चौथे दौर का चुनाव ख़त्म हो गया है, इसके बाद सत्ताधारी दल और विपक्षी दलों ने अपना हिसाब-किताब लगा लिया होगा। कुछ पार्टियों के लिए जंग ख़त्म हो गयी है तो कुछेक पार्टियों के लिए अभी एक बड़ी लड़ाई बाकी है। दक्षिण और पश्चिम भारत में मतदान हो गया है, लेकिन अभी बड़ी लड़ाई उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और बिहार के मैदान में शेष है।
देश के मतदाता यह अच्छी तरह समझते हैं कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में क्या फर्क होता है। दोनों ही चुनावों के मुद्दे अलग-अलग होते हैं, साथ ही नेतृत्व के स्तर पर यह पता होता है कि किस दल की तरफ से अगला संभावित प्रधानमंत्री कौन हो सकता है। बीजेपी, महागठबंधन और कांग्रेस में सबसे बड़ा निर्णायक फर्क नेतृत्व को लेकर ही है और यही सबसे बड़ा निर्णायक कारक होगा अगली सरकार के निर्माण की दिशा में।
चौथे दौर का चुनाव ख़त्म हो गया है, इसके साथ ही सत्ताधारी और विपक्षी दलों ने अपना हिसाब-किताब लगा लिया होगा। कुछ पार्टियों के लिए जंग ख़त्म हो गयी है तो कुछेक पार्टियों के लिए अभी एक बड़ी लड़ाई बाकी है। दक्षिण और पश्चिम भारत में मतदान हो गया है, लेकिन अभी असली लड़ाई तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और बिहार के मैदान में शेष है।
उत्तर प्रदेश के 80 सीटों में से 39 सीटों पर मतदान संपन्न हो चुका है, लेकिन पूर्वी उत्तरप्रदेश के लिए मुकाबला अब और तेज होगा। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी बनाम महागठबंधन में ऊँट किस करवट बैठता है, गोया कि यह भी देखना ज़रूरी होगा कि कांग्रेस इस लड़ाई में कहीं है भी या नहीं? उत्तर प्रदेश में मुकाबला सीधे तौर पर महागठबंधन और बीजेपी के बीच ही है। पिछले चार दौर में कांग्रेस के लिए यह मुकाबला एक सामाजिक और राजनीतिक प्रयोग से ज्यादा कुछ भी नहीं है।
हां, राजस्थान में हुए 13 लोकसभा सीटों के लिए मतदान में नवनिर्वाचित अशोक गहलोत सरकार की प्रतिष्ठा ज़रूर दांव पर होगी। राजस्थान के रण में यह सबको पता है कि यह चुनाव संसद के लिए है, जहाँ कांग्रेस के लिए बहुत कुछ गुंजाईश नहीं बचती है। राजस्थान से बीजेपी को ज्यादा उम्मीद है क्योंकि बीजेपी का प्रदर्शन राजस्थान में 2014 में बेहतरीन रहा था, जब उसने 25 में से 25 सीटें जीत ली थी। मध्यप्रदेश में बीजेपी ने 29 में से 27सीटें जीतकर केंद्र में मोदी सरकार को लाने का रास्ता आसान कर दिया था।
वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को पता है कि विधानसभा चुनाव वाले प्रदर्शन को संसदीय चुनाव में दोहराना शायद संभव न हो सके, यह बात मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान तीनों ही राज्यों में लागू होती है जहाँ विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की सरकारें बनी हैं। इन सरकारों की साख भी दाँव पर रहेगी।
अब सबकी नज़र आने वाले शेष तीन चरणों पर हैं। कांग्रेस को इस बात को लेकर निराशा होगी कि उसके बड़े चुनावी वादे “न्याय” को अपेक्षित प्रतिसाद नहीं मिला, वो लोगों की जुबान पर नहीं चढ़ सका। अंतिम चरण से पहले ही गठबंधन ने प्रधानमंत्री के खिलाफ अपने उम्मीदवार वापस ले लिए। इससे पहले विपक्ष के लिए एक और नुकसान हुआ जब प्रियंका गांधी बनारस से लड़ने का संकेत देकर फिर पीछे हट गयीं और अपने समर्थकों का दिल दुखाया। इससे पूरे देश में यह सन्देश गया कि प्रियंका गांधी निर्णायक व साहसिक फैसले नहीं ले सकती हैं।
विपक्ष को अब जब कुछ समझ नहीं आ रहा है तो वह प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जा रहा है कि उनपर आचार संहिता उल्लंघन का मामला क्यों नहीं बनाया जाता। जाहिर है, चार चरणों के चुनावों में विपक्ष को अपनी कमजोरी का आभास हो चुका है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)