गुहा मोदी की नीतियों का विरोध करते रहे हैं चाहें वह जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने का प्रश्न हो या सीएए का मसला हो। लेकिन यह अचरज भरा घटनाक्रम है कि मोदी विरोध करते-करते गुहा गुजरात विरोध पर उतर आए हैं। सवाल है कि क्या वे यूपीए शासन के दौरान मिले पद्मभूषण के ऋण से उऋण होने के लिए इतने छटपटा रहे थे कि इस तरह अपनी निष्ठा सिद्ध करने चल पड़े?
रामचंद्र गुहा इतिहास के जानकार माने जाते हैं, खुद को महात्मा गांधी का अनुयायी कहते हैं, लेकिन उसी गुजरात, जहाँ गांधी का जन्म हुआ था, को निशाना बनाने में लगे हैं। गुजरात को सांस्कृतिक तौर पर पिछड़ा कहकर फजीहत कराने के बाद अब गुहा इससे साफ बच निकलने के लिए रास्ता भी खोज रहे हैं। लेकिन सवाल है कि आखिर गुजरात के खिलाफ लिखकर वह क्या हासिल करना चाहते हैं?
गुहा ने अपने ट्वीट के ज़रिये गुजरात पर हमला करने के लिए एक ब्रिटिश चिंतक फिलिप स्प्रेट के उस कथन का सहारा लिया जो उन्होंने गुजरात के बारे में 1939 में कहा था।
“Gujarat, though economically advanced, is culturally a backward province… Bengal in contrast is economically backward but culturally advanced.”
अव्वल तो सामान्य ज्ञान की बात ये है कि गुजरात तो 1939 में बना ही नहीं था, गुजरात की नींव तो 1960 में पड़ी। 1960 से पहले तो गुजरात वृहद महाराष्ट्र का ही हिस्सा था। ऐसे में उस दौर के एक तथाकथित विद्वान् के कथन को उद्धृत करने के पीछे गुहा की मंशा क्या रही होगी? क्या गुहा ने किसी के इशारे पर ऐसा किया होगा? कई सवाल जेहन में तैर रहे हैं, जिनका जवाब जानना ज़रूरी है।
हो सकता है कि गुहा को गुजरात पसंद न हो, लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि वो उस राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि पर ही सवाल उठा दें। गुहा को जानना चाहिए कि इसी गुजरात ने दुनिया को धार्मिक सहिष्णुता, अहिंसा और सत्याग्रह का सन्देश देने वाले गांधी को जन्म दिया है, जिनको आधार बनाकर वे दशकों तक अपना जीविकोपार्जन करते रहे। ऐसे में, आज अचानक उन्हें यह ख्याल आ कैसे सकता है कि गुजरात की संस्कृति दोयम दर्जे की हो गई है।
ऐसा कहकर वह गुजरात की सोच, गुजरातियों की बुद्धिमता, उनकी संस्कृति, धरोहर, उनकी पूजा पद्धति, उनके पहरावे, उनके सांस्कृतिक त्यौहार, इतिहास, सबपर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं। आखिर क्यों?
दरअसल रामचंद्र गुहा लुटियन दिल्ली में रहने वाले तथाकथित प्रगतिशील लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, उनकी सोच का पोषण करते हैं। सो गुहा ने बेवजह यह तूफ़ान खड़ा नहीं किया होगा, सोच समझकर ही किया होगा, लेकिन सोशल मीडिया में उनकी यह चाल लोगों को बहुत जल्दी समझ आ गई, इस वजह से कांग्रेस को भी गुहा के खिलाफ खड़ा होना पड़ा।
रामचंद्र गुहा कैसे ये भूल गए कि गुजरात में ही नरसी मेहता जैसे महान कवियों का जन्म होता है, जो दुनिया को शांति का मार्ग दिखाते हैं, उनका भजन “वैष्णव जन तो तेने कहिये” आज देश में बच्चा-बच्चा गाता है और यहाँ तक कि ये गांधी जी के भी प्रिय भजन के रूप में मान्य है।
गुहा को ये याद क्यों नहीं रहता कि आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक तथा आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती टंकारा की जिस भूमि में पैदा हुए थे, वो गुजरात में ही है। गुजरात के पास अपनी भाषा, साहित्य, नृत्य, संगीत, खान-पान, परिधान सबकुछ है और इतना है कि उसकी सांस्कृतिक समृद्धि पर पूरी पुस्तक लिखी जा सकती है।
आपको समझना पड़ेगा कि गुहा जैसे लोग अगर कुछ लिखते हैं, तो उसके पीछे कुछ न कुछ मकसद होता है। यह सियासी भी सकता है, इसके कई मायने हो सकते हैं।
मसलन एक ट्वीट के ज़रिये वो गुजरात और पश्चिम बंगाल को आमने-सामने करना चाहते हैं, उनको लगता है कि इससे उनको वामपंथी विचारधारा वाले लोगों का समर्थन मिल जायेगा। लेकिन संयोगवश इस मसले पर उनको न तो वामपंथियों का समर्थन मिलता है और न ही कांग्रेस का। बल्कि कांग्रेस नेता अहमद पटेल उलटे उनको गुजरात की सांस्कृतिक विरासत के बारे में पाठ पढ़ा जाते हैं।
गुहा मोदी की नीतियों का विरोध करते रहे हैं चाहे वह जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने का प्रश्न हो या सीएए का मसला हो। यह अचरज भरा घटनाक्रम है कि मोदी विरोध करते-करते गुहा गुजरात विरोध पर उतर आए। सवाल है कि क्या वे यूपीए शासन के दौरान मिले पद्मभूषण के ऋण से उऋण होने के लिए छटपटा रहे थे कि इस तरह अपनी निष्ठा सिद्ध करने चल पड़े?
गुहा की कुंठा दरअसल इस बात से उपज रही है कि गुजरात के दो नेता देश की राजनीति के शीर्ष पर कैसे हैं? इसलिए वह एक इतिहासकार के चोले से बाहर निकलकर एक एक्टिविस्ट के स्वरूप में आ जाते हैं।
गुहा के लिए फिलिप स्प्रैट आदर्श हो सकते हैं, जिनको भारत में मार्क्सवादी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए भेजा गया था और जिन्हें 1929 में मेरठ में षडयंत्र के लिए जेल भी जाना पड़ा था।
जेल से बाहर आने के बाद, अपने जीवनकाल में ही स्प्रैट कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ प्रचार करने लगे थे। वही स्प्रैट बाद में नेहरु की नीतियों के मुखर विरोधी भी बने। गुहा को संपूर्ण सत्य बताना चाहए था।
बहरहाल, यह सिद्ध बात है कि गुहा का ये गुजरात विरोध उनके मोदी विरोधी एजेंडे का ही विस्तार है। लेकिन जिस तरह मोदी विरोध करते हुए उनके तथ्य-तर्क अबतक एकदम हल्के और कमजोर साबित होते आए हैं, गुजरात विरोध में भी वही हो रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)