नक्सलवाद हमेशा से विकास की राह में बाधा बनता आ रहा है। नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सली अक्सर विकास कार्य में बाधा खड़ी करते आए हैं। सड़कें खोद देना, पटरियां उखाड़ना, निर्माण उपकरण जला देना, पुलिस बलों को मारना इनकी हरकतों में शामिल रहा है। ऐसे में आज जब मोदी देश में विकास का एजेंडा लेकर चल रहे हैं, तो नक्सलियों के साथ ही यह उन तत्वों को भी नहीं सुहा रहा है जो कि नक्सलवादी सोच रखते हैं। मोदी की हत्या की साजिश रचे जाने का यह प्रमुख कारण प्रतीत होता है।
बीते सप्ताह प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश का मामला चर्चा में रहा। यदि इस मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई होती तो इस मामले को अटकल ही समझा जाता। लेकिन अब चूंकि आरोपी पकड़े जा चुके हैं, साजिश का पत्र सामने आ चुका है, ऐसे में इस पर संदेह करने का अब कोई कारण नहीं बनता है।
यह मामला इस साल जनवरी को पुणे के नजदीक भीमा कोरेगांव में भड़के जातिवादी दंगों से जुड़ा है, इसलिए अब इस पर राजनीति शुरू हो गई है। मामले की पृष्ठभूमि जो भी हो लेकिन अहम सवाल तो यही है कि आखिर कौन लोग हैं जिन्हें पीएम मोदी फूटी आंख नहीं सुहा रहे और वे मोदी के शासन को पचा नहीं पा रहे हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि पीएम मोदी के कार्यकाल में भारत ने पूरे विश्व भर में कामयाबी और लोकप्रियता की नई ऊंचाई को छुआ है। प्रधानमंत्री किसी दल विशेष का नहीं, बल्कि देश का होता है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ साजिश करने का अर्थ देश के खिलाफ साजिश करना ही कहलाएगा। पुलिस ने इस मामले में छह राज्यों में छापामार कार्रवाई करते हुए पांच माओवादी बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार किया है। प्रतिबंधित माओवादी संगठन और नक्सलियों से इनके तार जुड़े होने की बात पुलिस द्वारा कही जा रही।
इसमें कोई नई बात नहीं है कि नक्सलवाद हमेशा से विकास की राह में बाधा बनता आ रहा है। नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सली अक्सर विकास कार्य में बाधा खड़ी करते आए हैं। सड़कें खोद देना, पटरियां उखाड़ना, निर्माण उपकरण जला देना, पुलिस बलों को मारना इनकी हरकतों में शामिल रहा है।
ऐसे में आज जब मोदी देश में विकास का एजेंडा लेकर चल रहे हैं तो नक्सलियों के साथ ही यह उन तत्वों को भी नहीं सुहा रहा है जो कि नक्सलवादी सोच रखते हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा इन गिरफ्तारियों का विरोध करना इस ओर इशारा करता है कि उसे भी इनकी मंशा से कोई आपत्ति नहीं है। कांग्रेस की तरफ से भी इन गिरफ्तारियों पर खुद उसके अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा सवाल उठाए गए हैं।
बीते चार वर्षों में केंद्र सरकार की कोई भी खामी नहीं पकड़ पाए विपक्षी दल अब अपनी बौखलाहट के चरम पर पहुंच चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तर्ज पर मारे जाने की साजिश रचने के पीछे यह दुर्दांत वामपंथी विचार काम कर रहा है कि यदि विरोधी का सामना नहीं कर सको तो उसे रास्ते से ही हटा दो।
क्या विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में पूर्ण बहुमत से जीतकर सत्ता में आए प्रधानमंत्री को मारने का विचार कोई मामूली बात है। मोदी विरोधियों का हीनता बोध क्या अब इतना बढ़ गया है कि वे अपराधी बनने की ओर बढ़ने लगे हैं? हैरत की बात है कि प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश के आरोपियों की गिरफ्तारी को तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ता गलत ठहराते हैं, तो क्या इसका यह अर्थ हुआ कि हत्या की साज़िश रचना उचित है?
गिरफ्तारियों का विरोध करने वाले सभी पक्षों को एक बात गंभीरता से समझ लेनी चाहिये कि अराजकता और हिंसा के लिए लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं होता। यदि कोई दल सत्तारूढ़ है तो उसका अर्थ है कि जनता ने उस दल को अपन मर्जी से चुना है और देशवासियों का समर्थन उसे प्राप्त है।
यह देश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में विश्वास रखता है और अराजकता से नहीं, बहुमत से, जनादेश से संचालित होता है। पुलिस के हाथ वह पत्र लगा है जिसमें पीएम मोदी की हत्या की साजिश की इबारत लिखी हुई है। पुलिस का दावा है कि उसके पास गिरफ्तार बुद्धिजीवियों के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं। लेकिन ये कार्यकर्ता तो केवल मोहरे ही प्रतीत होते हैं, पुलिस की जांच के जरिये संभव है कि जल्द ही इस पूरी साजिश के मास्टर माइंड की पहचान भी सामने आए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)