस्या यह नहीं है कि आपको हाफिज सईद जानता है। समस्या यह है कि वह कहता है, ‘भारत में एक तबका ऐसा है जो पाकिस्तान के खिलाफ जहर उगलता है, लेकिन वहां बरखा दत्त जैसे अच्छे लोग भी शामिल हैं। कांग्रेस में भी अच्छे लोग हैं जिन्होंने कहा है कि पाकिस्तान पर इल्जाम लगाने की जगह अपने अंदर झांककर देखना चाहिए।’ मुझे पता है कि आप भी उससे उतनी ही नफरत करती हैं जितनी मैं करता हूं, लेकिन अगर आपको वह ‘अच्छा’ समझता है तो जाहिर है, उसको आपसे कुछ तो सकारात्मक ऊर्जा मिलती ही होगी। कहीं न कहीं आपके ‘कर्मों’ से वह एक सीमा तक आपको स्वयं के करीब पाता होगा। अब अगर एक आतंकवादी, जिसे आप जेल में देखना चाहती हैं, आपको अपने नजरिए से अच्छा कहता है, तो क्या आपको अपने ‘कर्मों’ पर चिंतन नहीं करना चाहिए?
मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हाफिज सईद जैसा कोई आतंकवादी आपको जानता है। आप बड़ी पत्रकार हैं, स्वाभाविक है कि सभी तरह के लोग आपको जानते होंगे। अब आप अपने पीएम साहब को ही ले लीजिए, उनको भी तो हाफिज सईद जानता है। इसमें इतना हो-हल्ला मचाने वाली क्या बात है ? मोहतरमा, समस्या यह नहीं है कि आपको हाफिज सईद जानता है। समस्या यह है कि वह कहता है, ‘भारत में एक तबका ऐसा है जो पाकिस्तान के खिलाफ जहर उगलता है, लेकिन वहां बरखा दत्त जैसे अच्छे लोग भी शामिल हैं। कांग्रेस में भी अच्छे लोग हैं जिन्होंने कहा है कि पाकिस्तान पर इल्जाम लगाने की जगह अपने अंदर झांककर देखना चाहिए।’ मुझे पता है, आप भी उससे उतनी ही नफरत करती हैं जितनी मैं करता हूं, लेकिन अगर आपको वह ‘अच्छा’ समझता है तो जाहिर है उसको आपसे कुछ तो सकारात्मक ऊर्जा मिलती ही होगी। कहीं न कहीं आपके ‘कर्मों’ से वह एक सीमा तक आपको स्वयं के करीब पाता होगा। तो अब अगर एक आतंकवादी, जिसे आप जेल में देखना चाहती हैं, वह आपको अपने नजरिए से अच्छा कहता है तो क्या आपको अपने ‘कर्मों’ पर चिंतन नहीं करना चाहिए?
आपको समस्या इस बात से है कि एक पत्रकार, सरकार को उपदेश देता है कि मीडिया के कुछ धड़ों को बंद कर देना चाहिए। तो महोदया, क्या बुराई है इसमें? जब कोई नेता कुछ गलत और असंवैधानिक काम करता है तो अन्य नेता उसके विरोध में आ ही जाते हैं। हालांकि तब भी नेताओं का एक छोटा सा वर्ग गलत का समर्थन करता है, क्योंकि वह स्वयं गलत होता है और उसे पता होता है कि अगर वह चुप रहा और उसके ‘साथी’ के साथ कुछ हुआ तो उसका निपटना भी तय है। वैसे ही आपके साथ, आपके समर्थन में, आपकी ‘कैटिगरी’ के लोगों का आना स्वाभाविक है। आप और आपके साथी कश्मीर में जनमत संग्रह की बात करते हैं ना? तो एक बार अपने विचारों पर भी जनमत संग्रह करा लीजिए। मुझे पता है कि आप लोग ऐसा नहीं करा सकते क्योंकि हर रोज अपने ट्वीट्स, फेसबुक पोस्ट्स इत्यादि पर आपको आम जनता की जो प्रतिक्रिया मिलती है, उससे आपको अंदाजा हो गया होगा कि देश क्या चाहता है। अब जब आपको यह तो पता है कि देश आपको नकार चुका है, तो फिर क्यों वैश्विकता और समानता के नाम पर भारत विरोध का झुनझुना लेकर घूमते रहते हैं? और जब आप लोगों से इन सारे विषयों पर बात करो तो आप लोग कहते हो कि मोदी, पाकिस्तान से नजदीकियां क्यों बढ़ा रहे हैं? मुझे भी एनडीए सरकार आने के बाद ये चीजें नहीं भा रही थीं और मेरी पीड़ा भी आपसे ज्यादा बड़ी थी क्योंकि मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में मेरी भी ऊर्जा लगी थी। लेकिन जब शांत मन से इस विषय पर सोचा तो सरकार जो कर रही है, उससे ज्यादा बेहतर कोई अन्य रास्ता नहीं दिखा। और अगर इससे बेहतर रास्ता आपके पास है तो दीजिए… मैं, आप और हम सब एक नए विकल्प के तौर पर सरकार के सामने आपके उस ‘रास्ते’ को रखेंगे। लेकिन, आप रास्ता देंगे कहां से, आपको तो सिर्फ सरकार पर उंगली उठाना आता है और अगर आप लोग कोई रास्ता देते हैं तो वह ऐसा लगता है जैसे कोई भारतीय नहीं बल्कि एक आतंकवाद समर्थक अलगाववादी बोल रहा हो।
मोहतरमा, अरनब गोस्वामी ने तो आपका नाम कभी नहीं लिया, लेकिन उन्होंने जिन ‘ऐंटी नैशनलिस्ट जर्नलिस्ट्स’ की बात की थी, आप और आपके साथी खुद उस कैटिगरी में जाकर खड़े हो गए। बार-बार के झंझट से बचने के लिए मैं, आप और आपके समर्थकों के लिए सिर्फ 4 सवाल छोड़ रहा हूं। अगर आपकी संवाद क्षमता शून्य के स्तर तक न पहुंची हो तो सिर्फ इनका विस्तृत जवाब दे दीजिए और बाकी देश पर छोड़ दीजिए, देश स्वयं आपका और आपकी विचारधारा का स्तर तय कर लेगा।
1.कश्मीर पर देश के प्रधानमंत्री को क्या करना चाहिए?
2.पाकिस्तान पर देश की सरकार को क्या करना चाहिए?
3.आप निष्पक्ष हैं या तटस्थ?
4.आप पत्रकार पहले हैं या भारतीय?
सरकार की नीतियों पर उंगली उठाना बहुत आसान होता है, लेकिन इन सबके बीच काम करना उतना ही मुश्किल हो जाता है। मैं यह नहीं कह रहा कि मोदी सरकार सब कुछ अच्छा कर रही है, लेकिन इतना तो कह सकता हूं कि पूर्व की तुलना में बहुत कुछ अच्छा हो रहा है। और जो नहीं हो रहा है, उसे करवाने का काम एक जिम्मेदार व्यक्ति होने के नाते मेरा और आपका है। लेकिन इसके लिए लानी होगी सकारात्मक सोच, जिसका आधार भारतीयता हो।
(विश्व गौरव के ब्लॉग से साभार)