कन्हैया कुमार पर मामला चलाने की इजाज़त देने की घटना को दिल्ली हिंसा से जोड़कर भी देखा जा रहा है। खासकर आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन की हिंसा में भागीदारी ने आम आदमी पार्टी की सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। जानकार तो ऐसा भी कह रहे हैं कि कन्हैया कुमार मामले पर अनुमति इसलिए ही दी गयी कि इससे ताहिर हुसैन मामले से लोगों का ध्यान हट जाए और सरकार पर पड़ रहा दबाव कम हो जाए।
आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली में जेएनयू के पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार के खिलाफ केस चलाने की मंजूरी देकर नेक काम किया है, लेकिन यह फैसला लेने में हुई देरी पर सवाल भी उठ रहे हैं। कन्हैया कुमार सहित अन्य 10 छात्रों पर आरोप था कि इन लोगों ने संसद पर हमले के दोषी अफज़ल गुरु को सजा दिए जाने के विरोध में भारत विरोधी नारे लगाए थे। यह मामला 2016 में सुर्ख़ियों में आया क्योंकि इस घटना के बाद कन्हैया कुमार को आम आदमी पार्टी और लेफ्ट समेत कांग्रेस के नेताओं का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष समर्थन मिलता रहा।
कई मौकों पर तो अरविन्द केजरीवाल ने कन्हैया कुमार का सोशल मीडिया पर समर्थन भी किया। लेकिन घटना के चार साल बाद आम आदमी पार्टी कन्हैया कुमार के खिलाफ केस चलाने की मंजूरी देकर क्या हासिल करना चाहती है? प्रश्न यह है कि अचानक केजरीवाल का कन्हैया कुमार को लेकर ह्रदय परिवर्तन क्यों हुआ?
दिल्ली पुलिस ने तो अपनी तरफ से कन्हैया कुमार और उसके साथियों के खिलाफ भारत विरोधी नारे लगाने को लेकर पटियाला कोर्ट में जनवरी 14, 2019 को चार्ज शीट दाखिल किया था, लेकिन दिल्ली सरकार की अनुमति के बगैर मामला आगे नहीं ले जाया जा सकता था। दिल्ली की अदालत ने केजरीवाल सरकार को साफ़ साफ़ कहा था कि सरकार की ढिलाई की वजह से अदालत का वक़्त बर्बाद हो रहा है, क्योंकि अदालत में इस मामले को बार बार सूचीबद्ध और स्थगित किया जाता रहा था।
ज़ाहिर है, सालों तक फाइल पर बैठे रहने के बाद अब मंजूरी देने के अलावा सरकार के पास और कोई रास्ता बचा भी नहीं था, अन्यथा सरकार इसको और लम्बी अवधि तक टाल सकती थी। दिल्ली की आम आदमी पार्टी को कन्हैया कुमार और उनके साथियों की फाइल को पढ़ने में सालों लग गए, यह हास्यास्पद ही लगता है।
कन्हैया कुमार पर मामला चलाने की इजाज़त देने की घटना को दिल्ली हिंसा से जोड़कर भी देखा जा रहा है। खासकर आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन की हिंसा में भागीदारी ने आम आदमी पार्टी की सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है।जानकार तो ऐसा भी कह रहे हैं कि कन्हैया कुमार मामले पर अनुमति इसलिए ही दी गयी कि इससे ताहिर हुसैन मामले से लोगों का ध्यान हट जाए और सरकार पर पड़ रहा दबाव कम हो जाए।
दिल्ली में देशविरोधी घटनाओं की बढ़ोत्तरी को कहीं न कहीं जेएनयू के हिंसक प्रदर्शनों से जोड़ कर देखा जाता है। जेएनयू में हो रही हिंसक घटनाओं ने न सिर्फ़ एक विश्वविद्यालय की छवि को धूमिल किया है बल्कि आज़ादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता के नाम पर दिल्ली में शांति और व्यवस्था को भी खतरा पैदा हुआ है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार को इस बार भी बहुमत हासिल हुआ लेकिन दिल्ली में हुई हालिया हिंसक घटनाओं के बाद कई परतें भी खुली हैं। न्याय का चक्र चल पड़ा है, अब बगैर देरी किये ट्रायल को पूरा करना चाहिए क्योंकि अगर कन्हैया कुमार और उनके साथी वाकई देश विरोधी गतिविधियों को हवा देने में लगे हुए थे, तो उनको इसकी कड़ी से कड़ी सजा देकर एक नज़ीर कायम करनी चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)